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मोर-मुकुटधारी-अवतारी।
हे नट-नर्तक -कृष्ण-मुरारी।।

नयन-कंज तन नीलनलिन नव।
वक्ष वृहद उर करुणा-गृह तव।।
कानों मे मकराकृत कुंडल।
अधर सुधा-मुरली की हर पल।।

जय जय जय पीताम्बरधारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

तुम जग का नित पालन करते।
सुर-नर-मुनि सबके दुख हरते।।
चरणामृत सुरसरि की धारा।
हर दुख हर ले नाम तुम्हारा।।

बसो सदा उर हे! गिरिधारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

हे हरि जब तुम नर्तन करते।
नाग कालिया का मद हरते।।
नर-मुनि-देव पुष्प बरसाते।
निस दिन कीर्ति तुम्हारी गाते।।

सँग झूमें ब्रह्मा-त्रिपुरारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

यश नारद-सुक-व्यास सुनाते।
शेष-शम्भु-श्री तुमको ध्याते।।
परमब्रह्म तुम हे! अविनाशी।
पद-पंकज में मथुरा-काशी।।

दो हिय ज्योति-पुंज अभिसारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

दया-प्रेम का मान तुम्ही से।
गीता का शुचि-ज्ञान तुम्ही से।।
सत्य-धर्म-सद्कर्म-स्थापक।
हरि हे! तुम कण-कण में व्यापक।।

तुम पर सारा जग बलिहारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

फैला घोर अँधेरा भू पर।
दुखी धरा-ब्रह्माण्ड-चराचर।।
धरो चक्र कर करो कृपा हरि।
आज काल विकराल बना अरि।।

हर लो हे हरि! विपदा भारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

हे मायापति माया कर दो।
दया-अभय-बल उर में भर दो।।
छवि-पद-पावन हिय में धारें।
विमल-दरस को जीवन वारें।।

पूजें आज तुम्हे नर-नारी।
हे नट-नर्तक-कृष्ण-मुरारी।।

तुमने द्रौपदि चीर बढ़ाया।
निज भक्तिन का मान बचाया।।
मार ग्राह तुम गज को तारे।
मिटा दनुज प्रह्लाद उबारे।।

जय नरसिंह-रूप अवतारी।
हे नट नर्तक कृष्ण मुरारी।।

काम-क्रोध-मद-लोभ मिटा कर।
कर दो निर्मल उर करुणाकर।।
सकल सिद्धि नवनिधि-सुख पाता।
जो भी शरण तुम्हारी आता।।

एक सहारा तुम बनवारी।
हे नट नर्तक कृष्ण मुरारी।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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