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संवेदनाओं की सजग अभिव्यक्ति है ‘सजग कवितायें’

 

पुस्तक का शीर्षक : सजग कवितायेँ

रचनाकार : श्री सत्यपाल सिंह ‘सजग’

प्रकाशक: आरती प्रकाशन , लालकुआं (उत्तराखंड)

पुस्तक मूल्य: 150/- रू० मात्र

 

सजगता और संवेदनशीलता साथ-साथ चलें तो लेखन जहाँ तथ्यों को सटीकता से अभिव्यक्त करता है, वहीं अपने भाव पक्ष के कारण सुहृद पाठकों के मन में सहजता से स्थान भी बना लेता है. “सजग कवितायें” काव्य-पुस्तक कवि श्री सत्यपाल सिंह ‘सजग’ जी की संवेदनशील सजगता की ही मूर्त अभिव्यक्ति है.

 

कविताओं की विषयवस्तु सामान्य जन-जीवन से इस तरह जुड़ी है कि ये पाठक को अपने ही आस पड़ोस की बात प्रतीत होती है. संग्रह की कवितायेँ बिना किसी कृत्रिमता के आवरण को ओढ़े मन में उमड़े आशु भावों की यथा अभिव्यक्ति हैं. बिना किसी गूढ़ चिंतन, मनन, मंथन, दार्शनिक विवेचन, इत्यादि के कवि नें सीधे ही अपने हृदय की संवेदनशीलता को आपके समक्ष प्रस्तुत किया है. कवि नें अपने इस प्रथम काव्य संग्रह में ईशवंदन, देशवंदन, सर्वधर्म समभाव, त्योहारों का उल्लास, वैयक्तिक संस्मरण, ओज, शृंगार, हास्य-व्यंग, सामाजिक समस्याएँ, सामाजिक कुरीतियाँ, राजनैतिक अवमूल्यन, दिशा निर्देशन सब कुछ सँजोने का प्रयास किया है.

 

सामयिक परिपेक्ष में, गांधी जी के तीन बंदरों का इंगित ले कर अफसरशाहों और सियासतदानों के नकारेपन पर व्यंग करते हुए आप कहते हैं:

/ रिश्वत ने कीं आँखें बंद/ मँहगाई से मुँह है बंद/ कान मूँदता भ्रष्टाचार/सभी तरह से हैं लाचार /

वहीं आम जन के मन में बसते ऐसे भारत की परिकल्पना जहाँ राजनैतिक शुचिता का निर्वाह हो, उसे शब्द देते हुए आप कहते हैं:

/ देश के उत्थान की रफ़्तार न अवरुद्ध हो / नववर्ष में शायद कहीं अब राजनीति शुद्ध हो /

 

शहरीकरण, मशीनी जीवन शैली, भागमभाग भरी ज़िंदगी इस सब का अभिन्न हिसा होते हुए भी मन में गाँव की सादगी को बसाए भारत की सटीक छवि कवि ‘सजग’ गाँव में ही बसी पाते हैं. तभी तो त्योहारों के उल्लास में लेखनी कहती है

/ कोयल गाये गीत बसन्ती, कागा खुश है काँव में/ सचमुच मेरा भारत बसता है अब तक भी गाँव में /  

 

आपका दायित्वबोध दैनिक जीवन शैली में व्याप्त बहुत छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज नहीं कर पता, आखिर करे भी कैसे संवेदनशील हृदय अपने ही बंधुजनो को हर खतरे से पहले ही आगाह जो करना चाहता है.

औद्योगिक इकाइयों के श्रमिकों को रक्षा उपकरणों के उपयोग करने का निवेदन करती ये पंक्तियाँ

(/ अपनाएं संकल्प कर, रक्षा के उपकरण/ हो दुर्घटना मुक्त संस्था, शुद्ध हो वातावरण/ )

या फिर सड़कमार्ग पर सुरक्षा मानकों की अवहेलना करने वाले मुसाफिरों से सुरक्षित यात्रा का आग्रह करती ये पंक्तियाँ,

(स्कूटी या स्कूटर पर, मोटरसायकिल टूव्हीलर पर / सफ़र करें तो सबसे पहले सर के ऊपर हैलमेट पहनें / ना बैठाएं तीन सवारी, ओवरटेक रिस्क है भारी / धीरे चलें सुरक्षित जाएं, सुखद सफ़र, आनंद उठाएं/ )

कवि द्वारा लेखन के माध्यम से सामाजिक दायित्व निर्वहन की सुन्दर बानगी प्रस्तुत करती हैं.

 

किसी भी औद्योगिक इकाई की नींव उसके श्रमिक ही होते हैं, यदि संस्थान व नीति नियंता इस मूल इकाई को उपेक्षित छोड़ दें तो क्या तरक्की संभव है. संस्थान संचालकोण के लिए बिलकुल ज़मीनी बात कहती हैं कवि की ये पंक्तियाँ:

/ यूनिट का मजदूर यदि होगा अति प्रसन्न / मालिक उस उद्योग का होगा अति संपन्न /

 

मन में अटूट निष्ठा और विश्वास रखते हुए कवि भारत भूमि को सत्य सहिंसा का मंदिर तो कहते ही हैं साथ ही कौमी एकता और सामाजिक एकता में ही हिन्दुस्तान की संगठित शक्ति को देखते हैं

/हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, है जिसकी पहचान / मज़हब से मत तौलो ये है मेरा हिन्दुस्तान / दहशतगर्दी के आगे कमज़ोर नहीं हो सकते हैं / भाईचारे में नफरत के बीज नहीं बो सकते हैं/

 

गौरक्षा की बात हो, या वृक्षारोपण की , बेटियों को सम्मान व सामान अधिकार दिए जाने की आवश्यकता हो या फिर पर्यावरण के संरक्षण की, ‘सजग’ जी  अपनी बेबाक लेखनी से सबके लिए दिशा निर्देश समाहित करते चलते हैं. उत्तराखंड त्रासदी पर संवेदना हो या फिर माँ गंगा की सफाई और संरक्षण का मुद्दा, आप अपनी कविताओं में सरकारी तंत्र से ज़िम्मेदार रवैये का आह्वाहन करते नज़र आते हैं.

 

यह काव्य संग्रह कवि सत्यपाल सिंह ‘सजग’ जी की पहली समग्र काव्य प्रस्तुति है, तो इसमें कुछ कमियों का होना भी बहुत स्वाभाविक ही है, जिसके प्रति ‘सजग’ रहते हुए ही भविष्य में आने वाले अन्य काव्य संकलनों की गुणवत्ता में सतत संवर्धन को सुनिश्चित किया जा सकता है. चूंकि कवि गेय पंक्तियों में अपनी बात कहते हैं तो इनकी अधिकतर अभिव्यक्तियाँ शिल्प की दृष्टि से तुकांत गीत या समतुकांत द्विपदियाँ कही जा सकती हैं.

 

यह अवश्य है कि मात्रिकता और अंतर्गेयता को साधने के नियमों से कवि अभी ज्ञात प्रतीत नहीं होते. कविताओं की भाषा, शब्द संचयन बहुत सरल है जिससे कवितायेँ बहुत सहजता से एक बार में ही पाठक की समझ के साथ साम्य स्थापित कर लेती हैं. साहित्य में अपनी बात को कम से कम शब्दों में कहे जाने की कला अपना एक विशिष्ट महत्त्व रखती है. कथ्य सांद्रता को समाहित करने का यदि कुछ कविताओं में प्रयास हुआ होता तो उन्हें और अधिक प्रभावी अवश्य ही बनाया जा सकता था. लेखन एक यात्रा है स्वयं को अभिव्यक्त करते हुए सतत परिष्कृत करते चलने की. विश्वास है कि कवि ‘सजग’ जी इस साहित्यिक यात्रा में सुगमता से काव्य के सभी तत्वों को क्रमवार समाहित करने की चेष्टा लिए सतत संवर्धन और परिष्कार की ओर अग्रसर होंगे. ‘सजग कवितायेँ’ कवि सत्यपाल सिंह ‘सजग’ जी की सार्थक संवेदनाओं की सजग अभिव्यक्ति है. इस प्रथम काव्य संग्रह पर कवि ‘सजग’ जी को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं.

 

डॉ० प्राची सिंह 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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