For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-46 की समस्त रचनाओं का संकलन

आदरणीय सुधीजनो,


दिनांक -9’अगस्त 14 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-46  की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “संकल्प” था.

महोत्सव में 19 रचनाकारों नें शब्द-चित्र, कुण्डलिया छंद, दोहा छंद, कवित्त,  गीत-नवगीत, त्रिवेणी छंद, हायकू,  ग़ज़ल व अतुकान्त आदि विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह ,गयी हो, वह अवश्य सूचित करें.

 

विशेष: जो प्रतिभागी अपनी रचनाओं में संशोधन प्रेषित करना चाहते हैं वो अपनी पूरी संशोधित रचना पुनः प्रेषित करें जिसे मूल रचना से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा

सादर
डॉ. प्राची सिंह

मंच संचालिका

ओबीओ लाइव महा-उत्सव

******************************************************************************

क्रम संख्या

रचनाकार

रचना

 

1.

आ० सौरभ पाण्डेय जी

संकल्प : चार भाव-शब्द
================
१.
ललाट के गड्ढे में धँसी आँखें 
नहीं होतीं 
हारती हुई मात्र इकाइयाँ 
तभी तो साथ देती हैं लगातार कसती हुई मुट्ठियाँ 
और ढाँढस देता है 
धुन का पक्का मन. 

२. 
दृष्टि का अस्त्र कहीं मारक होता है !
विन्दुवत हो जाये बस.. 
भंगुर हो जाते हैं  
कैसे-कैसे अनचाहे प्रस्तर विश्वास ! 

३.
मैदे की लोई-सी रीढ़ पर टिका 
लिजलिजा मन  
बहुत कुछ सोचता है 
बार-बार सोचता है - 
अब नहीं, ये अब नहीं !
और फिर, 
सोचता रहता है 
ढह जाने तक. 

४.
मुलायम होंठों की मुस्कान 
चेहरे की कांति 
निश्छल आँखों की ज्योति 
लम्बी छलाँग लगाने को तैयार होते - 
नन्हें पैर 
आकाश नापने को बार-बार उठते हाथ 
बने रहेंगे...

जीत जाने तक !

 

 

 

 

2.

आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

देश प्रेम का  भाव जगे, कुछ ऐसा करें संकल्प।

जिसे निभायें जीवन भर, ना ढूंढें कोई विकल्प॥

 

बोलें और लिखें हिन्दी, हिन्दी में करें हस्ताक्षर।     

न बदले कभी उच्चारण, ऐसे  हिन्दी के अक्षर॥                

 

न केक कटे, न दीप बुझे, सब अपना धर्म निभायें।

जन्म दिवस पर बच्चों को, हम चाकू ना पकडायें॥

 

सहमति से ना साथ रहें, इज्ज़त न अपनी गवायें।

जो समाज में मान्य वही, वैवाहिक रस्म निभायें॥

 

बात बहुत  छोटी लेकिन, समझें इसकी गहराई।         

शुरु में अच्छा लगता है, पर अंत बड़ा दुखदाई॥         

 

अप- संस्कृति, नशाखोरी, व्यभिचार ग्रस्त परिवेश।       

दृढ़ता से  प्रतिरोध करें , तो सुधर जाये यह देश॥             

 

अपनी  संस्कृति  न भूलें, अच्छे  संस्कार  बनायें।         

नकल नहीं, संकल्प करें, हम अपनी अकल लगायें॥  

 

 

 

 

3.

आ० अविनाश बागडे जी

प्रथम प्रविष्टि

छन्न -पकैया छन्न -पकैया , रहा न शेष विकल्प।
जल रक्षण का इसी समय से ,करें आज  संकल्प।
==
छन्न -पकैया छन्न -पकैया , समय बचा अति-अल्प।
निर्मल - स्वच्छ हवा रखने का , करना  है  संकल्प।
==
छन्न -पकैया छन्न -पकैया , तब  हो  काया-कल्प !
सकल जगत से दूर प्रदूषण,  करने  का  संकल्प।
==
छन्न -पकैया छन्न -पकैया,  छोड़ें  सारी  गल्प।
सच्चे मन से धरा बचाने ,  मिलकर लें  संकल्प।
==
छन्न -पकैया छन्न -पकैया , विनती है ये स्वल्प।
ओ. बी. ओ. की तुम्हे कसम है , तोड़ें ना संकल्प।

 

द्वितीय प्रविष्टि

छः -हाइकु 

=======

लिया संकल्प 
पर्यावरण रक्षा 
नहीं विकल्प १ 
==
भ्रूण हत्याएं
टूटते क्यों संकल्प
कौन बतायें २ 
==
ये बलात्कार
सभ्यता के संकल्प
है तार-तार ३ 
==
संकल्प लिया
काया-कल्प न हुआ
विकल्प दिया ४ 
==

संकल्पहीन 

सभ्यता  के आयाम 

विकल्पहीन ५ 

===

रक्षा बंधन 

संकल्प -सदाचार 

मांगे बहन ६  

 

 

 

 

4.

आ० डॉ० विजय शंकर जी

प्रथम प्रविष्टि

संकल्प और विकल्प

आदर्श जीवन के लिए
ढेरों संकल्प चाहिए
सफल जीवन के लिए
ढेरों विकल्प चाहिए ।
आदमी संकल्पों की
बात करता है , और
जीवन विकल्पों के
सहारे जी लेता है ।
नेता चुनाव में संकल्पों
का ढिंढोरा पीटता है ,
बाद में विकल्पों का
पिटारा खोलता है ।
अदालतें हैं इसलिए कि
न्याय हो, संकल्प हैं ,
गुनाहगार को बचाने के
लिए हजारों विकल्प हैं ।
संकल्प एक कसम है
शिला है, दृढ़ चट्टान है ,
जटिल कठिन सन्मार्ग है ,
विकल्प सरल उपमार्ग है |
जीवन आदमी का चलता रहे
सुख से चले बस ,
यही एक संकल्प चाहिए ,
जीवन रक्षा के हों जितने विकल्प
जीने के लिए, वो सारे विकल्प चाहिए |

 

द्वितीय प्रविष्टि

संकल्प है सुविकल्प सामने चाहिए -डा० विजय शंकर

ज्ञान के लिए हर दिशा हर द्वार खुला रहना चाहिए
संकल्प हो जीवन में हर सुविकल्प सामने चाहिए ॥

संकल्प है, दोस्तों का, दूर तलक सिलसिला चाहिए
दुश्मन से भी दोस्ती का हाथ खुला रहना चाहिए ॥

संकल्प है, गरीबी आदमी की मिटनी ही चाहिए
खूब हो आज़ादी मगर आमद पर नज़र भी चाहिए ॥

संकल्प है कि ये देश, दुनिया ,जहाँन सब आपका है
मगर दूसरे को बर्दाश्त करना भी आना चाहिए ॥

आवाज़ में दम हो कि हिला के रख दे जमीं-अस्मां को
पर एक बच्चे से दुलराना भी तो आना चाहिए ॥

संकल्प हो बस कर्म का, परिणाम लक्ष्य नहीं चाहिए
कृष्ण का कर्मयोग और राम की मर्यादा चाहिए ||

 

 

 

5.

आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

प्रथम प्रविष्टि

जो संकल्प ह्रदय से करता

जो संकल्प ह्रदय से करता

प्राणपल से उसे निभाता |

  

राखी का धागा जो बांधे

उसका भाई से प्यारा रिश्ता

संकल्पों का मान रखे जो

वचनों से वह कभी न फिरता |

कुँवर हुमायु ने भी जोडा

कर्णावती से ऐसा नाता,

बहना करती प्यार अनोखा

और कही क्या भाई पाता |

जो संकल्प ह्रदय------------

 

सोच समझकर वादे करना

वादे सस्ते कभी न होते

भीष्म पितामह जो न करते

हस्तिनापुर से बंधे न होते |

सात जन्म का रिश्ता नाता

संकल्प भरी नीव पर बनता

सात समंदर पार से उनका

सदा प्यार का नाता रहता |

जो संकल्प ह्रदय------------

 

संकल्प भाव लिए व्रत होता

द्रड़ता भाव तभी मन भरता

रोजे रख फिर ईद मनाते

बिन आहुति के यज्ञ न होते |

करे सुरक्षा मातृभूमि की

संकल्पों को सम्मुख रखते,

शपथ तिरंगा की जिसने ली

नहीं कभी वे पीठ दिखाते |

जो संकल्प ह्रदय------------

 

द्वितीय प्रविष्टि

कुण्डलिया छंद

साधे जो संकल्प मन, समझों वही महान

संस्कार जब नहीं रहे, समझे क्या अपमान

समझे क्या अपमान कर्म है जिनके उलटें

बात करे आदर्श, समय आते ही पलटें

जिसे नहीं विश्वास वही न ईश आराधे

जिसे मिले संस्कार बात घर की वह साधे ||

(2)

धर्मों में भी मच रही कैसी खूब धमाल

संकल्पों के नाम पर लूट रहे है माल

लूट रहे है माल घरों को अपने भरते

जो देते उपदेश जुर्म फिर क्योकर करते

समझे कर्म प्रधान लगाता मन कर्मों में

रखे सदा सद्भाव सीख ये सब धर्मों में ||

 (3)

दृडता से सब साध ले, इसके बहुत प्रमाण

शक्ति संकल्प से तरे, राम सेतु पाषाण |

राम सेतु पाषाण सभी को पाठ पढाएं

साहस के ही पाण जीतकर सेना आएं

सतत करे प्रयास वही तो आगे बढ़ता

मात्र यही है सूत्र ह्रदय में लावे दृडता |

 

 

 

 

 

6.

आ० गिरिराज भंडारी जी

ग़ज़ल - - 2122     2122   212

रास्ता  मंज़िल  कभी  हो  जायेगा  

तय  करेगा  जो  वही  हो जायेगा      

 

रूह  की आवाज़  को भी सुन कभी

जो  गलत था वो सही  हो जायेगा

 

ठान  के इक  रोज़ तू बढ़ तो कभी

चेह्रा  क़िस्मत का  सही हो जायेगा

 

कर जमा अंदर की ताक़त को अभी

जो  असंभव  था अभी हो  जायेगा

 

छोड़  के  तम्हीद अब आगाज़ कर

हर  अंधेरा   रोशनी   हो   जायेगा  

(तम्हीद – बहाने , भूमिका )

 

डर  है  लेकिन जब बढ़ेगी  ताक़तें

एक  दिन तू  मतलबी  हो जायेगा

*संशोधित 

 

 

 

 

7.

आ० छाया शुक्ला जी

प्रथम प्रविष्टि

ठान लिया मन से मनुज, मुश्किल नहीं सुभाय |

पंथ पकड़ चल कर्म का, मंजिल खुद नियराय ||1||

चलकर ही तय राह पर, लक्ष्य साधते आप |

संकल्पित मन राखिये, कर्म फलित परताप ||2||

मुश्किल नहिं गर ठान लो, पाना निर्मल नीर |

निर्धारित कर लक्ष्य को, चलना रखकर धीर ||3||

संकल्पित मानव करे , क्षण में मदिरा त्याग |

मुश्किल नहिं गर ठान ले, जागे उसके भाग ||4||

चुन सुकीरत डगर मनुज, ध्येय करम अपनाय |

श्रम सारथ सुफलित तभी, मन प्रफुल्लित अघाय ||5||

द्वितीय प्रविष्टि

कवित्त  

जीवन चपल प्यारे, चंचल है चार दिन,
बुलबुला जल का सा, ये भी मिट जायेगा |


आया था तू बांधे हाथ, हाथ को पसारे यूँ ही
खाया पीया छोड़ यहीं, कर्म गति पायेगा ||


फिर आज लेले प्रण, परहित जीवन का, 
परहित जीवन को सफल बनाएगा |


कुदरत देती सीख , जीवन परार्थ जीना,
ये ही पुण्य साथ होगा, बाकी छूट जाएगा |

 

 

 

 

8.

आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी

प्रथम प्रविष्टि

(छंद कवित्त)

 

सती ने  बनाया वेश  सीता का सहेज कर

परवाह परिणाम  की न किन्तु  स्वल्प की I

चकित  हुये थे  वह  रूप  देख प्रभु  राम

सोच सकते थे न  वे जानकी  विकल्प की I

विदा किया उन्हें ज्यो हीं शंकर कुशल पूछ 

शिव हुये सन्न ! गुन बात  कायाकल्प की I

हुयी त्यों  अचेत सती निज परित्याग सुन

इतनी  है अमोघ  शक्ति शिव-संकल्प की I 

 

द्वितीय प्रविष्टि

(छंद –दोहा )

साधन, क्षमता व्यर्थ सब, व्यर्थ सर्व संकल्प
सिद्ध मनोरथ हो नहीं श्रम की मात्रा स्वल्प

सीमित साधन है तदपि, दृढ जिसका संकल्प
क्षमता श्रम यदि साथ है होगा कायाकल्प

करना कुछ महनीय यदि , करो प्रथम संकल्प
कठिन साधना से नहीं कोई प्रखर विकल्प

सेतु-बंध फिर उदधि पर, भण्ड, गल्प है जल्प
अकरणीय संभव हुआ, राघव का संकल्प

देवनदी भूलोक पर ! मान गये मति अल्प
स्वप्न सफल यह भी हुआ भागीरथ संकल्प

चाँद बिछौना हो गया, सजा सेज पर तल्प
खाट बिछेगी अब कहाँ मंगल का संकल्प

 

 

 

9.

आ० डॉ० गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ जी

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता-----

*******************************

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता, हम सोचें और अपनायें।

अभिलाषाओं के खंडहर पर, अभिनव महल बनायें।।

 

जन जाग्रति के लिए करें, हम एक यज्ञ संकल्‍प।

समस्‍याओं के लिए बनायें, एक अभिज्ञान प्रकल्‍प।

अनगिन लंबित कार्य योजनाओं, का ढूँढ़ विकल्‍प।

करें निदान प्रशासन से मिल, श्रेष्‍ठ प्रबंधन कल्‍प।

 

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता, हम दसों दिशा महकायें।

वन, उपवन, अरण्‍य, हर पथ, नंदन कानन बन जायें।

 

प्रतिस्‍पर्द्धा का युग है हम, कुछ तो समय निकालें।

आने वाली पीढ़ी के संग, इक आवाज मिलालें।

करने को विकसित उनकी, हर सोच बतायें मिसालें।

मार्ग प्रशस्‍त करें ले ध्‍येय, दृढ़ इच्‍छा शक्ति बनालें।

 

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता, हम कभी नहीं बँट पायें।

नफ़रत की आँधी पर मौसम, प्रेम सुधा बरसायें।

 

श्रम शक्ति से हर संसाधन, का उपयोग सरल है।

बस मन में इच्‍छा हो करने, को सहयोग प्रबल है।

कोई भी क्‍यों न हो संकट, मार्ग विकट दलदल है।

सौ हाथों के बल काँपेगा, ध्‍येय यदि अविचल है।

 

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता, हम एक साथ डट जायें।

प्रलय प्रभंजन के आगे, हम महाकाल बन जायें।।

 

 

 

 

10.

आ० राजेश कुमारी जी

कुछ त्रिवेणी 

रोज ही संकल्प करते हैं   

चाकलेट तुड़वा देती हैं   

हर दिल में छुपा इक बच्चा है

 

वो संकल्प-संकल्प खेले

और खेल में जीत भी गए

फिर पांच साल तक बात गई

  

संकल्पों की ये  इमारतें

केवल चार दिन ही रहेंगी  

वो नींव निपट थोथी बोली  

 

नित नये भाषण नए संकल्प 

खींसे निपोरता ये समाज   

विकल्प ढूँढ रहा वो भूखा

 

कर्कश पथरीली सी जमीन

तना खड़ा इक नन्हा पौधा

जीने का है सुद्रढ़ संकल्प     

 

दो कदम चढ़ना फिर* फिसलना

खुद से भी ज्यादा भार लिए

पा गई मंजिल नन्ही चींटी 

*संशोधित  

 

 

 

11.

आ० सचिन देव जी

दोहे

गली गली मैं भेडिये, फिरते सीना तान       

बे-दर्दी से रौंदते, काया फूल समान 

 

औरों की माँ बहन का, भुला दिया सम्मान 

कामुकता के फेर मैं , पशु बनता इंसान

 

नारी जीवन दायिनी ,  देती जीवनदान

जीवन-दाती कोख पर , करें जुल्म हैवान  

 

मिलकर सब संकल्प करो, मन मैं ये लो ठान

चुपकर अब न देखेंगे, नारी का अपमान                

 

आस-पास अपने सभी, रखना पूरा ध्यान

नारी की रक्षा करें, बनकर हम चट्टान

 

 

 

 

12.

आ० सीमा अग्रवाल जी

गीत .........

पत्थरों के बीच इक

झरना तलाशें

आओ बो दें

अब दरारों में ही कुछ

शुभकामनाएँ

 

झींकते दिन हैं

किलसती रात की

बेचैनियाँ

रीतता सौरभ

बिछुड़ती

मन सुमन

की सुर्खियाँ

 

टूटती सम्भावनाओं

के असंभव

पंथ पर

आओ खोजें राहतों की

कुछ रुचिर नूतन

कलाएँ

 

कंठ सूखा है भला फिर

सुर में कैसे

गीत हो?

भग्न तारों की कहो

वीणा में

क्या संगीत हो ?

 

पीर के अवरोह या

उल्लास के आरोह की

फिर भी रचते हैं

चलो कुछ

अनसुनी मधुरिम

ऋचाएँ 

 

 

 

 

13.

आ० प० प्रेम नारायण दीक्षित ‘प्रेम’ जी

प्रथम प्रविष्टि

गीत

जब कोई

कुवाँ नदी तालाबोँ का कल्मष धुल जाता है ।

जब कोई रस का प्यासा पानी पा जाता है ॥

अपना पन अपना होता है,

अपने बल की आशा ।

अपना देश घराना अपना,

अपनी बोली भाषा ॥

अपनी विद्या का प्रकाश तप तप कर आता है ।

जब कोई रमता जोगी इक क्षण रुक जाता है ॥१॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का…………………………………………

तन्मय किया न तन मन,

केवल नृत्य किया करते हो ।

विना वृत्ति के तुम कैसे,

सत्कर्म किया करते हो ॥

पीर प्रेम की सुनो वधिक तो बीन बजाता है ।

जब कोई मृग रीझ नाद पर तन दे जाता है ॥२॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का…………………………………………

राग विराग वियोग जोग मेँ,

एसी सुरति समानी ।

लिख लिख हारे शेष रह गयी,

फिर भी कथा कहानी ॥

मन मन्दिर के धवल धाम का पट खुल जाता है ।

जब कोई कवि विमल काव्य का रस पा जाता है ॥३॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का………………………………………………

करो न निन्दा कभी,

प्रशंसा भी करनी पड़ सकती ।

नही प्रशंसो अधिक,

कभी निन्दा करनी पड़ सकती ॥

मिट जाता विक्षोभ हवा का रुख थम जाता है ।

जब कोई सागर द्वन्द्वों से घिर घिर आता है ॥४॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का………………………………………………

जुड़े रहो तो हो सकता है,

बन्धन कट जायेँ।

कठिन कुचैल कुयोग कुऋतु के,

बादल छ्ट जायेँ ॥

जुड़े हुये ही लगेँ क्षितिज इतना कह पाता है ।

जब कोई आकाश उतर धरती पर आता है ॥५॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का………………………………………………

 

रुकते नहीँ विचार सतत्,

सरिता से निरझरते हैँ ।

पाने को विश्राम बात,

अन्तर्मन से करते हैँ ॥

संयम का संसार रूप का बोध कराता है ।

जब कोई वन उपवन नन्दन वन बन जाता है ॥६॥

कुवाँ नदी तालाबोँ का………………………………………………

 

द्वितीय प्रविष्टि

(वात्सल्य)

चक्र की जंगी परिधियोँ को,

जकड़ रक्खा था जड़ दौर्बल्य ने ।

सन्धि का न्यौता ?

नहीँ.......

इतिहास को अपनी कसौटी मिल रही है !

भारती है उत्तरामुख !

समय गत संकल्प है !

हो रहे साक्षी घड़ी नक्षत्र फल,

संस्कारित वेदना का बोध

उत्साहित !

रचाने मेँ लगा है कल्पतरु उल्लास

दृढ़ !

धर्म रथ आदर्श पथ पर अनुगमित है !

लक्ष्य का संधान कर.........

कर्तव्य जगता जा रहा है !

जागरण की किरण करने को विमल आकाश ;

तम को भेदती है !

प्रिय उठो जगने की वेला है ,

मनोगत दीप दर्शन दे रहा है ,

आत्म निर्भरता फुरित स्फूर्ति,

आत्म उत्सर्जन सचेतन शक्ति ,

मन को वर रही है ।

लेखनी द्युति तड़ित तपसी ओज की ,

लिख रही स्वर्णाक्षरों को !

विश्व विजयी चक्र रण,

दुर्धर्ष रचना व्यूह.............

फिर भी रौँद डाली है ।

तेरे वात्सल्य ने !

हे ! पिता................

तुम आ न पाये ॥

 

 

 

 

14.

आ० अशोक रक्ताले जी

प्रथम प्रविष्टि

कुछ दोहे

 

जीना भी संकल्प है, निर्धन होकर आज |
झपट रहे जन दुष्ट बन, जब काया पर बाज ||

 

उन्नति पथ इस देश का, चाहे जन सहयोग |

जाति-पांति के भेद बिन, मानवता का योग ||

 

चलता है से किस तरह, बदलेगा यह कल्प |
हर निर्णय अब ठोस हो, लेना है संकल्प ||

 

नीर नार पर दृष्टि में, लाना है बदलाव |

दोनों संकट में घिरे, कहते मन के भाव ||

 

देश शक्ति संकल्प से, पाए जग में मान |

चले तिरंगा थाम कर, भारत की सन्तान ||

 

द्वितीय प्रविष्टि

मनहरण कवित्त (द्वितीय रचना)

 

वसुधा का चीर तरु सरि और गिरी सारे,

मानवों का जीवन है श्वांस और प्रान है

आन बान शान हैं ये शेर मोर वन्य प्राणी,

शहरों में चिड़िया भी एक वरदान है |

लुप्त होते सारे देखो धरती से आजकल,

इनको बचाने का भी प्रण इक आन है,

दीर्धायु जीवन जीये आने वाली पीढियां भी,

प्रकृति रक्षण प्रण, लेना तब शान है ||*

*संशोधित 

 

 

 

 

15.

आ० रमेश कुमार चौहान जी

मनहरण (घनाक्षरी) छंद

वेग प्रबल मन का, अखिल सृष्टि रचना,
पल पल चंचल हो, विचरे नभ धरा ।
क्षण में सर्वत्र व्यापे, अगणित दूरी मापे,
ऐसे प्रबल मन को, कौन बांधें हैं धरा ।
दृढ़ इच्छा शक्ति ही है, जो इसको बांध सके,
बांधे है रत्नाकर जो, बांधे है नभ धरा ।
मन को जो बांध सके, संकल्प है कहलाता,
संकल्प से ही आदमी, देव बने है धरा ।।

 

 

 

16.

आ० लक्ष्मण धामी जी

ग़ज़ल – संकल्प

*****************

आदर्श  जिंदगी  का कुछ ऊँचा बना के देख
संकल्प  दृढ़ हो मन से, कदम बढ़ा के देख

**
तूफान  दीपकों   की   खुद करेगा देख भाल
तू द्वार पर किसी के बस दीये जला के देख

**
डाली  से यूँ तो तोडे़ तू तन को तमाम फूल 
अश्कों  से तू किसी के, दामन सजा के देख

**
कह  देवता  तुझे  भी तब लेंगे वो यार पूज
शमशान हो चुकी जो वो बस्ती बसा के देख

**
भर  जाएगा  खुशी से ये बीरान घर तमाम
जो  दीन  हैं  दुखी  हैं  तू सीने लगा के देख 

 

 

 

 

17.

आ० सविता मिश्रा जी

संकल्प लिया
रक्त रंजित भारत
ना होगा अब|

दर्द रहित 
दर्द से कराहता 
संकल्प उठा|

चंद संकल्प
खुद ठानों तो सही 
दुस्तर नहीं|

संकल्प कर 
नित नारी सम्मान 
बन महान|

दुर्बोध नहीं 
दुर्द्धर्ष व्यभिचारी 
कर संकल्प| 

 

 

 

18.

आ० सुशील सरना जी

चलने दो भई चलने दो
हमें आँख मूँद कर चलने दो
क्या होता है छेद होने से 
आसमान के सीने में
गर सूरज की किरणों से धरती
जलती है तो जलने दो
हम क्योँ सोचें इस धुऐं से
इंसान का क्या नुक्सान हुआ
काले धुऐं के ये बादल
ढकें आसमान तो ढकने दो
क्या होगा गर पेड़ कटेंगे
तो और पेड़ उग आयेंगे
हम क्योँ सोचें बिन पेड़ों के
कैसे बादल बन पायेंगे
कैसे होगी बिन बादल बारिश
कैसे खेतों में धान उगायेंगे 
हम क्योँ सोचें बिन रोटी पानी 
कैसे हम जिन्दा रह पायेंगे
बैठ होटल के कोने में 
हमें नैनों से नैन लडाने दो 
कश ले लें जरा जोर-जोर से
हमें धुऐं के छल्ले उड़ाने दो
चलने दो भई चलने दो…..

हर तरफ यही बस शोर मचा है
प्लास्टिक पर्यावरण का दुश्मन है
हम क्यों सोचें प्लास्टिक खाकर 
गायों ने मौत को गले लगाया है
जो पीते है दूध वो सोचें
हमें बीयर से प्यास बुझाने दो
चलने दो भई चलने दो…..

लेकिन 
कौन सोचेगा जरा बताओ
गर हम ये सब न सोचेंगे
अरे हिस्सा हैं हम इस सृष्टि तन्त्र का
हम कैसे स्वयं को अलग कर पायेंगे
इन पेड़ों से हैं जीवन सांसें
बादल भी यही बनायेंगे
बरस बरस के जमीं पे बादल
हर जीव को जीवन दे जायेंगे
धुंआ, प्लास्टिक और कचरा ही
इस पर्यावरण के दुश्मन हैं
पर्यावरण को शुद्ध बनायें
हमे ये संकल्प दोहराना है
आने वाले नए युग को
इक स्वच्छ पर्यावरण दिलाना है ……..

 

 

 

 

19.

आ० सत्यनारायण सिंह जी

मरूभूमि जीवन को मिलेगा       

कल्पतरु इक दिन सलोना

संकल्प के नित बीज बोना

 

मुस्किल भरी राहें अगोचर

देख विचलित पथ भ्रमित मन

चुप आश मन धीरज दिलाये  

फिर पाठ जीवन यह पढाये      

मन लक्ष्य जीवन तुम न खोना

संकल्प के नित बीज बोना

 

मन हार होती ना निरंतर    

फिर क्यों व्यथित परिणाम सुन मन  

उत्साह दूना मन जगाये

फल श्रम सदा मीठा कहाये  

अब हार पर मन तुम न रोना   

संकल्प के नित बीज बोना      

-सत्यनारायण सिंह 

 

Views: 1962

Reply to This

Replies to This Discussion

कृपया पुनः संज्ञान में लें आदरणीय 

विशेष: जो प्रतिभागी अपनी रचनाओं में संशोधन प्रेषित करना चाहते हैं वो अपनी पूरी संशोधित रचना पुनः प्रेषित करें जिसे मूल रचना से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा 

आदरणीया मंच संचालिका जी , निवेदन मेरी रचना को निम्न से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें ---

रास्ता  मंज़िल  कभी  हो  जायेगा  

तय  करेगा  जो  वही  हो जायेगा      

 

रूह  की आवाज़  को भी सुन कभी

जो  गलत था वो सही  हो जायेगा

 

ठान  के इक  रोज़ तू बढ़ तो कभी

चेह्रा  क़िस्मत का  सही हो जायेगा

 

कर जमा अंदर की ताक़त को अभी

जो  असंभव  था अभी हो  जायेगा

 

छोड़  के  तम्हीद अब आगाज़ कर

हर  अंधेरा   रोशनी   हो   जायेगा  

(तम्हीद – बहाने , भूमिका )

 

डर  है  लेकिन जब बढ़ेगी  ताक़तें

एक  दिन तू  मतलबी  हो जायेगा  ---    सादर निवेदित 

 

 

यथा प्रतिस्थापित 

आदरणीया प्राची जी, विनम्र अनुरोध है कि इस संकलन मैं संकलित मेरी रचना को इस प्रकार संशोधित करने की महत्ती कृपा करें !   

     

           संकल्प – दोहे

---------------------------------------------------

गली गली मैं भेडिये, फिरते सीना तान       

बे-दर्दी से रौंदते, काया फूल समान 

 

औरों की माँ बहन का, भुला दिया सम्मान 

कामुकता के फेर मैं , पशु बनता इंसान

 

नारी जीवन दायिनी ,  देती जीवनदान

जीवन-दाती कोख पर , करें जुल्म हैवान  

 

मिलकर सब संकल्प करो, मन मैं ये लो ठान

चुपकर अब न देखेंगे, नारी का अपमान                

 

आस-पास अपने सभी, रखना पूरा ध्यान

नारी की रक्षा करें, बनकर हम चट्टान

--------------------------------------------------

( मौलिक व अप्रकाशित / संशोधित  )   

यथा संशोधित 

संकल्प कर 
नारी दुःख को हर
बन महान| सविता

पता नहीं कैसे सही करते है ..शायद कमेन्ट में यहाँ सही करते होगें ...अतः हमने भी कोशिश कर दी ......:)
बहुत खुबसुरत रचनाये हैं सभी की ........सभी श्रेष्ठ को सादर नमस्ते प्रेषित

आदरणीया प्राचीजी,

रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें,

उपरोक्त नियम के तहत मैं रचना को कोई शीर्षक नहीं देता यहाँ तक कि विषय ( संकल्प आदि  ) भी नहीं लिखता , लेकिन पोस्ट करते समय और संकलन में सभी रचनाकारों के अपने- अपने  शीर्षक हैं ।  और गलत भी नहीं है , शीर्षक से ही पता लग जाता है कि रचनाकार विषय के किस बिंदु को विशेष महत्व देकर रचना को आगे बढ़ाता है।  क्या नियमानुसार हम विषय को ही शीर्षक मानकर सीधे अपनी रचना पोस्ट करें या और भी कुछ लिख सकते हैं।

संकलन कार्य हेतु हार्दिक बधाई

सादर    

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।... मतले पर…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ सुझाव पेश…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service