For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़ारसी की बह्र बनाम हिन्दी के छंद                                    डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

मेरे अग्रज कवि मित्र श्री मृगांक श्रीवास्तव ने मेरा आलेख  ‘फर्क है ग़ज़ल और छंद के मात्रिक विधान में” पढकर जिज्ञासा प्रकट की कि क्या उर्दू की ग़ज़लें हिंदी या संस्कृत के मूल छंदों पर आधारित हैं I इसका सीधा उत्तर है – नहीं I हमें समझना चाहिए कि उर्दू की ग़ज़ल फ़ारसी की बह्रों पर लिखी जाती हैं I उर्दू में ग़ज़ल का कोई पृथक व्याकरण नहीं है I संस्कृत भारत की प्राचीनतम आर्य भाषा है और फ़ारसी फारस की अन्यतम भाषा है I दोनों भाषाएँ अलग-अलग सभ्यता और संस्कति के बीच पनपीं, विकसित और पल्लवित हुईं I दोनों का एक दूसरे से कोई सरोकार नहीं है I दोनों का व्याकरण कठिन और उत्कृष्ट है I अतः न तो संस्कृत का छंदानुशासन कभी फ़ारसी की बह्रों का आधार बना है और न कभी बह्रों से संस्कृत के छंद अनुशासित हुए हैं I भारत में संस्कृत भाषा के दो स्वरुप हैं –एक वैदिक संस्कृत और दूसरी लौकिक संस्कृत I वैदिक संस्कृत के छंद अपने आप में मंत्र हैं और हिंदी /संस्कृत में उनका अनुगमन सभव नहीं हुआ I लौकिक संस्कृत के छंद हिंदी में आये और उन्हें ‘लौकिक’ ही कहा गया I लौकिक छंद का तात्पर्य उन छंदों से है जिनकी रचना निश्चित नियमों के आधार पर होती है और जिनका प्रयोग सुयोग्य कवि अपनी काव्य रचना में करते हैं ।

हिंदी के छंद संस्कृत छंदों से आये अवश्य पर पहले सहज साध्य छंद ही स्वीकार किये गए I धीरे-धीरे संस्कृत के अनेक छंदों पर आधारित हिंदी की छंद रचना हुयी I कुछ संस्कृत के छंद और वृत्त ऐसे भी थे, जिनके बारे में यह धारणा थी कि इन छंदों में हिंदी कविता संभव ही नहीं I इस मिथ को अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी ने तोड़ा I उन्होंने ‘प्रिय प्रवास’ काव्य में संस्कृत के कई दुस्साध्य छंदों और वृत्तो पर आधारित हिंदी कविता प्रस्तुत कर हिंदी छंद विधान की परिभाषा ही बदल दी I आज जितने भी छंद उपलब्ध है, वे अपौरुषेय नहीं रहे I परन्तु विडंबना यह है कि अति प्रचलित छंदों को छोड़कर लोग कसौटीपरक अनेक छंदों पर लिखना तो दूर उन्हें जानते तक नहीं I प्लवंगम. तिलोकी और चान्द्रायण जैसे छंद लोगों की कल्पना से दूर हैं I यहाँ तक कि जिन छंदों की एक पुख्ता नीव ‘हरिऔध’ जी खडी कर गए थे, उस पर आगे के छंदकार ढंग से एक ईट तक नहीं रख सके I संस्कृत के कुछ छंद जो हिंदी में भी बहुत लोकप्रिय हैं, उनकी एक लंबी सूची है i यहाँ कुछ छंद उदाहरण स्वरुप प्रस्तुत हैं -

1-दोहा- संस्कृत का 'दोहडिका' छन्द हिंदी में दोहा हो गया ।

।ऽ।ऽ।। ऽ। ऽ ऽऽ ऽ ऽऽ।

महद्धनं यदि ते भवेत्,  दीनेभ्यस्तद्देहि।

विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥

2- हरिगीतिका

।। ऽ। ऽ ऽ ऽ।ऽ।।ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ

मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा।

नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः।

स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,

अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥

 3-गीतिका

ऽ। ऽ ॥ ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ

हे दयामय दीनबन्धो, प्रार्थना मे श्रूयतां

यच्च दुरितं दीनबन्धो, पूर्णतो व्यपनीयताम्।

चंचलानि मम चेन्द्रियाणि, मानसं मे पूयतां

शरणं याचेऽहं सदा हि, सेवकोऽस्म्यनुगृह्यताम् ॥ 

 संस्कृत/ हिंदी में दो तरह के छंद है एक वर्णिक और दूसरा मात्रिक I वर्णिक छंदों में भी मात्रा गणना होती है कितु साथ ही उसमे वर्ण भी गिने जाते है I संयोग से मुस्लिम शासनकाल में फ़ारसी के प्रभाव से गजलों के अंतर्गत जो बह्रें आईं वे भी मात्रिक थीं I लेकिन उनका हिंदी के मात्रिक छंदों से कोई लेना-देना नहीं था I अंग्रेजों के शासन-काल में भी यही स्थिति रही I स्वतंत्र भारत में जब हिंदी में ग़ज़लें लिखी जाने लगीं तब हिंदी के ग़ज़लकारों ने फारसी की बह्रों का प्रयोग करना भी शुरू किया और उसके मात्रिक नियमो को अपनाया जो हिंदी के मात्रिक नियमों से कई मायनों में भिन्न भी थे और लचीले भी I लचीले इसलिए कि फ़ारसी में मात्रा गिराने का स्पष्ट नियम है और दो लघु मात्रा को एक दीर्घ मान लेने का नियम है, जबकि हिंदी में ऐसा नहीं है I यह लचीलापन हिंदी के छंदकारों को बहुत भाया और वे इस बीमारी को हिंदी के छंदों में भी ले आये i इससे हिंदी छंदों की वैज्ञानिकता खंडित हुयी I इस बीमारी को उजागर करने के लिए ही मैंने ‘फर्क है ग़ज़ल और छंद के मात्रिक विधान में’ शीर्षक से एक लेख भी लिखा और उसी की प्रतिक्रिया में मेरे मित्र ने प्रश्नगत जिज्ञासा की I

      उल्लेखनीय है कि हिंदी /संस्कृत के छंद एक मात्रिक से शुरू होकर लगभा 148 मात्रा तक के है I इनमे एक मात्रिक से छः मात्रिक तक निष्प्रयोज्य माने जाते हैं I छंद की असली शु’रुआत सात मात्रिक छंद ‘सुगति’ या ‘शुभगति’ से मानी जाती है I जैसे –

मूरति लसे I उर में बसे I

मन में रचे I खरभर मचे I

यही स्थिति फ़ारसी में भी है I इसकी सबसे छोटी ग़ज़ल सलीम रुक्न फ़ायलातुन 2122 या इतनी ही मात्राओं वाले अन्य रुक्नो जैसे- मुफाईलुन 1222, मुस्त्फईलुन 2212, मुतफ़ाइलुन 11212 आदि सालिम या मुजाहिब रुक्नो के आधार पर बनती है I जैसे-

रात गर हूँ I -----------------2122

फिर सहर हूँ II

संग वालों I

कल शजर हूँ II

        अब इस सात मात्रिक ग़ज़ल की तुलना हिंदी के सात मात्रिक छंद से करें तो हम पाते है कि हिन्दी के छंद में चरणांत में एक गुरु होने के अतिरिक्त गुरु लघु का कोई बंधन नही है i यह 2122 भी हो सकता है और 2212, 21112 या 111112 हो सकता है, जबकि फ़ारसी में 2122 की अनिवार्यता है I इसी प्रकार फ़ारसी की अनेक बह्रें ऐसी हैं जिनकी कुल मात्रा संख्या हिंदी के छंदों की मात्रा संख्या के बराबर है I इस लिहाज से ये बहरें हिंदी के छंदों से मिलती जुलती है I ध्यान देने की बात यह है कि सिर्फ मिलती-जुलती ही है एक समान कदापि नहीं हैं I इसका कारण यह है कि फ़ारसी की बह्रें निश्चित अर्कानो पर चलती है, जबकि हिंदी के मात्रिक छंदों में कुछ नियमों के साथ लघु गुरु को अपने हिसाब से रखने की थोड़ी सी स्वतंत्रता है I जिसे उक्त उदाहरणों में दर्शाया जा चुका है I इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हिंदी के छंदों की कसौटी हल्की है I हिंदी के वर्णिक छंद  मात्रा में यगण, मगण आदि से तो संचालित होते ही हैं, उनमे वर्ण की संख्या भी निश्चित होती है अर्थात मात्रा और वर्ण दोनों की बाध्यता रहती है I फ़ारसी की बह्रों में ऐसी कठिन चुनौती नही है I खेद का विषय यह है कि बहुत से नये छंदकारों ने फारसी की बह्रों से मिलते जुलते हिंदी छंदों को एक समान मान लिया है और हिदी के छंद नियम छोड़कर वे केवल अरकान पर छंद रचने लगे हैं I यही नही उन्होंने फ़ारसी की बह्रों के लचीलेपन को भी ज्यों का त्यों हिंदी छंदों में अपना लिया है I यह हिंदी छंदों के वैज्ञानिकता के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ हुआ है I बहरहाल नीचे हिंदी के कुछ छंदों के उदाहरण है जो बह्रों से मिलते-जुलते है I     

    हिंदी छंद                                              फ़ारसी बह्र

1-नित छंद                                             बह्र-  हज्ज मुरब्बा मक्बूज

एक नगण अर्थात III या फिर एक लघु         अरकान- मुफाइलुन  मुफाइलुन 

और एक गुरू अर्थात IS होना अनिवार्य       मात्रा- 1212 1212

मात्रा – 12                                             उदाहरण- कमाले फन दिखा गया i            ।                                             उदाहरण– लोल यमुना की लहर                              बेदर्द था रुला गया II

               बूँद उठती है  छहर ।

2-विजात छंद

  प्रथम मात्रा लघु होना अनिवार्य और मगणांत          बह्र-  हजज मुरब्बा सालिम

  (SSS )या सगणांत (IIS) पर प्रत्येक चरण की       अरकान- मुफाईलुन  मुफाईलुन 

  प्रथम व आठवी मात्रायें लघु                                मात्रा- 1222 1222                           

  मात्रा – 14                                                            उदाहरण- खुदा से जो भी डरता है    

  उदाहरण– यहॉं जब धरणि में आया ।                                       खुदा को याद करता है 

                 नया सबने कवित गाया ।                                                                       

          इसी प्रकार हिदी का मनोरम छंद फ़ारसी की बह्र रमल मुरब्बा सालिम मुकम्मल से, मधुमालती छंद बह्र रजज़ मुरब्बा सालिम से, पीयूषवर्षी और आनंदवर्धक छंद बह्र रमल मुसद्दस महजूफ से, सुमेरु छंद बह्र हजज मुसद्दस अस्तर से, सगुन छंद बह्र मुतकारिब मुसम्मन मक्बूज और शास्त्र छंद बह्र हजज मुसम्मन मक्फूफ से मिलता जुलता है I पर यह सूची इत्यलम नहीं है और भी बहुतेरे हिन्दी के छंद फरसा की बहरों से मिलते जुलते है पर वे बिलकुल समरूप कदापि नहीं है i

(मौलिक /अप्रकाशित )

 

Views: 679

Replies to This Discussion

आदरणीय गोपाल नारायणजी,

इस आलेख की ओबीओ-पटल पर हुई प्रस्तुति के विरुद्ध मैं व्यक्तिगत तौर पर कड़ी आपत्ति दर्ज़ कराता हूँ. 

बिना मूलभूत जानकारी को हृदयंगम किये, बिना विशिष्ट चर्चा के आवश्यक पहलुओं से ग़ुज़रे आलेख को उत्साहपूर्वक प्रस्तुत तो कर दिया गया है, किन्तु, इसे विश्वस्त तथा मान्य सूत्रों पर आधारित न होने के कारण कत्तई समीचीन तथा तथ्यपरक नहीं माना जा सकता.

भ्रामक तथ्यों को प्रस्तुत करते आलेख का कथ्य-समुच्चय अवश्य ही अन्यथा विवाद का कारण तो बनेंगे ही, ओबीओ की शोधपरक परिचर्चापूर्ण गरिमा में भी अनावश्यक ह्रास का कारण होंगे. क्योंकि,  यह कहा जाना कि ऐतिहासिक छंदों का व्यवहार अरूज़ तथा विशेष रूप से बह्र को तनिक प्रभावित न कर पाया होगा, सोचने से परे तो है ही, कई शोधपरक, विश्वस्त तथा मान्य हुए विचारों के विरुद्ध एक लापरवाह तर्क भी है.

ऐसे आलेख कुछ मठों द्वारा प्रस्तावित विशिष्ट मंशा को संसुस्त करते बिन्दुओं के आधार पर विस्तारित तो कर दिये जाते हैं, किन्तु इस बिन्दु के प्रति आग्रही नहीं रहा जाता कि इनका स्थापित साहित्यिक मान्यताओं पर वस्तुतः प्रभाव क्या होगा, चिंतित करता है.

ओबीओ के पटल पर आवश्यक तर्क-वितर्क की संभावना बनी रहनी चाहिए.

शुभातिशुभ

सौरभ

 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
16 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
17 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
4 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
23 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service