For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Tasdiq Ahmed Khan's Blog – February 2018 Archive (4)

तरही ग़ज़ल --2 (शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें )

(मफऊल -फाइलात -मफाईल -फाइलुन )

.

शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें |

वादा वफ़ा का हम न निभाएँ तो क्या करें |

.

मजबूर हो के हो गया दीवाना जिनका दिल

अब जान भी न उनपे लुटाएँ तो क्या करें |

.

गैरों की बात हो तो उसे कर दें दर गुज़र

पर हम पे ज़ुल्म अपने ही ढाएँ तो क्या करें|

.

उम्मीद जिसके आने की न ज़िंदगी में हो

उसको न अपने दिल से भुलाएँ तो क्या करें |

.

बैठे हुए हैं सामने महफ़िल में गीब्ती

उन…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 25, 2018 at 9:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल (जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है )

(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )

जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|

ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |

लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम

ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |

वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो

जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |

दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत

उसी से तू महब्बत कर रहा है |

मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें

कोई शायद अयादत कर रहा है |

मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो

मुझे कूचे…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 21, 2018 at 8:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल ( दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे )

(फाइलातुन -फइलातुन- फइलातुन-फेलुन )

दूर माशूक़ से आशिक़ कहाँ जाना चाहे |

कूचये यार में वो अपना ठिकाना चाहे |

मैं ही आया हूँ नहीं सिर्फ़ परखने क़िस्मत

उन को तो अपना हर इक शख्स बनाना चाहे |

थाम के हाथ जो देता हो हमेशा धोका

कौन उस शख्स से फिर हाथ मिलाना चाहे |

फितरते शमअ जलाना है तअज्जुब है मगर

जान परवाना वहाँ फिर भी लुटाना चाहे |

मुफ़लिसी के हैं यह मारे हुए ज़ालिम वरना

तेरी दहलीज़ पे सर कौन…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 12:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )

ग़ज़ल (मुझको अपना बना कर दगा दे गया )

-------------------------------------------------------

(फाइलुन-- फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)

 

कोई उल्फ़त का बहतर सिला दे गया |

मुझको अपना बनाकर दगा दे गया |

 

जो खता मैं ने की ही नहीं प्यार में

उफ़ मुझे वो उसी की सज़ा दे गया |

 

दास्ताँ मैं तबाही की कैसे कहूँ

वो मुझे प्यार का वास्ता दे गया |

 

दूर यूँ मौत से कब हुई ज़िंदगी

कोई जीने की मुझको दुआ दे गया…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 2, 2018 at 10:43pm — 10 Comments

Monthly Archives

2022

2019

2018

2017

2016

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service