For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २७ (Now Closed)

माननीय साथियो,


"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के २७ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि तरही मुशायरा दरअसल ग़ज़ल विधा में अपनी कलम की धार चमकाने की एक कवायद मानी जाती है जिस में किसी वरिष्ठ शायर की ग़ज़ल से एक खास मिसरा चुन कर उस पर ग़ज़ल कहने की दावत दी जाती है.  इस बार का मिसरा-ए-तरह जनाब श्याम कश्यप बेचैन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है जिसकी बहर और तकतीह इस प्रकार है: 

"तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया

२२१          २१२१            १२२१          २१२ 
मफऊलु      फाइलातु     मफाईलु      फ़ाइलुन 
(बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ)
 
रदीफ़ :- गया 
काफिया :- अर (उधर, उतर, इधर,बिखर, पसर, गुज़र आदि)


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ सितम्बर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० सितम्बर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा | 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • शायर गण एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम ५ और ज्यादा से ज्यादा ११ अशआर ही होने चाहिएँ.
  • शायर गण तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • माननीय शायर गण अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध एवं अस्तरीय रचनाएँ बिना किसी सूचना से हटाई जा सकती हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ सितम्बर दिन शुकवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 12973

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय अम्बरीषभाईजी,आपकी इस ग़ज़ल से कई-कई भाव संप्रेषित हो रहे हैं.

मतले में पसर और पसार का क्या ही सुन्दर प्रयोग हुआ है वाह वाह ! 

फलदार बन के छाँव दी पत्थर ... . . जिसका किया भला वो ही जड़ काटता दिखता है. वाह क्या कहन है !

पाला गुरूर जो भी है हँस के... .       सलाह देता बहुत ही उम्दा शेर. बधाई, भाईजी. 

लोहा जला तो आग में...............   इस गिरह पर बार-बार बधाइयाँ. एक अलग अंदाज़ और सोच पर मन मुग्ध है.

मक्ते में आपने जिस अंदाज़ में दिल की बात के सापेक्ष ’कौन’ को खोजने की बात की है वह दिल से महूस होता है. हमसफ़र के जाने की बात चौंकाती है.

एक अच्छी ग़ज़ल के लिये पुनः दाद दे रहा हूँ, आदरणीय.

धन्यवाद आदरणीय भ्राता सौरभ जी ! सादर

आदरणीय अम्बरीश भाई जी, बेहद सधी हुई ग़ज़ल कही है. सभी अशआर लाजवाब हैं, लेकिन मैं सिर्फ दो की बात करूँगा जिनसे मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता और जो सीधे दिल में उतरने की कैफियत रखते हैं. 


//फलदार बन के छाँव दी पत्थर मिले मगर, 
लोहे को दे के बेंट ही कटता शज़र गया.// इस शेअर में बहुत गहरा फलसफा है तथा द्विआयामी भी है. फलदार पेड़ किस्मत में पत्थर. जिस पेड़ पर फल ही न होंगे वहां कोई पत्थर क्यं फेंकेगा ? इसका दूसरा आयाम "कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता न होता तो लकड़ी के काटने का रास्ता न होता." इस शेअर के लिए डबल डबल मुबारक.  

//लोहा जला तो आग में सोना न बन सका
तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया// वाह वाह वाह !! क्या मुनफ़रिद मिजाज़ की गिरह है, वीनस केसरी और सौरभ पांडेय जी के बाद यह तीसरी बेहतरीन गिरह है पूरे मुशायरे की. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय अम्बरीश भाई जी. 

आपकी उदारता सिर-आँखों पर आदरणीय योगराजभाईजी. हम आपकी इस दफ़े वाली गिरह को याद कर रहे हैं, जिसने कइयों को प्रेरणा दी है.

स्वागत है आदरणीय प्रधान संपादक जी ! दो दो शेर की विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ! सादर 

आदरणीय अम्बरीश जी, आपकी रचनाएँ बहुत कसी होती है हमेशा..यह ग़ज़ल भी बेहद सुन्दर है.....हार्दिक बधाई स्वीकार करे 

यह दो शेर बेहद अच्छे लगे 
दोनों पसार हाथ सिकंदर पसर गया
पानी के बुलबुले की तरह हर बशर गया......सिकंदर के अंतिम शब्द याद आ गए.
 
लोहा जला तो आग में सोना न बन सका
तपकर दुखों की आँच में कुछ तो निखर गया......बहुत बहुत सुन्दर शेर 

धन्यवाद डॉ० प्राची सिंह जी !

बेहतर रहें ख़याल तो छा जायेगी ग़ज़ल,
मिसरा लगा के देखा तो दिल में उतर गया

आदरणीय श्री अम्बरीश जी छा गयी ग़ज़ल | इसके दार्शनिक अंदाज़ और बेहद गहरे भाव के क्या कहने बार बार पढने की अपेक्षा करती ग़ज़ल और हर बार नया पुरसर रूप नुमाया हो रहा है | जिंदाबाद जिंदाबाद !!

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अरुण जी !

धन्यवाद नीरज जी ! एक हाथ फिक्स जरूर है पर .............आता कैसे ना   भाई जी ........ ....

तूफाँ की साजिशों से मेरा घर सिहर गया,
हो जाने क्या, अगर जो ये टूटा, बिखर गया.

वादे पे शब-ए-वस्ल के हमको यकीन था,
उस शब के इंतज़ार में जाया सहर गया.

यूं आइनों ने आज भी टोका नहीं मुझे,
मैं फिर भी शर्मसार रहा, जब उधर गया.

आँखें थी सुर्ख, बावुज़ू आरिज़ मेरे हुए,
तपकर दुखों की आँच मे कुछ तो निखर गया.

मानिंद बुत के था कभी, ठोकर में राह की,
उसकी परस्तिशों से, लो मैं भी संवर गया.

एक दिन बचाया हमने गमे-रोजगार से,
वो खो गया न जाने कहाँ, किस नज़र गया.

काशिद है लौटा लेके, ये गम से भरा जवाब,
'जो रब्त दरमयान था, कब का गुज़र गया.

तूफाँ की साजिशों से मेरा घर सिहर गया,
हो जाने क्या, अगर जो ये टूटा, बिखर गया....WAH..SHANDAR.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
57 minutes ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service