For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण के पीछे यानि बाद दो गुरुओं का योग होता है. भगण का रूप भानस है जिसके शब्द गुरु लघु लघु यानि ऽ। । होते हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है --
मत्तगयंद सवैया का एक पद (पंक्ति) =  भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस गुरु गुरु 

एक भानस = 3 वर्ण,  तो सात भानस = 21 वर्ण और पीछे से दो गुरु गुरु वर्ण यानि कुल वर्णों की संख्या हुई, 21 + 2 = 23.

यानि, मत्तगयंद सवैया = भगण X 7 +गुरु+गुरु

मत्तगयंद सवैया में चार पद होते हैं और तुकांत होते हैं. जबतक कि किसी प्रयोजन विशेष के चलते रचनाकार ने कोई नवीन प्रयोग न किया हो.

एक उदाहरण -
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सि लटी दुपटी अरु, पाँयउ पानहि की नहिं सामा॥
द्वार खरो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकि सौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

पहला पद -
सीस प (गुरु लघु लघु) / गा न झ (गुरु लघु लघु) / गा तन (गुरु लघु लघु) / में प्रभु, (गुरु लघु लघु) /
<-------1-------------->  <----------2----------------> <--------3---------------> <---------4--------------->

जानै को (गुरु लघु लघु) / आहि ब (गुरु लघु लघु) / सै केहि (गुरु लघु लघु) / ग्रामा (गुरु गुरु)
<-----------5-------------> <-----------6-------------> <-----------7------------> <-------8------->

ध्यान से देखा जाय तो पाँचवे भगण में कुछ अस्पष्टता है. जानैको भगण न हो कर मगण (मातारा, ऽऽऽ) प्रतीत हो रहा है. किन्तु पद के वाचन-प्रवाह (पढ़ने की गति) के अनुसार शब्द जानक ही पढा जायेगा, न कि जानैको. इसी रह सातवें भगण की व्याख्या है. सैकेहि को सैकहि पढ़ा जायेगा.
इसी आलोक में उदाहरण में उद्धृत अन्य तीनों पदों को देखा जाय.

इस क्रम में, उद्धृत छंद में दूसरा पद काबिलेग़ौर है --
धोति फटी-सि लटी दुपटी अरु, पाँयउ पानहि की नहिं सामा
यहाँ धोती को धोति, फटी-सी को फटी-सि तथा नहीं को नहिं लिखा गया है.  इसे शब्द अक्षरी में दोष की तरह न देख कर उच्चारण प्रवाह के अनुसार शब्द के अक्षर पर स्वराघात में परिवर्तन की तरह देखा जाना चाहिये. यही कारण है कि सवैये हिन्दी के आंचलिक रूप को आसानी से स्वीकार करते हैं, बनिस्पत हिन्दी के खड़े रूप के.

गुरु वर्णों के लघु रूप में उच्चारित करने के बाबत विशद जानकारी इस लेखमाला के  सवैया  लेख से लिया जा सकता है.

और हम जान ही चुके हैं कि उच्चारण के कारण ही कारक विभक्तियों के चिह्न छंद रचना के समय आवश्यकतानुसार लघु रूप में व्यवहृत होते हैं.

 

ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.

Views: 18564

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ जी,

मत्तगयंद सवैया के शिल्प के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार. कारक की विभक्तियों को लघु की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है, और आंचलिक वाचन प्रवाह में कुछ दीर्घ वर्णों को भी लघु किन स्थानों पर किया जा सकता है, यह जानकारी साझा करने के लिए हार्दिक आभार.

प्रथम दृष्टया तो यह छंद बहुत मुश्किल लग रहा है, पर लेखन प्रयास के दौरान ही इसे साधने की बारीकियां और समझ आयेंगी. सादर.

//प्रथम दृष्टया तो यह छंद बहुत मुश्किल लग रहा है, पर लेखन प्रयास के दौरान ही इसे साधने की बारीकियां और समझ आयेंगी.//

आपने सही कहा, डॉ.प्राची. लेकिन पद्य साहित्य में रुचि रखने वाले इन छंदों पर न केवल कार्य करें बल्कि इनके लालित्य से आज के पाठकों और समाज को आनन्दित करें.

आदरणीय सौरभ जी, 

क्या मत्तगयंद सवैया इसी प्रकार लिखा जाता है कृपया अवलोकन कर मार्गदर्शन दें, ताकि त्रुटियों से सीखा जा सके.

हाथ छुड़ाय गयी जब माँइ तु रोवत रोवत लाल पुकारे l
आग जली उहि देहि न मानत पंथ खड़ा निश प्रात निहारे ll
ब्याह पिता नें रचाय लिया कहि लाल को माँ बिठला पुचकारे l
लाल को प्यार मिला क्षण को नहिं माँ बिन बातन ही दुतकारे ll

सादर.

डॉ.प्राची, आपको मत्तगयंद सवैया पर अभ्यास करता देख कर मन प्रसन्न हुआ.

अब आपकी छंद-रचना पर -

हम देख चुके हैं कि   मत्तगयंद सवैया = भगण (भानस)  X 7 + गुरु गुरु 

अब उपरोक्त सूत्र पर आप द्वारा प्रदत्त पंक्ति को साधा जाय -

हाथ छु (भानस या गुरु लघु लघु) / ड़ाय ग (भानस या गुरु लघु लघु) / यी जब (भानस या गुरु लघु लघु) /
<-------------------1---------------> <----------------------2--------------> <-----------------3------------------->
माँइ तु (भानस या गुरु लघु लघु) / रोवत (भानस या गुरु लघु लघु) / रोवत (भानस या गुरु लघु लघु) /
<--------------------4-------------> <-----------------5--------------------> <----------------6---------------->
लाल पु (भानस या गुरु लघु लघु) / कारे (गुरु गुरु)
<-----------------7------------------> <------8------>

इस हिसाब से आपका प्रथम पद मत्तगयंद सवैया के सूत्र पर खरा उतरता है. इसीतरह आगे के अन्य तीनों पदों को देख जाइये. आपकी शंका का समाधान हो जायेगा. 

शुभेच्छाएँ

आदरणीय सौरभ जी,

इस छंद के प्रथम पद पर १०/१० मिलने से सुकून मिला है... मुझे संशय जिन कारक विभक्तियों की मात्रा को लघु करके पड़ने पर है, उन्हें, मैं बोल्ड और रेखांकित कर रही हूँ,

हाथ छुड़ाय गयी जब माँइ तु रोवत रोवत लाल पुकारे l
आग जली उहि देहि न मानत पंथ खड़ा निश प्रात निहारे ll
ब्याह पिता नें रचाय लिया कहि लाल को माँ बिठला पुचकारे l
लाल को प्यार मिला क्षण को नहिं माँ बिन बातन ही दुतकारे ll

यदि यह मैंने सही समझा तब तो आगे बढ़ना उचित होगा, कृपया बताएं. सादर.

आप सवैया और मत्तगयंद सवैया के नाम पोस्ट लेखों को पुनः पढ़ जायँ प्राचीजी. शंका का समाधान हो जायेगा. ..  :-)

वैसे, मुझे एक अपरिहार्य मोडिफ़िकेशन की जरुरत महसूस हो रही है और वो ये कि मत्तगयंद सवैया के लेख में उद्धृत सभी सवैया हेतु मान्य परिपाटियों संबन्धित नियमों और कथ्यों को सवैया के मूल लेख में डाल दिया जाय. वर्ना वे नियम मात्र मत्तगयंद सवैया के लिए सही मान लिए जायेंगे. यह कार्य मैं यथासंभव शीघ्र करने का प्रयास करता हूँ.

सादर

उपरोक्त कार्य सम्पादित हुआ.

जी, 

पुनः पढ़ कर कोशिश करती हूँ, शंका का समाधान करने की.

सादर.

बहुत सुन्दर तरीके से मत्तगयंद सवैया के बारे में जानकारियाँ उपलब्ध कराई हैं आपने गुरुदेव..... जिसके लिये आपको हार्दिक बधाई ....सिर्फ एक इस पंक्ति पर थोड़ी शंका है

//सवैये हिन्दी के आंचलिक रूप को आसानी से स्वीकार करते हैं, बनिस्पत हिन्दी के खड़े रूप के.//

क्या शुद्ध हिन्दी में लिखे सवैया को तकनीकी रूप से पूर्ण नहीं कहा जा सकता?

इस लेख से जिस पंक्ति को आपने उद्धृत किया है उसका ऐसा कुछ अर्थ निकल सकता है यह तो मैंने सोचा ही नहीं था !

भाई अजीतेन्दु जी, इस पंक्ति से यह अर्थ कहाँ निकलता है कि आजकी हिन्दी भाषा में लिखे सवैये को तकनीकी रूप से पूर्ण नहीं माना जा सकता ? यह तो तीन वर्णों के समुच्चयों को जिन्हें गण कहते हैं  की विधिवत आवृति को संतुष्ट करने से संबन्धित है जो आंचलिक क्रिया या शब्दों से सहज हुई देखी जाती है.

और यह आप तब पूछ रहे हैं जब कि आपने ही कुछ दिनों पूर्व मेरे साथ आजकी हिन्दी में (यानि बिना आंचलिक शब्द-पद के) एक सवैया लिखने का सफल अभ्यास किया है.  वह छंद (संभवतः वह मदिरा सवैया था) तो किसी सूरत से अपूर्ण नहीं था.

नहीं गुरुदेव....शंकावाली कुछ खास बात नहीं थी फिर भी आपसे एकबार पुनः पूछ कर आश्वस्त होना चाह रहा था सो अब हूँ....

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service