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सतविन्द्र कुमार राणा's Blog – February 2017 Archive (3)

कुछ मुक्तक/सतविन्द्र कुमार राणा

(16 14 मात्रा भार)

.

(1)

हाथ जोड़ कर फिरते दिखते जब-जब सीजन आता है

दर-दर पर मिन्नत होती है हर इक जन तब भाता है

काम साध कुर्सी को पाकर याद नहीं फिर कुछ आता

झुककर जो वादे कर जाते उनको कौन निभाता है?



(2)

मौसम जैसा हाल सजन का समझ नहीं कुछ आता है

इस पल होता है तौला उस पल माशा बन जाता है

प्रीत हमारी लगती झूठी जाने क्या दिल में रखते?

वादे उनके ऐसे लगते ज्यों नेता कर जाता है।



(3)

आँखों को झूठा मत समझो आँखें सच ही कहती हैं…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2017 at 2:30pm — 4 Comments

तरही गजल-सतविन्द्र राणा

22 22 22 2

भले ही' मैं अंजाना हूँ

सारी बात समझता हूँ



कड़वा चाहे लगता हूँ

सच की रो में बहता हूँ।



सुख दुख के हर पहलू को

चुपके-चुपके सहता हूँ।



बोल रहा उनके आगे

जिनको सुनता आया हूँ।



काम बहुत करना मुझको

लेकिन मैं अलसाया हूँ।



जख्म नहीं हूँ दे सकता

जब मरहम के जैसा हूँ



देख भुलाकर रंजो गम

गुल बनकर फिर महका हूँ।



जिससे धारा फ़ूट पड़े

टूटा वही किनारा हूँ।



आँखों में क्या ढूँढ… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:00pm — 9 Comments

कोंपलें सब खुल रही(गीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

गीतिका छ्न्द पर गीत प्रयास(14,12)(तीसरी,दसवीं,सत्रहवीं,छब्बीस वीं लघु)अंत गुरु लघु गुरु



ठंड की ठिठुरन चली मधुमास ज्यों है आ रहा



कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा





पीत पहने सब वसन यह प्रीत का मौसम हुआ



अब धरा देखो महकती धूप ने ज्यों ही छुआ



पर्ण अब हैं झूमते सब औ पवन है गा रहा



कोंपलें सब खुल रहीं हर वृक्ष अब लहरा रहा।





पीत वर्णी पुष्प चहुँदिक खेत में हैं खिल रहे



सब भ्रमर गाते हुए हर पुष्पदल से… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 1, 2017 at 11:00am — 14 Comments

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