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अनुष्का एक आलसी लड़की थी | लाख समझाने पर भी वह टस से मस नहीं होती थी | सुबह देर से उठना ,अपने कमरे में ही चाय दूध पीना , नाश्ता करना , और फिर सब बर्तन वहीँ रख देना | कमरे की न तो वह सफाई करती और सामान भी सब अस्तव्यस्त रखती थी |

उसकी माँ और भाभी उसके कमरे को सही कर देते थे , पर धीरे धीरे उन्होंने भी बंद कर दिया | माँ कहती सफाई करने को तो वह कह देती , " माँ , मुझे सफाई नहीं करनी है | मेरा कमरा ऐसा ही मुझे अच्छा लगता है | "

उसकी माँ नाराज़ हो कर कहती , " इतना आलस भी किस काम का ?"

उसकी भाभी भी उसका मजाक बनाती , " छोटी दीदी , आप तो सच में माहान हो , गंदे कमरे में रहने के लिए हिम्मत चाहिए जो की आप में है | "

भाभी की बातों का अर्थ वह नहीं समझ पाती थी | हंस देती थी वह |

पर उसकी माँ को चिंता होती थी , ऐसा भी क्या आलस !

अनुष्का का आलस स्कूल के लिए भी था , साड़ी कापियां अधूरी , स्कूल का कार्य भी समय पर न करती थी | धीरे धीरे उसके काम को बोज़ बढ़ता जा रहा था , पर अनुष्का सुधर ने का नाम ही नहीं ले रही थी | टीचर जब डांट देती तो वह अपने किसी सहेली से कॉपी मांग लेती थी , पर धीरे धीरे सभी ने उसका साथ देना छोड़ दिया था | टीचर्स भी उसको नापसंद करने लगी थी |

उसकी सखियाँ उसको टाल देती थी | अब कोई भी उससे बात करना तक पसंद नहीं करता था | अब वह एकदम अकेली हो गयी थी | इस अकेलेपन ने उसके दुखों को और बढ़ा दिया था |

उसकी सारी ही कापियां अधूरी होने की वजह से अब उसको न तो पढाई समझ में आती थी , न ही उसको कोई मदद करने को तैयार होता था | अब उसको स्कूल जाना भी पसंद नहीं आता था , रोज़ कुछ न कुछ बहाने बना लेती थी , कभी सर दर्द , कभी पेट दर्द का ताकि स्कूल न जाना पड़े |

अनुष्का से सभी दुखी थे | अक्सर पिताजी से भी डांट खाती रहती थी | वे कहते इस का स्कूल जाना ही बंद करवा देना चाहिए |

यह सुनकर अनुष्का और भी दुखी हो गयी , वह अपनी माँ को देखती रहती थी , घर में सब से पहले उठ जाती थी और सबसे आखिर में सोती थी | भाभी भी खूब काम करती थी |

अनुष्का अब घर में रहने लगी थी, उसने जैसे चुप्पी सी साध ली थी , कमरे में ही अकेली बैठी रहती थी | माँ के समझाने पर भी वह समझ नहीं पा रही थी की उसको क्या करना चाहिए | उसके कमरे में एक खिड़की थी , उस खिड़की के सामने एक बड़ा सा जिसपर पक्षी कलरव करते थे , उसको देख कर वह बड़ी खुश होती थी |

स्कूल में इम्तिहान निकट आ रहे थे , अनुष्का का हाल बुरा था , परीक्षा में बैठी तो सही पर लिखती क्या जब कुछ याद ही नहीं किया था , वहां परीक्षा पेपर को देखकर उसका सर घुमने लगा , अक्षर नाचने लगे , वह कुछ भी नहीं लिख पाई | परीक्षा देने के बाद जब वह घर आती चुप चाप अपने कमरे में चली जाती |

घर वाले उसकी मनस्थिति को समझ रहे थे , सो ढाढ़स बाँध रहे थे | उसके पिताजी ने कहा , " कोई बात नहीं , इस बार तो जैसे तैसे परीक्षा दे दो अगली बार देख लेंगे और गर नहीं पढना तो घर में माँ का हाथ ही बंटा लेना | |

अनुष्का अंदर ही अंदर टूट गयी थी | उसको पता था इस बार का परीक्षा फल कैसा होगा ! और हुआ भी यही , परीक्षा में असफल ही रही |

उसकी सखियाँ भी उससे दूर हो गयीं थी | घर में अकेले ही अपने में सिमट कर रह गयी थी | उसको पश्चाताप हो रहा था पर आलास की वजह से उसको अपने लिए कोई राह नहीं दिख रही थी | हार मान ली थी उसने शायद |

उसके आलस की वजह से ही उसका नुक्सान हुआ था | अब माँ ने उससे काम करवाने की ठान ली थी , वे उससे छोटे मोटे काम करवा ही लेती थी, मन मारकर वह काम कर देती पर दिल से नहीं करती थी |
,
उसको लगने लगा था कि अब उससे कुछ न हो पायेगा , कभी तो वह कह देती , " मुझसे क्यों करवाते हो काम जब पता है मुझसे नहीं हो पाता | "

अक्सर वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखा करती थी , सामने के पेड़ पर उसने देखा एक नन्ही सी चिड़िया अपने लिए एक घोंसला बना रही थी | एक एक करके दूर दूर से तिनका लाती और घोंसला बनाती , फिर फुर्रर्रर्र से उड़ जाती , कभी डाल पर बैठ जाती थक हार कर पर थोड़ी ही देर बाद फिर काम पर लग जाती | धीरे धीरे ही सही कुछ दिनों तक उसने यही क्रम किया और एक दिन उसका घोंसला तैयार हो गया | उसने अपने पंख फैला कर नृत्य कर अपनी ख़ुशी को ज़हीर की |

छोटी सी जान को इस तरह से मेहनत करते देख , उसके अंदर एक नयी उर्जा का प्रवेश हुआ , उसने अपनी इच्छा शक्ति जगाई और अपने कमरे की सफाई करनी शुरू कर दी , धीरे धीरे वह अपनी माँ का हाथ भी बंटाने लगी , समय पर पढने लगी , खुद के नोट्स लिखने लगी ,नियमित उठने लगी और स्कूल भी जाने लगी , अब वह पहले वाली अनुष्का न थी , धीरे धीरे ही सही पर उसके इस परिवर्तन की वजह से उसमे सुधार हुआ |

और इस सुधार का नतीजा भी अच्छा ही आया , अब वह सबकी मनपसंद अनुष्का बन चुकी थी | कल की आलसी अनुष्का अब एक एक समझदार लड़की बन चुकी थी | इस बार भी परीक्षा हुई , पर इस बार अक्षर सुंदर लग रहे थे, परीक्षा फल भी जान सकते हो कैसा रहा होगा |

वो कहते हैं न ' मेहनत का फल हमेशा मीठा ही होता है |"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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