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पढ़ने बैठी जब भूगोल
इतिहास उसमें नज़र आया
पीछे था सामान्य ज्ञान
और था गणित का काला साया ।

अंग्रेजी लगा रूठ गयी है
दूर व्याकरण को भी कर चुकी है
वो किताब से हंस रही थी
मानो उपहास कर रही थी ।


हिंदी ,संस्कृत बोल रही थीं
शायद वार्तालाप कर रही थीं
चुप चाप उनको सुन रही थी
उनकी बातों को सोच रही थी ।

सारे विषय सामने आने लगे
विज्ञान का ज्ञान देने लगे
मन मनतिष्क भी सुन रहा था
लगा यह भी कुछ कह रहा था ।

बन्द करके आँखों को बैठी
सोचा सबसे मुक्ति मिलेगी
पर आये ख़्वाबों में सभी विषय
बोले आओ सब नाचे गायें ।

खोली आँखे -थम गये विषय
अंधेरों में जैसे जम गये विषय
किताबों में निराश ही बैठे रहे
खुद अपना इतिहास रचते रहे ।

फिर अचानक से रौशनी आई
देखा सामने एक कंप्यूटर था
गूगल खोल कर जब खोजा
सारे विषय फिर यहाँ भी पाये ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

मोहतरमा कल्पना भट्ट जी आदाब,बाल साहित्य के बारे में मुझे इतना ज्ञान नहीं है लेकिन आपकी यह कविता अच्छी लगी,सभी विषयों के बारे में आपने सलीक़े से बात की है और कंप्यूटर पर इसका अंत किया है,बहुत ख़ूब वाह ,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें । कृपया इंग्लिश कविता की मुझे लिंक दें ताकि मैं उसे पढ़ सकूँ ।
आदाब जनाब समर साहब । आपको यह बाल कविता पसन्द आई सार्थक हुआ यह प्रयास । सर मुझे लिंक भेजनी नहीं आती हैं । सादर ।

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