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भोजपुरी साहित्य Discussions (246)

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मुख्य प्रबंधक

भोजपुरी लघु कथा :- चुनाव के बात अलग होला

"हुजुर माई बाप, हम बहुत अफदरा में पड़ल बानी, मदद करीं, अब त एगो राउरे सहारा बा", मोहन लाल के मेहरारू सुरसतिया विधायक जी से गिड़गिड़ात एके स…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

22 Sep 28, 2012
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

मुख्य प्रबंधक

बात जवन भुलाला ना ( शिक्षक दिवस पर विशेष )

बात जवन भुलाला ना ( शिक्षक दिवस पर विशेष )  जिनगी में कभो कभो अइसन घटना घट जाला जवना के आदमी भुला ना पावे, बात आज से २३ बरिस पहिले के ह वोह…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

5 Sep 5, 2012
Reply by Saurabh Pandey

गोरी बस गइलू हमरी नजरिया में

पहिले हम केतना सही से रहलीं, दिल रहे केतना साफ़| देख के तू मुश्कियइलू  अइसन, दिल पर लिख दिहलू नाम| पहिले देखलू त तूहीं हमके आँख भर के,  ग…

Started by आशीष यादव

7 Jun 26, 2012
Reply by आशीष यादव

काहे रे जीवनबैरी जीवनबैरी पी ,

काहे रे जीवनबैरी जीवनबैरी पी ...   बच्चन के कपडा फाटल फाटल , पडल बाड तू गटर गटर ,  छोड़ के इ तू बढ़िया से जी , काहे रे जीवनबैरी जीवनबैरी प…

Started by Rash Bihari Ravi

16 Jun 4, 2012
Reply by Deepak Sharma Kuluvi

मुख्य प्रबंधक

निर्गुण भोजपुरी गीत : पिया अईले बोलावे

निर्गुण भोजपुरी गीत : पिया अईले बोलावे छोडे के नईहर तैयार हो, पिया अईले बोलावे, मनवा होखेला बेकरार हो , पिया से मिले के बावे , छोडे के नईह…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

25 Apr 22, 2012
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

चला हो, दिया पूरा हो!

अनिहार बहुत बढ़ गईल, चला हो, दिया पूरा हो!  (अनिहार: अंधेरा) बर्थ-डे मनय, स्कूल खरतिन बजट नाही, महगाई कुल छोरि लियेय, कौड़ी बचत नाही. काव…

Started by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'

2 Apr 6, 2012
Reply by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'

ई कइसन समाज ?

पूर्व प्रकाशित रचना होने के फलस्वरूप ओ बी ओ नियमानुसार इस पोस्ट को प्रबंधन स्तर से हटा दिया गया है | (२५ मार्च १०.३५ am) एडमिन 2012042501

Started by Brij bhushan choubey

1 Mar 24, 2012
Reply by Er. Ganesh Jee "Bagi"

आवअ लवट चलीं गाँव के ओर

गोईठा-लकड़ी के चूल्हा में भाप उठत ऊ भात बोलावे, संक्रांति के दही-चुड़ा-तिलवा  कऊड़ा में के आग बोलावे, बहुत हो गईल शहर में रहल आवअ लवट चलीं…

Started by R. K. PANDEY "RAJ"

11 Jan 16, 2012
Reply by Neelam Upadhyaya

सुनलिस नू ललमतिया ?

अन्यायी के अब तू खोर खईहे  अब ना केकरो से तू डेरईहे, आपन हक़ खातिर डेग बढ़ईहे  ना मिले त छीन भी लीहे, मत लजईहे, मत सकुचईहे सुनलिस नू ललमति…

Started by R. K. PANDEY "RAJ"

0 Jan 14, 2012

सुनलिस नू ललमतिया ?

अन्यायी के अब तू खोर खईहे  अब ना केकरो से तू डेरईहे, आपन हक़ खातिर डेग बढ़ईहे  ना मिले त छीनभी लीहे, मत लजईहे, मत सकुचईहे सुनलिस नू ललमतिय…

Started by R. K. PANDEY "RAJ"

0 Jan 14, 2012

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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
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Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

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मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

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मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
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मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
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