For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज पहली बार मैंने इस मंच पर भी अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप चर्चा करने का विचार किया है|वर्तमान समय में सनातन मूल्यों में स्खलन चरम पर है|वैदिक और पौराणिक देवी देवता काल बाह्य हो गए हैं|कहीं किसी साईं बाबा का प्राकट्य हो गया है तो कहीं कोई संतोषी माँ प्रकट हो गयी हैं|आइये हम सभी धर्म के महत्व को पहचाने और धर्म के विशुद्ध स्वरुप को अपने अपने नजरिये से खोजने की चेष्टा करें|

Views: 1139

Replies to This Discussion

प्रिय मयंक जी मै इस पहल के लिए आपका स्वागत करता हूँ और इस विषय में अपने गुरु से जो ज्ञान प्राप्त किया है उसके अनुसार मै कुछ कहने का प्रयत्न करता हूँ .

धर्म के विषय में गीता में श्री कृष्ण कहते है की :-

 इति धार्यते सा धर्मं :- अर्थात धर्म वह है जिसे धारण किया जाये । इस विषय में स्वामी विवेका नन्द जी कहते है की 

Religion is realization of God

अर्थात इश्वर की सत्ता को अपने अन्दर महसूस कर लेना ही धर्म है । और धर्म जब धारण किया जाता है तो धारण करने वाले में धर्म स्वयं अपने दस लक्षण प्रकट कर देता है :- धर्म के यह लक्षण है :-

दया ,करुणा, सत्यता, क्षमा,अहिंसा,कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी,प्रेम,निर्भयता एवं  परोपकार ।

अत : धर्म वह है जो इंसान में मानवोचित गुणों का प्रत्यारोपण करे।

यहाँ पर मै यह बात जोर देकर कहना चाहता हूँ की धर्म कोई चर्चा करने का विषय नहीं है वल्कि ग्रहण करने की धारण करने की चीज़ है और मनुष्य जव तक परमात्मा की सत्ता का अपने अंतर्घट में अनुभव नहीं कर लेता तब तक धर्म की वास्तविकता उस पर प्रकट नहीं हो सकती इस चर्चा से यदि आप सहमत है तो अपनी राय प्रेषित करें और इस discussion को आगे बढ़ाये ।.

  

आदरणीय मुकेश जी..

आपने इस चर्चा को आगे बढ़ाया इसके लिए आपका कोटिशः नमन,वंदन एवं अभिवादन|जहाँ तक मैं समझता हूँ धर्म और रिलीजन शाद एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं हो सकते|स्वयं आपने भी महाराज मनु को उद्धृत करते हुए कहा है "धर्म: धार्यते प्रजानां इत्याहुः धर्मः" मोटे तौर पर जिसे धारण किया जाय वह धर्म है|उदाहरण के लिए अग्नि ताप धारण करती है तो दहन अग्नि का धर्म हुआ|वायु प्रवाह को धारण करती है तो बहना वायु का धर्म हुआ,पुष्प गंध को धारण करती है तो वास (महक) पुष्प का धर्म हुआ|इसी प्रकार मनुष्य मात्र के लिए मनुष्यता ही धर्म है|एक सैनिक के लिए युद्ध ही धर्म है,एक विद्यार्थी के लिए पठन पाठन ही धर्म है|महाराज मनु ने इसे सरलतम शब्दों में परिभाषित करते हुए यह भी कहा,''मनुर्भव" अर्थात मनुष्य,मनुष्य ही रहे,देवत्व के अवतरण की साधना करता रहे किन्तु स्वयं को देवता न समझे,दानव तो कभी बने ही नहीं|इसीलिए उन्होंने धर्म के दश लक्षण भी गिनाए,"धृति: क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:,धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम'' धैर्य,क्षमा,दमन,अस्तेय (चोरी न करना),शुद्धता,इन्द्रियनिग्रह,बुद्धि:,विद्या,सत्य और क्रोध का अभाव|यह धर्म के लक्षण हैं,धर्म नहीं|तात्पर्य यह है की इन लक्षणों से युक्त होने पर भी बाहर से धर्मात्मा दिखने वाला व्यक्ति भी अधर्म का आचरण कर सकता है|फिर धर्म है क्या?स्पष्ट है कृष्ण की माखनचोरी अथवा उनका गोपियों के साथ रास कहीं से भी धर्म नहीं है किन्तु वही कृष्ण जब कुरुक्षेत्र के मैदान में" हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं,जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम,तस्माद्दुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः" की सिंह गर्जना करते है तो नटवर नागर से योगेश्वर हो जाते हैं|चर्चा को गति प्रदान करने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ|

मयंक जी
सुन्दर चर्चा के शुभारम्भ के लिए ह्रदय तल से बधाई

पढ़ कर मन पवित्र हो गया, ऐसा लगा कि मंदिर के शुभ वातावरण में पहुँच गया हूँ

आदरणीय वीनस भाई...

आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे किसी उपनिषद की एक पूरी पंक्ति ही याद दिला दी "वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं आदित्यवर्णं,तमसः परस्तात|यज्ज्ञात्वातिमृत्युमेती, नान्यः पन्था: विद्यतेऽयनाय||" अर्थात..

मैंने तम से परे -

दूर जो आभामंडल,

अदिति पुत्र सा दीपित है जिसका मुखमंडल -

जान लिया उस महापुरुष को,

जिसे जानकर -

मृत्यु भी मिट जाए,

और कुछ मार्ग नहीं है|

प्रिय मयंक जी ,


सर्व प्रथम मै आपके ज्ञान के अध्यन को नमन करता हूँ की आपने इस उम्र में इतना ज्ञान अर्जन किया है फिर मै आपके लेख के अनुसार कुछ बातों में अपनी व्याख्य देना चाहता हूँ की :-

 मनुष्य जन्म के लिए देवता भी तरसते है । क्योंकि भगवान् ने मनुष्य को वुद्धि भी प्रदान की है ।  मगर जब कोई व्यक्ति धर्म को धारण कर लेता है तो यही बुद्धि विवेक में परिवर्तित हो जाती है ।  आपने कहा है की अग्नि का धर्म दहन है ठीक कहा है मगर मनुष्य यह निश्चित करता है की इस अग्नि से भोजन पकाए या किसी का घर जलाये ।  शीतकाल में यही अग्नि ऊष्मा प्रदान करती है । यही अग्नि ऊर्जा बन कर मनुष्य के लिए साधन बन जाती है । इसी प्रकार जो हवा आंधी वन कर विनाश करती है वहि हवा सांस बन कर मनुष्य को जीवन प्रदान करती है विद्यार्थी यदि विद्या अध्यन करता है तो वो धर्म है और यदि वहि आपति जनक पुस्तक पड़ता है तो अध्यन नहीं कहलायेगा ।  आपने अग्नि वायु का नकारात्मक पक्ष ही चुना है आप सकारात्मक पक्ष का भी ध्यान रखे ।


आपने कहा है की धर्मात्मा दिखने वाला भी अधर्म का आचरण कर सकता है तो धर्म को ओड़ने वाला व्यक्ति अधर्म का आचरण कर सकता है मगर धर्म को धारण करने वाला व्यक्ति कभी अधर्म का आचरण नहीं कर सकता है क्योंकि धर्म को धारण करने का अर्थ है धर्म को आत्मसात कर लेना । आप कृष्ण की बाल सुलभ माखन चोरी को चोरी की संज्ञा नहीं दे सकते ।इसी प्रकार कृष्ण की रास लीला जो की १३ वर्ष से भी कम उम्र में की गयी थी (क्यों की कृष्ण ने कंस को १३ वर्ष की अवस्था  में मारा था ) अधर्म की संज्ञा नहीं दे सकते हैं।

कृष्ण की रास लीला तो इतना गहन विषय है जिस पर अलग से discussion शरू किया जा सकता है । जो मै शरू करूँगा भी । और कुर्क्षेत्र  के मैदान में तो क्रष्ण ने मनुष्य के तमाम भ्रम ही मिटा दिए है ।


इस चर्चा को आगे तो बढाइये मगर मेरा एक अनुरोध है की मेरे दो discussion अंतर्घट और गुरु व्रह्मा गुरु विष्णु गुरुदेवो महेशरा कृपया उसे भी गति प्रदान करें क्यों की मै आगे भी उस पर जो लिखा है उसे प्रकाशित करना चाहता हु.

इस चर्चा को जारी रखने के लिए धन्यवाद ।  आगे मै श्री वीनुस केशरी जी से भी चर्चा में भाग लेने के लिए अनुरोध करता हूँ ।


आदरणीय मुकेश सर,

सर्वप्रथम तो मैं चर्चा में देर से शामिल होने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|वास्तविकता तो यह है की आज धर्म चर्चा के लिए समय निकालना ही कठिन हो गया है|ऐसा नहीं है की यह समस्या आधुनिक युग की देन है बल्कि मैं तो यह कहना चाहूँगा की प्रत्येक काल में धर्म के लिए संकट उत्पन्न होता रहा है और आगे भी होता रहेगा|यदि ऐसा न होता तो चारों वेदों और अट्ठारहों पुराणों के संकलनकर्ता महर्षि वेदव्यास को दोनों हाँथ आसमान की ओर उठाकर धर्म की महत्ता प्रतिपादित करने की आवश्यकता न पड़ी होती,"उर्ध्वबाहुं विरोम्येष नहि कश्चित श्रुणोति माम,धर्मादर्थश्च कामश्च, स धर्मं किं न सेव्यते?''

अर्थात दोनों हाँथ उठा कर कहता हूँ किन्तु कोई भी मेरी नहीं सुनता,धर्म से ही अर्थ और सकल कामनाओं की सिद्धि होती है, फिर धर्म का सेवन क्यों नहीं करते?

अब दूसरे बिंदु पर आते हैं..यह सत्य है की बुद्धि,विवेक,प्रज्ञा,मेधा,धृति,प्रातिभ इत्यादि शब्द भले ही ऊपर से पर्यायवाची प्रतीत हों तो भी इनके मध्य गुणात्मक अंतर है|कर्तव्याकर्तव्य का सम्यक विचार करने वाली बुद्धि ही विवेक कहलाती है|उदाहरण के लिए राम बुद्धिमान थे,रावण भी बुद्धिमान था|राम की बुद्धि लोकतान्त्रिक थी रावण की बुद्धि के साथ उसका व्यक्तिगत अहम था|राम ने वैचारिक आदान प्रदान को सर्वदा ऊपर रखा जबकि रावण ने अपनी थोथी बौद्धिकता अन्यों पर थोपने में ही अपना सर्वश्रेष्ट कौशल प्रदर्शित किया|स्पष्ट है की उसकी बुद्धि विवेक के स्तर तक नहीं पहुंची थी|

आपने दहन को केवल जलाने का हेतु माना है जबकि मैंने ऐसा कदापि नहीं कहा|दाहकता अग्नि का धर्म है किन्तु अग्नि से बढ़कर दाहकता जल में हुआ करती है|हर्ष का विषय है की भगवान वेद ने इस तथ्य को सबसे पहले उद्घाटित किया और आज का विज्ञान उस पर अपनी सम्मति दे रहा है|देखें - अमुर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह,ता नो हिन्वन्त्वध्वरम (अथर्ववेद कांड १,अध्याय १,सूक्त ५,मन्त्र २) अर्थात सूर्य जिस जल के साथ रहता है तथा सूर्यमंडल में स्थित वह जल हमारे यग्य को सफलता प्रदान करने की शक्ति प्रदान करे| और भी ..हिरण्यवर्णा: शुचयः पावकायासु जातः सविता यास्व्ग्नी:|या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु (अथर्ववेद कांड १,अध्याय ६ सूक्त ३३,मन्त्र १) अर्थात जो जल अत्यंत रमणीय और सुंदर वर्ण वाला, पवित्रताप्रद है और जिससे सूर्य उत्पन्न हुए हैं,जिस मेघस्थ-समुद्रस्थ जल में विद्युत और बड़वानल उत्पन्न होते हैं,जो अग्निगर्भा है वे सब प्रकार के जल हमारे रोगादि को दूर कर हमको सुख प्रदान करने वाले हों|वेदों ही नहीं पौराणिक काल(हमारा काल निर्धारण अलग है) में भी ऐसे अनेक उदहारण मिलते हैं जब प्राणवायु और उर्ध्वगावायु (हाइड्रोजन और ओक्सीजन)  के संघात जल के दाहक प्रभावों की मुक्त चर्चाएं हुई है|ब्रम्हाणी चाकरोन्शत्रुं एन एनश्म धावति (दुर्गा सप्तशती) अर्थात ब्रम्हाणी ने मंत्रयुक्त जल से शत्रुओं को भष्म कर दिया|इतना सब होने के बावजूद जल का धर्म कहीं भी दाहकता नहीं कहा गया वैश्वानर स्प्तजिव्ह को सर्वदा दाहक ही कहा गया|स्पष्ट है उपयोग धर्म नहीं है बल्कि किसी विशेष देश,काल,परिस्थिति में अपने नैसर्गिक गुण को बनाये रखना ही धर्म है|भगवान वेद भी यही कहते हैं मानव के लिए मानव धर्म, देव नहीं और दनुज तो कदापि भी नहीं|

  विद्यार्थी के लिए विद्यार्जन ही धर्म है और यह बात विद्या के ही सन्दर्भ में है,अविद्या के सन्दर्भ में नहीं|अभी चलना पड़ेगा,अन्य कार्य भी निपटाने हैं|आपका कोटिशः आभार..मैं आपकी चर्चा में निःसंदेह भाग लूँगा|

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार योग के लाभ बताते सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं…"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  छंदों की प्रशंसा और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। "
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र पर आपने सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं.…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार दोनों ही कुण्डलिया छंद आपने सुन्दर रचे हैं.…"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय हरिओम भाईजी सुंदर सार्थक तीन छंदों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। गली …"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"सिखलाया जाए अगर, बचपन से ही योग। तो  जीवनभर  व्यक्ति  से, दूर  रहेंगे …"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रानुकूल बहुत सुन्दर और सार्थक छंद सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service