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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-72 में प्रस्तुत एवं स्वीकृत रचनाएँ

श्रद्धेय सुधीजनो !

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-72, जोकि दिनांक 15 अक्टूबर 2016 को समाप्त हुआ, के दौरान प्रस्तुत एवं स्वीकृत हुई रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया जा रहा है.

इस बार के आयोजन का विषय था – "सरहद".

 

पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.

 

सादर

मिथिलेश वामनकर

मंच संचालक

(सदस्य कार्यकारिणी)

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1.आदरणीय समर कबीर जी

विषय आधारित प्रस्तुति (दोहा छंद)

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हसरत है तो बस यही,और यही अरमान

सरहद पर जाकर लड़ूँ, देदूँ अपनी जान

 

सारी दुनिया जानती, हैबत चारों ओर

सरहद मेरी छू सके ,किस में इतना ज़ोर

 

कैसी ये मजबूरियाँ, दोनों हैं लाचार

तुम हो अपने देश में,मैं सरहद के पार

 

सरहद पे घुसपैठिये, मारें जब शबख़ून

वीरों तुम बन्दूक़ से, देना उनको भून

 

हम घर में महफ़ूज़ हैं,अपना सीना तान

सरहद पर लड़ते "समर" देखो वीर जवान

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2.आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

विषय आधारित प्रस्तुति (द्विपदियाँ)

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लड़ते मरते कटते रहना, सैनिक तुम सीमाओं पर।                                               

खेलेंगे हम क्रिकेट पाक से, भारत के मैदानों पर।।                                                        

 

सैनिक हो या आम आदमी, कट जायें मर जायें हजार।                                                       

साथ डिनर लें गजल सुने जब, आये पाक के कलाकार।।                                                

 

सरहद या संसद में मरें, क्यों इतना शोक मनायें हम।                                              

नेता मरा न सेलीब्रिटी, क्यों अपना मुँह लटकायें हम।।                      

 

अदना सैनिक आम आदमी, तू बद किस्मत है प्यारे।                                                    

नेता अफसर सेलीब्रिटी हम, ये अपनी किस्मत प्यारे।।                                                       

 

गला कटे या अंग भंग हो, घायल हों या निकले दम।                                                      

छोड़ सभी सरहद की बातें, आओ जाम छ्लकायें हम।।                                             

 

पड़ोसी देश के आतंकी, भारत में तबाही मचाते हैं।                                               

समय समय पर निंदा करने, हम टीवी पर आते हैं।।

 

बड़े शहर में बलात्कार हो, हम भी जोश में आते हैं।                                             

कन्याओं संग केंडल लेकर, हम जुलूस में जाते हैं।।                                                                       

 

केंडल मार्च विदेश में सीखा, मजा इसी में आता है।                                               

झंझट कम, पैसे की बचत, हर चैनल इसे दिखाता है।।

 

पाक समर्थक नेता हैं कुछ, फिल्मी कलाकार गद्दार।

मुँह काला कर जयचंदों को, पहुँचा दें हम सरहद पार।। 

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3. आदरणीया राजेश कुमारी जी

सरहद (आल्हा/वीर छंद)

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सरहद आल्हा /वीर छंद

भड़की ज्वाला खूँ की प्यासी, सरहद भरती है हुंकार|

उबल पड़ा फिर लहू हिन्द का ,सुन साँपों की वो फुफकार||

दुर्गा मात जहाँ की बेटी ,बब्बर शेर जहाँ के लाल|

भारत माँ का एक इंच भी ,होने ना  दें बाँका बाल||

 

सोच लिया कैसे तूने फिर ,अपना झंडा देगा गाड़|

भारत की बलशाली सेना ,सीना तेरा देगी फाड़||

 

भारत की जनता की  ताकत ,सोच रहा तू देगा बांट|

तूने जब-जब शीश उठाया, जाँ बाजों ने फेंका काट||

अपनी हद से बाहर आकर ,सिंह मांद में आया कूद|

समझ सका न प्रेम की भाषा , अब समझायेगा बारूद||

 

देश सुरक्षा की खातिर हम ,दुश्मन को कर देंगे ख़ाक|

अपने घर के भीतर रखना ,अपनी मंशा तू नापाक||

 

तू  शायद  इतिहास हिन्द का ,अबतक बैरी बैठा भूल|

हँसते हँसते फाँसी पर भी ,अपने वीर गए थे झूल||

सावरकर औ वीर शिवाजी ,नेता जी सरदार पटेल|

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख मराठे ,बुन्देली वंशज चंदेल||

 

सबने भारत माँ की खातिर ,लहराई क्रोधित शमशीर|

वापस रख नापाक इरादे, उनके बेटे  देंगे चीर||

 

फूल अलग हम दिखते चाहे ,एक मगर है अपनी डाल|

कभी न झुकने देंगे मिलकर ,अपनी भारत माँ का भाल||

धर्म अलग हैं  जात अलग हैं ,लेकिन एक सभी का खून|

आन बान पर आन पड़े तो,दुश्मन को रख देते भून||

 

कर डालेंगे टुकड़े टुकड़े ,तेरे लालच की तस्वीर|

भूले से सपने में भी तू ,मांग न लेना अब कश्मीर||

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4. आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी

सरहदें: आठ लघु-कवितायें (अतुकांत)

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यायावर थे ,

कहीं भी जाते थे ,

साथ होते , साथ जाते ,

जमीन से जुड़े ,

आपस में अलग हुए।

बस्तियां क्या बनीं ,

लोग सिमटने लगे। ........1.

 

पशुपालक थे ,

पशुओं के बाड़े बनाते थे ,

थोड़ी अक्ल और आई ,

खुद बाड़ों में रहने लगे। ........2.

 

खेत बने ,

मेंड़ें बनी ,

लकीरें खिचीं

लोग एक दूसरे से

अलग होते गए।........3.

 

साथ थे , एक अदब था ,

एक दूसरे का ख्याल लाज़िमी था ,

अलग हुए ,

एक को ठोकर लगी

दूसरे का हंसना लाज़िमी होने लगा। .......4.

 

दिल अलग हुए ,

दिमाग ने काम किया ,

सरहदें बन गईं। .......5.

 

लोग हद में रहें

कितना खर्च आता है ,

सरहदें बनाओगे ,

तो बजट भी बनोगे। ........6.

 

लोग हद में रहें ,

सरहदों की क्या जरूरत है । ........7.

 

आओ बीच की

सरहदों को मिटा देते हैं

आपस में

कुछ पैसा बचा लेते हैं। ........8.

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5.आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी

विषय आधारित प्रस्तुति (गीत)

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कलम ठिठक कर सुबक रही है

कागज़ होता आँसू  से तर

इस  उत्सव इक माँ का बेटा, लौटेगा ना  सरहद  से घर

 

मैं बोली चल पूरे कर लें

पड़े अधूरे प्रेम गीत हैं

कहती रो लेने दे उन संग

बिछड़ी जिनसे आज प्रीत है  

 

झाँकूँगी  सूनी आँखों में

जो चिपकी अब भी द्वारे पर

इस उत्सव इक माँ का बेटा ,लौटेगा ना सरहद से घर 

 

पी आवन की आस चढ़ाती

प्रेम चुनरिया में रंग पल पल

आज मरुस्थल बगिया है जो

धानी चादर ओढ़े  थी कल

 

लाल चुनरिया किसने लूटी

श्वेत वसन उसके तन देकर

इस उत्सव इक माँ का बेटा ,लौटेगा ना सरहद से घर

 

माना गीत अभी बोझिल हैं

और ह्रदय में अपने छाले

बन गवाह सरहद देखेगी

गाज गिरेगी अरि  के पाले

 

जख्मों का होगा हिसाब जो 

आज लगे अपने  सीने पर

इस उत्सव इक  माँ का बेटा, लौटेगा ना  सरहद से घर 

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6.आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी

विषय आधारित प्रस्तुति (अतुकांत)

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मंज़िलें थीं अपनी जगह,

रास्ते अपनी जगह।

हम मुसाफ़िर साथ चले,

आज़ाद हुए अपनी जगह।

 

सरहदें थीं अपनी जगह,

वास्ते अपनी जगह।

समझौते साथ चले,

समस्याएँ अपनी जगह।

 

धर्म थे अपनी जगह,

विधर्मी अपनी जगह।

कट्टर साथ चले,

लोकतंत्र अपनी जगह।

 

आतंक है अपनी जगह,

हथियार अपनी जगह।

अमरीकी साथ चले,

विनाश अपनी जगह।

 

सरहदें हैं अपनी जगह,

परमाणु हथियार अपनी जगह।

गीदड़ भभकी साथ चले,

व्यापार अपनी जगह।

 

सिंधु है अपनी जगह,

पानी अपनी जगह।

रक्तपात साथ चले,

मालिक अपनी जगह।

 

हदें हैं अपनी जगह,

सरहदें अपनी जगह।

मुद्दे साथ चले,

रुतबे अपनी जगह।

 

कला है अपनी जगह,

कलाकार अपनी जगह।

मोहब्बत-अख़लाक़ साथ चले,

विरोध अपनी जगह।

 

मीडिया है अपनी जगह

टीआरपी अपनी जगह।

प्रचार-प्रसार साथ चले,

जनता अपनी जगह।

 

संस्कृति है अपनी जगह,

साहित्य अपनी जगह।

लेखनी साथ चले,

जन-जागरण अपनी जगह।

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7. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी

"सरहदी मधुशाला" (मधुशाला छंद (रुबाई) 16-14 मात्रा पर यति अंत 22

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नापाक इरादों वालों ने, सरहद करदी मधुशाला।

रोज करे वो टुच्ची हरकत, नफरत की पी कर हाला।

उठो देश के मतवालों तुम, काली बन खप्पर लेके।

भर भर पीओ रौद्र रूप में, अरि के शोणित का प्याला।।

 

झूठी ओढ़ शराफत को जब, शरीफ सा दिखनेवाला।

उजले तन वालों से मिलकर, करने लगा कर्म काला।

सुप्त सिंह सा जाग पड़ा तब, वीर सिपाही भारत का।

देश प्रेम की छक कर मदिरा, पी कर जो था मतवाला।।

 

जो अभिन्न भाग देश का है, शत्रु ने दबा रख डाला।

दहशतगर्दों की नाच रही, अभी जहाँ साकीबाला।

नहीं चैन से बैठेंगे हम, जब तक ना वापस लेंगे।

दिल में पैदा सदा रखेंगे, अपने हक की यह ज्वाला।।

 

सरहद पे जो वीर डटे हैं, गला शुष्क चाहें हाला।

दुश्मन के सीने से कब वे, भर पाएँ खाली प्याला।

वो घात लगाये सदा पीठ पर, छाती लक्ष्य हमारा है।

पक के अब नासूर बन गया, वर्षों का जो था छाला।।

 

गोली, बम्बों की धुन पर नित, जहाँ थिरकती है हाला।

आतंकवाद का जहाँ चले, झूम झूम करके प्याला।

नहीं रहेगी फिर वो सरहद, मंजर नहीं रहेगा वो।

प्रण करते हम भारतवाशी, नहीं रहे वो मधुशाला।।

 

द्वितीय प्रस्तुति

 

इंसान के खूँ की नहीं प्यासी कभी इंसानियत,

फिर भूल तुम जाते हो क्यों अक्सर यही इंसानियत।

 

जो जिंदगी तुम दे नहीं सकते उसे लेते हो क्यों,

पर खून बहता ही रहा रोती रही इंसानियत।

 

जब गोलियाँ बरसा हमारी लाल सरहद तुम करो,

ये जानलो आतंक को ना मानती इंसानियत।

 

है जालिमों जब जुल्म तुम सरहद पे हरदम ही करो,

मजलूम की आहों में दम को तोड़ती इंसानियत।

 

थक जाओगे तुम जुल्म कर जिंदा रहेगी ये सदा,

करता 'नमन' इसको सदा सबसे बड़ी इंसानियत।

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8.आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी

ग़ज़ल

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कहाँ मैं और कहाँ है मन की सरहद

पहुँच से दूर है साजन की सरहद

 

इधर यौवन उधर दीवारे मज़हब

बिना बंदिश के थी बचपन की सरहद

 

पडोसी पर नज़र रख बागबाँ तू

बहुत खतरे में है गुलशन की सरहद

 

दिखाता है वही होता है जो सच

सदाक़त से है पुर दर्पन की सरहद

 

अमीरे शहर क्या तुझ को पता है

नहीं होती है कोई धन की सरहद

 

जहाँ बैठे हैं दहशत गर्द छुप कर

जवानों है वही दुश्मन की सरहद

 

न अपनी याद का छीनो उजाला

यही तस्दीक़ है जीवन की सरहद

 

(द्वितीय प्रस्तुति)

 

उल्फत का ले नाम

ज़ुल्म है जिसका काम

क्या होगा अंजाम

कहते हैं अखबार ----सरहद के उस पार

 

होता है हर बार

धोके का कारोबार

सोई है सरकार

रहो सदा तैयार -----सरहद के उस पार

 

घुस आया दुश्मन

अब कैसी उलझन

कहता है हर मन

घुस कर उनको मार ---सरहद के उस पार

 

कहता है भाई

लेकिन हरजाई

यह है सच्चाई

फितरत से गद्दार ----सरहद के उस पार

 

यह तस्दीक़ करो

दुश्मन से न डरो

मार के इनको मरो

देखे कुल संसार ----सरहद के उस पार

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9.आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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हम हैं जवान रक्षक देश के,  अडिग जानो हमारा अहद,

प्रबल चेतावनी समझो इसे, भूलकर पार करना न सरहद |

 

अत्याचार किया अबतक तुमने, हमने भी सहन किया बेहद,

सर्जिकल का नमूना तो देखा, अब तो पहचानो अपनी हद |

 

मानकर तुम्हे पडोसी हमने, दिया तुम्हे समुचित मान ,

उदारता को तुम कमजोरी समझे, हमारी शक्ति का नहीं कुछ ज्ञान |

 

याद करो ईकाहत्तर की लड़ाई, बांग्ला देश हुआ था तब आज़ाद,

अब लड़ोगे तो जायगा बलूच हाथ से, तुम हो जाओगे पूरा बर्बाद |

 

लड़ाई की धमकी देतो हो किन्तु, अंजाम का कुछ नहीं है ज्ञान,

नक्से पर कहीं नहीं होगा तब, पाकिस्तान का नामो निशान |

 

सोचो, बदल जाय माली अगर, कब्जेवाली आज़ाद काश्मीर का

क्या होगा अंजाम तब , पाक पोषित घृणित आतंक का ?

 

भोले भाले नौजवान आते भरने पेट, अपने और परिवार जनो की,

जेहाद का भ्रमित विष पिलाकर, उन्हें बना देतो हो तुम आतंकी  |

 

सरहद पार भारत में आकर, करते हैं वे भ्रष्ट, आतंकी उत्पात 

अकाल मृत्यु सब करते हैं प्राप्त, होता परिवार पर उल्कापात |

 

सुनो, संभल जाओ, अभी समय है, बन जाओ अब थोड़ा अकल्मन्द

खड़े वीर जवान सरहद पर हमारे, अभेद्य, सुरक्षित है हमारा सरहद |

 

द्वितीय प्रस्तुति (दोहा छंद)

 

विद्या दात्री शारदे, दान दे मुझे ज्ञान

अक्षर अक्षर व्याकरण, हूँ उनमें अज्ञान

 

सरहद विद्या का छुना, चाहत है मन प्राण

कृपा करो मुझ पर ज़रा, तमस से करो त्राण

 

लिखूँ पढूँ जो भी करूँ, निरा नहीं है काम

गलती होती सर्वदा, ख़राब होता नाम

 

व्याकरण विधि सकल कठिन, करता हूँ मैं याद

मैं क्यों जल्दी भूलता, है मेरी फ़रियाद

 

सरहद चाहे देश की, या हो अपना ज्ञान

बढना खुशहाली सदा, और बढाती मान

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10. डॉ. टी.आर. शुक्ल जी

सरहद (अतुकांत)

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एक से अनेक होने की मेरी संकल्पना को

ए प्रकृति ! तूने अनन्त विस्तार देकर,

बना डाली,

असंख्य सौर परिवार सम्हाले अनगिनत आकाशगंगायें।

कुछ वर्तुल, कुछ चपटी, कुछ छितरी सी

कोई कुंडलाकार और

कुछ रेडियो विकीर्णन से इतरायें।

क्रमागत रूप से चलने लगा तेरा यह प्रवाह

सबको काल और स्थान के निर्धारित नियमों से बाॅंधे।

मेरा सान्निध्य पाने को

चारों ओर इठलाते, मंडराते ।

तेरे इस असीम इन्द्रजाल के चक्र को

निस्प्रह मैं,

देख रहा हॅूं तन्मयता से।

सचमुच, कितना विचित्र, रहस्यमय और अद्भुद !

परन्तु, तेरे विराट परिवार की

इस कुन्डलाकार मन्दाकिनी के एक लघु सौर परिवार में,

धूल के कण से भी छुद्र इस धरती पर निवासरत

सभी जीवों से अपने को श्रेष्ठ मानने वाले

इन मानवों ने तो हद ही कर दी आज ।

अपने मूल को भूल, मानवता नष्ट कर,

देखो ! इन्होंने बना डाली हैं अपने बीच सीमायें और दीवारें,

कहने लगे हैं वे ,

कि यह है उनका देश, उनका साम्राज्य।

विपथित हो, वर्चस्व की ऐंसी होड़ लगी है कि

अपने अपने क्षेत्र को विस्तारित करने के लिये

कर रहे हैं एक दूसरे का संहार,

बड़ी ही निर्दयता से।

ए प्रकृति !

तेरे इस अनुपम असीमित सुखद परिवार में

क्या, यह सीमायें तोड़ी नहीं जा सकती ?

इनकी तुच्छ विचारधारायें,

मेरी ओर मोड़ी नहीं जा सकती ?

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11. आदरणीय मनन कुमार सिंह जी

गजल

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होंगे उनके ढ़ेरों मकसद

भूल गये हैं वे अपनी जद।1

 

पढ़ते स्वार्थ- पुराण बहुत ही

उनके अपने-अपने हैं पद।2

 

धरती को गाली बकते हैं

बढ़ जाता लगता है कद।3

 

खेल रहे सब गिल्ली-डंडा

देख रहा है बूढ़ा बरगद।4

 

अपने-अपने ढ़ोल बजाते

पीट न लें अपनी ही भद।5

 

लूट रहे, घर-घर चाँदी है

मिल ही जाती है कोई मद।6

 

सीमाएँ सब लाँघ गये हैं

चुल्लू भर सब लगते हैं नद।7

 

सच तो कड़वा लगता सबको

खुशफहमी का रहता है मद।8

 

अपनी पीठ खुजाते चलते

निज करनी पर रहते गदगद।9

 

उड़ते पंछी रोज गगन में

कुछ तो होती उनकी भी हद।10

 

बलिदानों की बात जुबानी

फिर से कहती अपनी सरहद।11

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12. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी

गजल

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हो चुका तमाम खूनी खेल बस करो मियां

दुश्मनी का दौर जोर ख़त्म अब करो मियाँ

 

बेवजह लुटा रहे तमाम आम जिदगी

दहशते हुई बहुत अजाब कम करो मियाँ

 

हर तरफ है खौफ और फ़ौज पर भी बस नहीं

जंग कोई हल नहीं तनिक तो गम करो मियाँ

 

सरहदों पे है हमारे लाडले ये जान लो 

भूल से भी छेड़खानी और मत करो मियाँ

 

गीदड़ों की भभकियों से हम नहीं डरते कभी

आततायी हम नहीं है शुक्र यह करो मियाँ

 

मुल्क के जवान एक से ही है सभी जगह 

कीमती है जिदगी जरा रहम करो मियाँ

 

कौम का जवान खून बेवजह बहा अगर

कफ्न का अदीम इन्तेजाम खुद करो मियाँ

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13. आदरणीय सचिव देव जी

ग़ज़ल

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खड़े सीमा पे जो पहरी नमन उनको हमारा है

सजग  सेना के साये में सुरक्षित देश सारा है

 

वतन की राह में कुर्बान होने चल दिया हँस कर

किसी भी वीर को माँ भारती ने जब पुकारा है

 

चली सरहद पे गोली जो भी भारत माँ के सीने पे

उसे खुद झेलने हरदम तना सीना तुम्हारा है

 

वतन की सरहदें महफूज हैं जिसके सहारे पर

ये मत भूलो किसी परिवार का भी वो सहारा है  

 

शहीदों की शहादत पर सियासत खेलने वालो

गँवारा बात हर लेकिन न ये हरकत गँवारा है

 

तुम्हारी पाक हस्ती खाक में मिलके न रह जाये

समझ सकते हो तो समझो हवाओं का इशारा है 

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14. आदरणीय सुशील सरना जी

विषय आधारित प्रस्तुति

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ज़िन्दगी

साँसों के काफ़िलों के साथ

अनाम सफर पर

चलती रही

राह

भोर और साँझ से

मिलती रही

बिछुड़ती रहे

फूल और शूल का

अहसास

शून्य हो गया

मैं

अपनी हदों में

और तुम

अपनी हदों में

सिमटती रही

गंध

अमिट थी

प्यार की

संग

बीते लम्हों के

संवारती रही

ढलना था

आखिर धूप को

धीरे धीरे

वो ढलती रही

काफ़िला

कम होता गया

हदें हमारे प्यार की

बढ़ती गयी

तुम

देह में

सिमटी रही

मैं अदेह हो गया

मैं धुऐं में

सो गया

तुम गर्द में

खो गयी

वक़्त

वो आया कि फिर

हर हद

हमारे बीच की

अमिट

सरहद हो गयी

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15. आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी

सरहदें (विषय आधारित प्रस्तुति)

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सरहदों पर सेनानी लड़ रहा

दुश्मन से, ले बंदूकों की नाली,

कैसे मनाएं यहाँ घरों घरों में

हम इन लड़ियों की दीवाली।

भूल गए हम सारी रस्में,

चरखा, तकली चलाने की।

बंदूकों को सिरहाने रख,

और तलवार गलाने की।

काल नाचता यहाँ - वहाँ,

और भैरव तांडव करता है।

सीमा पर जब   सेनानी,

गोली खाकर मरता है।

रणभैरवी रणचंडी,

नर्तन करती यहां - वहाँ।

लाशें बिछा दूँ दुश्मन की,

शपथ तेरे चरणों की माँ।

बहुत हो चुका मान-मनौअल,

अब वार्ता नहीं रण होगा।

आर-पार के इस समर में,

विकट आयुधों का वर्षण होगा।

बीत चुका वो युग जिसमें,

कपोत उड़ाए जाते थे।

तलवारें तो चमकेंगी अब,

कभी शान्ति गीत हम गाते थे।

सीमा रेखा बदलेगी अब

सहन नहीं, हम वार करेंगे।

अंदर तक दुश्मन के दुर्ग को,

ढाहेंगे, वज्र प्रहार करेंगें।

हाथ मिलाना छोड़ चुके हम,

कफ़न बाँध कर निकले हैं।

धूल चटाया नहीं तुझे तो,

माँ के सपूत नहीं सच्चे हैं।

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16. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी

ग़ज़ल

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कि कुदरत की सरहद जरूरी हुई

औ बाकी दिलों में हैं दूरी हुई।

 

निभाया नहीं कायदा कुदरती

तो फिर जिन्दगी कैसे नूरी हुई?

 

सलामत मेरे मुल्क की सरहदें

है दुश्मन की हसरत न पूरी हुई।

 

मिटा दो सभी जह्न में जो फाँसले

मुहब्बत ही जीवन की धूरी हुई।

 

कि बस जात ही जो बनीं सरहदें

कई के लिए ये गुरूरी हुई।

 

ए ‘राणा’ करो क़द्र इंसान की

भली कब किसी से भी दूरी हुई?

 

द्वितीय प्रस्तुति

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सीमा से सबकुछ बँट जाता

चलता न जोर है

बढ़ती जाए इसकी महता

अब सभी ओर है ।

 

प्रेम प्रकृति से मिलता सबको

सबकी है माता

सबके लिए बनाया इसने

अलग-अलग छाता

उसमें रहकर ही खुश रहते

मूषक व मोर है ।

सीमा से सबकुछ बँट जाता

चलता न जोर है।

 

जो सीमा कुदरत ने खींची

पालन उसका हो

छेड़-छाड़ उससे करते तो

घातन सबका हो

प्रकृति मात ने है बाँधी जो

यह प्राण डोर है

सीमा से सब कुछ बँट जाता

चलता न जोर है।

 

जो सीमाएं बनी राष्ट्र की

उनकी रक्षा हो

कपटी शत्रु कपट दृष्टि से

सही सुरक्षा हो

दिखा उसे देना जो हम में

जान का ठोर है

सीमा से सब कुछ बँट जाता

चलता न जोर है।

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17. आदरणीय नादिर ख़ान जी

क्षणिकायें

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(एक)

 

कब तक लिखे जायेंगे

मासूम लोगों के खून से

मर्दानगी के किस्से

जानना चाहती हैं सरहदें …..

 

(दो)

सरहद

पूछती है सवाल

मांगती है जवाब

जानना चाहती है कुसूर

लेना चाहती है हिसाब

क्यों खींच दी गयी सरहद

दिलों के बीच …..

इस पार से उस पार तक

बेवज़ह

चंद सिरफिरे लोगों की ज़िद पर ….

 

(तीन)

इच्छा हमारी भी नहीं थी

तुम्हारी भी नहीं

मगर ज़िद थी

थोड़े से लोगों की

और इसी ज़िद ने खींच दी सरहद

हमारे - तुम्हारे बीच

इस पार से उस पार तक

ज़मीन से आसमान तक ...

 

थोड़े से लोगों की ज़िद अब भी हावी है

बड़ी जमात पर

और बड़ी जमात

सरहद के पार दहशत में है

बंदूकों और बमों  के साये में जिन्दा है

उन्हें इंतज़ार है आज भी

घने बादलों के बीच से

झांकते एक नए सूरज का …

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18. आदरणीय मुनीश ‘तन्हा’ जी

ग़ज़ल

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लगती अब बीमार है सरहद

गोली औ हथियार है सरहद

 

सैनिक इस पर जानहैं देते

उनका तो बस प्यार है सरहद

 

अपनी-अपनी सब की सीमा

जिसके लिए तैयार है सरहद

 

इस दुनिया का सोच जो मालिक

उसको लगती तार है सरहद

 

भारत अपना देश है प्यारा

वीरों से गुलजार है सरहद

 

बेमतलब की बात है सारी

सच्ची इक दिलदार है सरहद

 

जीना मरना देश की खातिर

'तन्हा 'सरमद यार है सरहद

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

19. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी

सरहदें (दोहा छंद)

==========================================

आज खिंचे हैं तार पर, जाना है उस पार |

करना है वीरों नई , सरहद अब तैयार ||

 

सरहद का जब फासला, मिट जाएगा यार |

नहीं रहेगा शत्रु जो , बैठा सीमा पार ||

 

हो जाता है फैसला , रुक जाते हैं पाँव |

यदि सरहद हो बीच में, बँट जाते हैं गाँव ||

 

उन वीरों से पूछना, जाकर उनकी शान |

सरहद पर सर्वस्व जो , कर बैठे कुर्बान ||

 

लाँघ गया दीवार वो , रहा नहीं खामोश |

बरसा सरहद पार कर, बादल में था जोश ||

 

मिट जाती हैं सरहदें , गिरती हर दीवार |

घटती क्षण में दूरियाँ, जब होना हो प्यार ||

 

सिन्धु तट पर शान्ति की, बहती सरल बयार |

जाकर सरहद पार भी , करती है मनुहार ||

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------

20. आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण'  जी

सरहद (दोहा छन्द)

================================

 

सबकी अपनी शान है, सबकी अपनी आन।

सरहद पर फौजी खड़े, बढ़े देश का मान।।

 

भाई जो दुश्मन हुए, ना समझे ये पीर।

सरहद में सब रह गया, जमीं वायु अरु नीर।।

 

सरहद के इस खेल में, होती ठा ठा ठाँय।

गिरती लाशें देखकर, कौए करते काँय।।

 

सरहद के उस पार भी, बसता है एक देश।

कहने को तो देश है, बाकी ना कुछ शेष।।

 

तेरे मेरे खून से, होती सरहद लाल।

ऊँचे लोगों का यहाँ, बांका ना हो बाल।।

 

सरहद पर हैं हम खड़े, सोता सारा देश।

सरदी गरमी सब सहें, बिन चादर बिन खेस।।

 

अमन चैन हो विश्व में, मानव में हो प्यार।

कोई वैरी ना रहे, सरहद के उस पार।।

 

द्वितीय प्रस्तुति (ताटंक छन्द)

===========================

 

किसमें कितना दम है यारो, सरहद पर दिखलाते हैं।

वीर देश के वीर सिपाही, अपनी जान लुटाते हैं।

हम सरहद की रक्षा खातिर, अपना लहू बहाते हैं।

जग में ऊँची शान हमारी, चीड़ी बाज लड़ाते हैं। (1)

 

बहता लहू हमारे तन में, गुणो धर्म है मिट्टी का।

शमशीर हमारी प्यासी है, कण ना देंगे मिट्टी का।

सरहद पर हम पहरा देते, कर्ज उतारें मिट्टी का।

सरहद को गुलजार बनाकर, मान बढावें मिट्टी का। (2)

 

भाईचारा रखने खातिर, जोर लगाय फकीरों ने।

धरती को टुकड़ों में बाँटा, सरहद रूपी लकीरों ने।

शुक्र करो जो हमको रोका, हुक्मरान जंजीरों ने।

वरना सारा पाक न होता, जग की आज लकीरों में। (3)

 

मिटना चाहें जो सरहद पर, ना वो लोग कभी डरते।

अमर होत हैं वो मरकर भी, ना वो लोग कभी मरते।

ताबूतों के ऊपर ढेरों, फूल-कली अर्पित करते।

काश! हमारे बाद कभी तुम, परिवारों का रुख करते। (4)

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------

21. आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा “वात्सायन” जी

गीत

======================================

सुनो तो ज़रा मन की ख्वाहिश हमारी

प्रियतम है तुमसे गुज़ारिश हमारी।।

 

बैठें नदी के किसी, शांत तट पर

दुनिया के इस शोर, से दूर हट कर

बरगद की छाया में कल कल के सुर पर

कुछ ज़िंदा सपने संजोयेंगी मिलकर

दो आँखें तुम्हारी दो आँखें हमारी।।1।।

 

लबों की कथाएँ लबों से सुनेंगें

थोड़ी सी लेकिन शरारत करेंगें

छिपा लेंगें बाहों में ए प्यार तुमको

तो फिर संभालेंगीं एक दूसरे को

धड़कन तुम्हारी धड़कन हमारी ।।2।।

 

आभा तुम्हारी औ आभा हमारी

खिलाएं कोई इंद्र धनु एक भारी

कहाँ पर; अरे हाँ उस ही क्षितिज पर

एक दूसरे से, मिलती जहाँ पर

सरहद तुम्हारी सरहद हमारी।।3।।

 

(द्वितीय प्रस्तुति)

===========

ध्यान होना है ज़रूरी, सरहदी मर्याद का

शान होना है ज़रूरी, सरहदी मर्याद का

 

फिर कोई लंकेश सीता का हरण करने न पाए

ज्ञान होना है ज़रूरी, सरहदी मर्याद का

 

फिर महाभारत न रच दे, द्रौपदी की व्यंग वर्षा

भान होना है ज़रूरी, सरहदी मर्याद का

 

सर्जिकल हमले न हमको पाक फिर करने पड़ें सुन

मान होना है ज़रूरी सरहदी मर्याद का

 

है तिरंगा शान भारतवासियों का प्राण इसमें

गान होना है ज़रूरी सरहदी मर्याद का

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

22. आदरणीय रामबली गुप्ता जी

विषय आधारित प्रस्तुति (कुण्डलिया छंद)

 

बन प्रहरी रक्षा करें, सरहद पर जो वीर।

उनके बल व धैर्य का, नही भेद्य प्राचीर।।

नही भेद्य प्राचीर, त्याग कर निज सुख-सपने।

रहते सरहद पार, दूर परिजन से अपने।।

अमन-चैन हर द्वार, सुखी यदि हैं सारे जन।

कारण वीर जवान, करें रक्षा प्रहरी बन।।1।।

 

सरहद जिनकी जिंदगी, सरहद ही अभिमान।

सरहद के रक्षार्थ जो, देते नित निज प्रान।।

देते नित निज प्रान, आन पर इसकी मरते।

लड़ते डटकर वीर, पैर पीछे ना धरते।।

जिनका साहस-धैर्य, तोड़ता अरि-दल का मद।

कोटिक उन्हें प्रणाम, सुरक्षित जिनसे सरहद।।2।।

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

23. आदरणीय चौथमल जैन जी

विषय आधारित प्रस्तुति

================================

मेरी सरहद रचना मेरी , कलम ये मेरी गोली चलाये।

दुश्मन कभी न बचने पाए , सरहद पर गर वो आजाये ॥

काश कहीं ऐसा होजाये , कलम मेरी बन्दुक बन जाये।

खड़ा रहूँगा सीना ताने , सीमा पर जो दुश्मन ए ॥

बार -बार वो आता है जो , पाक लिए नापाक इरादे।

आग उगलती कलम ये मेरी , पाक को फिर खाक बनादे ॥

चीनी भी जो आँख दिखाए , घोल चासनी उसे बनादे।

आतंकी हो चाहे कोई , डिगा न पाए मेरे इरादे।

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

24. आदरणीय सतीश मापतपुरी जी

विषय आधारित प्रस्तुति

=======================================

बचपन में जिसे मदद किया , भेजा फूल दुलार से .

आतंकी को बम संग भेजा , उसने सरहद पार से .

काश ! समझ लेता कि , सरहद पार इन्सान ही हैं .

रात में बम जो फेंक रहा वो , सरहद पार मकान ही है .

कैसे नफ़रत भर गया उसमें , मिले हमेशा प्यार से .

आतंकी को बम संग भेजा , उसने सरहद पार से .

बम , गोला - आतंक के बल पे , क्या हासिल कर पायेगा ?

अपने का ही खून बहाकर , क्या साबित कर पायेगा ?

रावण - कंस भी बचा कहाँ था , अपने अहंकार से .

आतंकी को बम संग भेजा , उसने सरहद पार से .

अब भी वक़्त है अब भी रुक जा , वरना देर हो जायेगी .

मानव के ही हाथ मानवता , एक दिन ढेर हो जायेगी .

तुमको भी क्या मिलेगा भाई , ऐसे नर - संहार से .

आतंकी को बम संग भेजा , उसने सरहद पार से .

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

25. आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी

क्षणिकाएँ

===================================

(1)

कँटीले काँटों की

बाड़ ही नहीं

होती है सरहद

कुर्बानी का लहू भी

जहाँ से रिसता रहता है।

(2)

सुरक्षा का घेरा

बख़्तरबंद

गाड़ियाँ ही नहीं चलती

दिल में शौर्य की

बिजलियाँ भी कौंधती है।

(3)

मुसतैद, चाकचौबंद

जवानियाँ

चौबीसों घण्टे

माँ की याद

दिल में संजोए

पत्नी का मंगलसूत्र

नन्हीं फरमाईशें भी

दिल में तैरती रहती है।

(4)

रोज़ सुरक्षा को

धत्ता बताकर

हवा और मासूम परिन्दें

आवाजाही करते है

बेरोक टोक सीमा से।

(5)

सरहदों के

दोनों ओर

माँएँ होती है विधवा

नन्हीं कलियाँ

मसली जाती है

बूढ़े झुर्रीदार चेहरें

बेटे के आने का

करते हैं इंतज़ार।

(6)

कभी-कभी

ईद-दिवाली

दोनों ओर

कांधों पर

भारी हथियार थामे

चुपचाप गुज़र जाती है।

(7)

रोज

ठंडी हवा के झोंके

सुरक्षा की परवाह किए

एक दूसरे के

हालचाल पूछ जाते हैं

तनाव के झोंके

चलते रहते हैं।

(8)

लहू का उबाल

राजनैतिक बवाल

दोनों सरहदों में

बारहों महीने

चलता रहता है

फर्क़ बस इतना है

लहू का उबाल

कुर्बान हो जाता है

राजनैतिक बवाल

कुर्बानी का जश्न मनाता है।

(9)

कँटीली बाड़ से होकर

रोज़

भूख, ग़रीबी

शोषण, कुपोषण के

आँकड़े

आर-पार होते हैं।

(10)

तोप के मुहाने

बंदूक की नाल

मिसाइले, राकेट लांचर

अक्सर

पूनम की रात में

शीतल चाँदनी में

अपनी चमक के साथ

नहाते रहते हैं

तब चाँद भी हँसता है

सरहद के बँटवारे को देखकर।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

26. आदरणीया अर्पणा शर्मा जी

विषय आधारित प्रस्तुति

=============================

अजीब खामोश जहरीली, हवा फैली है, इन सरहदों में,

आतंकियों की रक्त-पिपासा, झेली है, इन सरहदों ने,

महकते मधुबन में अलगाव के काँटे,

चालें नई, बिखराव की, चलीं हैं, इन सरहदों में,

बुद्ध, अहिंसा, शांतिप्रिय हमारे देश में,

विघटन, विनाश की पराकाष्ठा हो ली इन सरहदों में,

हुए सूने कितने घर-द्वार, अट्टाहास करते छिपे गद्दार,

राजनीतिक रोटियाँ सिंक रहीं हैं, इन सरहदों में,

ना आतिशबाजी, ना रोशनी रंगीली,

रखना सादगी, इस दीवाली,

वीरों नें खूनी होली खेली है, इन सरहदों में,

जल,थल , पहाड़, सागर, जीव-जंतु, पाखी, अंबर,

बेतरह त्रस्त,घुटते छटपछाते इन सरहदों में,

आओ नेस्तनाबूद कर दें, आतंक के इस जंजाल को,

नष्ट करो ये जहरीली फसलें, उग आतीं इन सरहदों में,

सर्वधर्म समभाव, सर्वजन हिताय का मंत्र फूँको,

सिखलाओ शक्ति, अमन-चैन की, इन सरहदों में...!!

 

द्वितीय प्रस्तुति

======================

बहती सबके लिये पुरवैया,

हर भेदभाव भूलकर,

आसमां का खिंचा वितान,

संपूर्ण इस जगत पर,

सूर्य रश्मियाँ बिखेरें तपन,

धरणी के हर कोने पर,

शीतल चाँदनी बरसाये,

चाँद सब पर मन भरकर,

वृक्ष देते जीवनदायी श्वसन,

हर स्थान पर खुलकर,

सागर लहराते मदमस्त,

नहीं भूलते अपनी लहर,

जीव-जंतु फलते-फूलते,

रहते चहुँ ओर हिलमिलकर,

विहान भरते उन्मुक्त उड़ानें,

सब ओर खुले अंबर पर,

नदियाँ बहतीं कल-कल,

देतीं जल सबको खुलकर,

कहा, सृष्टि के रचयिता ने हँसकर,

देखो, बाँध रखी हैं सरहदें,

केवल मानव ने अपने ऊपर...!!

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

27. आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी

विषय आधारित प्रस्तुति

====================================

 

माँ भारती के लाल है हम, सरहद के रखवाले है।

गौतम बुद्ध की भूमि अपनी, अमन चाहने वाले है।।

 

सरहद पर जो खड़ा हिमालय, ऊँचा भाल हमारा है।

नींच शत्रु ने मलिन आँख से, इसको आज निहारा है।

 

रिपु-दल को औकात बताने, सरहद पर हम जायेंगे।

अरि-मर्दन कर उसी लहू से, माथे तिलक लगायेंगे।

 

देश का आन बान तिरंगा, सरहद पर पहरायेंगे

हिन्द देश के प्रहरी हम सब, इसकी लाज बचायेंगे।

 

करेंगे जब सिंह गर्जना, दुश्मन भी थर्यायेगा

नापाक इरादे वैरी के, पल भर में धुल जायेगा।।

 

नृत्य करेगी रण प्रांगण में, वीर जवानों की टोली।

विश्व काँपता रह जायेगा, सुन इन्कलाब की बोली।

 

अरि शिर गिरकर यही कहेंगे, पावन भूमि तुम्हारी है

तेरी सरहद को छूकर की , हमने गलती भारी है।

 

सरहदों की रक्षा खातिर, माथे तिलक लगाना माँ

हम वापिस अगर नहीं आये, आँसू नहीं बहाना माँ।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

28. आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी

भोजपुरी ग़ज़ल

=====================================

भाय बहिनी माय बाबू हीत नातन हमनि का

लोक रीती धरम करम सभकर सरहद हमनि का

 

सरहद क हद बान्हल हदसल लकीरी नाहि बा

जीनगी के ज़ीनत बनि सरहद सँजवत हमनि का

 

सरहद लँघिह न अबर बुझिह चलइ बेकाबू न मन

आतम हत्या एसिड पीरा अब न सहबे हमनि का

 

केहू खातिर कहत कुछऊ नून मरिचा सानि के

जीभ क लगाम बनवलन सरहद संयम हमनि का

 

सरहद बनत नाक, पानी के उठानी देख ते

सहनसीलन, न कमजोरी, मनत सरहद हमनि का

 

सरहद प देस क चुहल कर नाहि सरहद पारियन

सरजिकल अपरेसन करि नकदम करिबे हमनि का

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

समाप्त 

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Replies to This Discussion

ओबीओ महाउत्सव-72/सरहद की बेहतरीन भावपूर्ण रचनाओं के संकलन प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय मंच संचालक महोदय व समस्त सहभागी रचनाकारों को। मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

हार्दिक धन्यवाद आपका 

धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश भाईजी, अति व्यस्तता के बाद भी संकलन के लिए आभार शुभकामनायें।

अनुरोध -  जिन पदों में संशोधन है उन्हें मूल से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

लड़ते मरते कटते रहना, सैनिक तुम सीमाओं पर।                                               

खेलेंगे हम क्रिकेट पाक से, भारत के मैदानों पर।।                                                        

 

सैनिक हो या आम आदमी, कट जायें मर जायें हजार।                                                       

साथ डिनर लें गजल सुने जब, आये पाक के कलाकार।।                                                

 

सरहद या संसद में मरें, क्यों इतना शोक मनायें हम।                                              

नेता मरा न सेलीब्रिटी, क्यों अपना मुँह लटकायें हम।।                      

 

अदना सैनिक आम आदमी, तू बद किस्मत है प्यारे।                                                    

नेता अफसर सेलीब्रिटी हम, ये अपनी किस्मत प्यारे।।                                                       

 

गला कटे या अंग भंग हो, घायल हों या निकले दम।                                                      

छोड़ सभी सरहद की बातें, आओ जाम छ्लकायें हम।।                                             

 

पड़ोसी देश के आतंकी, भारत में तबाही मचाते हैं।                                               

समय समय पर निंदा करने, हम टीवी पर आते हैं।।

 

बड़े शहर में बलात्कार हो, हम भी जोश में आते हैं।                                             

कन्याओं संग केंडल लेकर, हम जुलूस में जाते हैं।।                                                                       

 

केंडल मार्च विदेश में सीखा, मजा इसी में आता है।                                               

झंझट कम, पैसे की बचत, हर चैनल इसे दिखाता है।।

 

पाक समर्थक नेता हैं कुछ, फिल्मी कलाकार गद्दार।

मुँह काला कर जयचंदों को, पहुँचा दें हम सरहद पार।। 

..............................

                                             

यथा निवेदित तथा प्रतिस्थापित 

हार्दिक धन्यवाद आपका 

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