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बर्फ से ढकी ऊँची ऊँची पहाड़ियां और उनके शीर्ष पर आच्छादित बादलों के गोले इधर उधर  मंडराते  देखने में इतने मुग्धकारी होते हैं की देखने वाला खुद को भूल जाए अचानक एक भारी  भरकम बादल के बीच से जैसे ही प्लेन गुजरा मेरी पिछली सीट पर बैठे हुए बच्चे ख़ुशी से चिल्ला पड़े की उसी वक़्त अचानक प्लेन में अजीब सी आवाज आई थोड़ा झटका लगा ,इतनी बार सफ़र करने से इतना अनुभव तो हो ही गया की स्पीड और उसका संतुलन कैसा होता है अतः अनहोनी की आशंका से रोंगटे खड़े हो गए आस पास के बच्चे फिर भी बेफिक्र थे बड़ों की बोलती  बंद थी सबकी नजरें एक दूसरे  से कुछ पूछ रही थी की दुबारा वही झटका लगा मेरा दिमाग इस बीच ना जाने कहाँ कहाँ घूम आया और कुछ विचारो की गांठों को खोलने में लग गया इतने में एयर होस्टेस ने आकर बताया अब सब कुछ सामान्य है घबराने की जरूरत नहीं ,वो हमें बाद में पता चला था की एक इंजन खराब हो गया था इस लिए इमरजेंसी इंजन से काम चलाया गया था ।सब कुछ सामान्य होने पर अचानक मैंने अपने पति से पूछा आप इस वक़्त में सबसे ज्यादा किस को याद कर रहे थे सच बताना !! पति ने कहा एक सेकिंड में सबसे पहले बेटी का चेहरा सामने आया उसके तुरंत बाद बेटे का और सब बच्चों का ,उत्तर मेरी आशा के अनुसार ही निकला ,फिर मैंने पूछा मुझे मालूम है आप बेटी को बहुत ज्यादा प्यार करते हो पर एक बात बताओ आज हमे कुछ हो जाता तो आपकी प्रोपर्टी,आपका घर आपकी जमा पूँजी किसे  मिलती बेटी को क्या मिलता ?मेरे प्रश्न से जैसे उन्होंने अन्दर की सब बात भांप ली हो बोले सही कह रही हो ऐसे में हमारे समाज में सब बेटे के पास चला जाता है क्यूंकि शादी के बाद कोई बेटी मांगती भी नहीं चाहे नियम भी हो  कोई देता भी नहीं मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह पाई किन्तु मेरे पति के दिमाग में वो उथल पुथल चलती रही कश्मीर से आकर उन्होंने सबसे पहला काम किया अपने सर्विस के फाइनेंशियल रिकार्ड  में बेटी और बेटे दोनों का नाम कानूनी तौर पर बराबर  लिख दिया पेरेंटल प्रापर्टी तो फिर भी बेटे को ही मिलनी है किन्तु पति की जमा बचत का फिफ्टी परसेंट बेटी को मिलेगा उनके इस फेंसले से मेरे दिल में उनका सम्मान दुगुना हो गया और विशवास हो गया की वो वैसे ही नहीं कहते थे की मेरी बेटी बेटे के बराबर है इस बात का अभी ना बेटी को पता है न बेटे को हो सकता है किसी तरह इस आलेख को पढ़कर जान लें इस आलेख को लिखने का मेरा मकसद यही है की बेटी आप से कभी नहीं मांगेगी अतः यदि बेटे के बराबर मानते हो तो उसे सब तरह से बराबर मानो वो भी आपके जिगर का टुकड़ा है जो उसे देना है अपना वक़्त रहते दीजिये वर्ना कल का क्या भरोसा !!आज सुबह डॉ .प्राची से चैट करते हुए ये बातें निकली तो उन्होंने सलाह दी की एक आलेख लिख दो बस सोचा आप सब से साझा करती हूँ ।आप सब लोगों की  प्रतिक्रिया का इन्तजार है । 

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Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण जी बेटी के प्रति इन भावों को नमन बहुत अच्छा लगा पढ़ कर काश सभी ये बात समझने लेगें 

....आप की सोच एकदम सही है राजेश कुमारी जी!...बेटी के भविष्य के बारे में हमसे जो भी बनता है, वह कर गुजरना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है!...बहुत बढिया आलेख!...हार्दिक आभार!

प्रिय अरुणा कपूर जी आपने इन विचारों का अनुमोदन किया जानकार बहुत हर्ष हुआ हम लोगों की ये जागरूकता ही नया रंग लायेगी
जो बहुत जरूरी भी है आपका हार्दिक आभार|

आदरणीया आज आपकी इस चर्चा पर दुबारा आना , सभी टिप्पणियों के माध्यम से हुई चर्चा को पुनः पढ़ते समझते हुए आगे बढ़ना बहुत अच्छा लगा... वाकई महिलाओं की स्थिति के कई आयामों पर बहुत सार्थक चर्चा हुई है.

आदरणीया

यथार्थ कथन i

काल करे सो आज कर , आज कराइ सो अब्ब i

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी ,आपने सच कहा मेरे आलेख का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक आभार आपका|  

सखी  रेखा मोहन जी ,आपने आलेख पर आकर अपना अमूल्य समय दिया तथा सराहना  की अपने विचार व्यक्त किये उसके लिए दिल से बहुत बहुत आभार आपका .

बेटी बहुत ही सकून का शब्द है. हम सब बेहद संवेदशील होते है अपनी बेटियों के प्रति. परवरिश में कोई कमी नही करते है. पढने लिखने की स्वतंत्रता...हर बात में हम लाढ करते है लेकिन जैसे ही बात सम्पत्ती और जायदाद की करते है तो सब बराबरी की बात दरकिनार कर सिमट जाते है वही सदियों पूरानी वारिश वाली मुद्दे पर. हम स्वंय ही में पाते है दोहरी मानसिकता से ग्रस्त हमारे स्वंय को ही. जब कहते है हम कि बेटा और बेटी बराबर है हमारे लिये तो क्यों हम खुले तौर पर नही देते है स्वंय अपने बच्चों को सही अर्थ में बराबर का अधिकार !!!! एक गहरे आत्ममंथन का विषय उठाया है आपने यहाँ....इन बातों पर चर्चा होने की बेहद जरूरत है. बधाई इस सार्थक परिचर्चा को यहां मंच पर प्रस्तुत करने के लिये.

आ० कांता जी ,सच में ये आत्ममंथन का वक़्त है जब तक हम ही दोहरी मानसिकता के वश में रहेंगे तब तक कैसे बदलाव की अपेक्षा करेंगे कही से तो शुरू करना ही पड़ेगा सच बताऊँ सबसे पहले अपने घरवालों का ही विरोध झेलना पड़ता है कोई पहल करने के लिए किन्तु यदि मन साफ़ है और द्रढ़ निश्चय है तो कोई आपको रोक नहीं सकता ढोल सब बजा रहे हैं कि हमारे लिए बेटा बेटी बराबर है मगर दिल पर हाथ रख कर बोलिए क्या सच में !!

अपने विचारों से इस आलेख का मुखर अनुमोदन करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका आपने इस पुराने आलेख को रीफ्रेश कर दिया इसके लिए भी आभार |

मैंने आज ही इस चर्चा को पढ़ा और बहुत सी गहन बाते भी सामने आयी ।वाकई में वक्त आ गया हैं वंशबेल की चिंतको को समझाने की बेटी एक नहीं बल्कि दो कुल की वंशबेल थामे रहती हैं आजीवन।सादर

आज अचानक नोटिफिकेशन में आपकी प्रतिक्रिया देखकर इस  पोस्ट पर आना हुआ मुझे बहुत अच्छा लगा इस विषय पर आपके मुखर अनुमोदन को देखकर | हमे ये बदलाव अपने घर से ही शुरू करना पड़ेगा तभी हम आगे किसी को कुछ कह सकते हैं नव पीढ़ी में जागरूकता लाने  के लिए कम से कम हम लेखक लोग अपनी कलम तो चला ही सकते हैं वक़्त तो निःसंदेह लगेगा किन्तु एक न एक दिन समाज में ये बदलाव जरूर आएगा |आपका पोस्ट पर आने और अपने तर्क संगत विचार रखने के लिए दिल से आभार अर्चना त्रिपाठी जी |

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