For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
विषय : विषय मुक्त
अवधि : 30-01-2025 से 31-01-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 169

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम 

वादी और वादियॉं (लघुकथा) :
आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे। एक मदारी भी अपने तौर-तरीक़ों से उन्हें याद कर रहा था और अपने दर्शकों को करवा रहा था। मज़मा लगा हुआ था। कुछ दर्शक बापू की फैंसी-पोशाकों में और उन जैसी भिन्न-भिन्न मुद्राओं में घेरे में खड़े हुए थे। जब तोताराम भी उड़ते -उड़ते उस मुकाम पर पहुॅंचा, तो गंगाराम को भी बापू बने हुए देखकर एकदम से चौंक गया। आदतन गाने लगा, "गंगाराम तो गॉंधी बन गयाsss गंगाराम कौन है, गंगाराम है एक आदर्शवादी का नाम... कि गंगाराम गॉंधीवादी बन गया।"
जब गंगाराम के कंधे पर तोताराम बैठा, तो मदारी की नज़र भी उन दोनों पर पड़ी। वह अपना 'शो' और अधिक फुर्ती से करने लगा। उसके सामने तीन कुत्तों पर तीन बंदर बैठे हुए थे और मदारी द्वारा फैंकी गई टोपियाॅं तीनों बंदर पहने हुए थे। मदारी फ़िर डमरू बजाते हुए चिल्ला-चिल्ला कर दर्शकों से बोला, "तुम बदलोगे, इतिहास बदलेगा! खेल देखो, खेल!"
"ये कैसा खेल खिलवा रहे हो भाई!" गंगाराम ने मदारी से पूछा।
"पहले खेल देखो, खेल! कर लो इससे मेल!" यह कहते हुए मदारी एक हाथ से डमरू ज़ोर-ज़ोर से बजा-बजाकर दूसरे हाथ से ट्रेंड वाली रंगीन टोपियाॅं ऊपर उछाल-उछाल कर झेलने लगा। दर्शक तालियों पर तालियाॅं बजाते रहे।
दर्शकों संग गंगाराम भी मदारी, बंदरों और कुत्तों के क्रियाकलापों को ध्यानपूर्वक देखने लगा। तोताराम घेरे के ऊपर उड़ता रहा।
पहले कुत्ते के ऊपर बैठे पहले बंदर ने उसकी ऑंखें अपनी हथेलियों से बंद कर रखीं थीं।
दूसरे कुत्ते के ऊपर बैठे दूसरे बंदर ने उसका मुॅंह अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था।
तीसरे कुत्ते के ऊपर बैठे तीसरे बंदर ने उसके दोनों कानों को अपनी हथेलियों से बंद कर रखे थे।
दर्शकों ने अपनी ऑंखें भी पूरी खोल रखी थीं, कान और मुॅंह भी। सब चिल्ला रहे थे, "वाह, मदारी, वाह क्या सीन है, क्या रुटीन है। सत्य और असत्य की बीन है!"
यह सब देख और सुनकर गंगाराम की जो हालत थी, उसे देखकर तोताराम उसके नज़दीक आकर गाने लगा,  "गंगाराम भौंचक्का रह गयाsss गंगाराम कौन है? गंगाराम है एक आदर्शवादी का नाम... कि गंगाराम गॉंधीवादी रह गया!"
आज का यहॉं वाला यह खेल  ख़त्म होने पर  दर्शक जाने लगे। जाते हुए कुछ तो बंदरों की ही तरह उछल रहे थे और कुछ कुत्तों की तरह ही भौंक रहे थे और कुछ मदारी के बोल ही दोहरा रहे थे। 
गंगाराम अपना चश्मा और लाठी सॅंभालते हुए मदारी के उन तीनों बंदरों के नज़दीक़ गया। पहले वाले से पूछा, "क्यों भाई, तुम तीनों तो बापू के बंदर थे न! तुम तीनों इतने क्यों बदल गये? न तो किसी की ऑंखें बंद हैं, न कान और न मुॅंह? बल्कि इन कुत्तों के बंद कर रखे तुम तीनों ने?"
जवाब में पहला बंदर बोला, "देशवासियों ने हमारे बापू के संदेशों का पालन ही नहीं किया। कुत्तों ने किया अपने-अपने तरीक़ों से। मेरा यह कुत्ता हर अच्छी चीज़ को नहीं देखता; मदारी जो दिखाता है, केवल वही देखता है।"
तभी दूसरा बंदर बोल पड़ा, " ..और मेरा यह कुत्ता अच्छी बातें नहीं बोलता। केवल वही बोलता है जो मदारी बुलवाता है।"
तीसरा कैसे चुप रहता। वह भी अपनी टोपी सॅंभालते हुए बोला, "... और जनाब, मेरा यह कुत्ता अच्छी बातें नहीं सुनता। केवल वही सुनता है, जो मदारी कहता है और जो सुनवाता है।"
मदारी मुस्कुराते हुए ज़ोर-ज़ोर से डमरू बजा-बजाकर गंगाराम से बोला, "तुम भी बदलो, इतिहास बदलेगा। खेल सीखो, खेल!"
यह सुनकर गंगाराम भौंचक्का रह गया। तोताराम उसके कंधे पर बैठ कर गाने लगा, "गंगाराम अकेला रह गया! गंगाराम कौन है? गंगाराम है एक गॉंधीवादी का नाम... कि गंगाराम आशावादी रह गया।"
(मौलिक व अप्रकाशित)
[मेरी मौलिक व स्वरचित लघुकथा शैली 'तोताराम-गंगाराम शैली' की चौथी लघुकथा]

रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बुनावट वांछित है। भाषा ध्यान आकृष्ट करती है,उस्मानी जी;जैसे खेल खिलवाना या खेल खेलाना, टोपियाँ झेलने का मतलब ?  तालियों पर तालियाँ बजाते रहे के बदले तालियाँ बजती रहीं,कैसा रहेगा? वैसे बेहतर भाव हेतु बधाइयाँ,आदरणीय उस्मानी जी।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना। क्षेत्रीय बोली का मामला है। आपकी राय और सुझावों हेतु शुक्रिया।

माँ ......

"पापा"।

"हाँ बेटे, राहुल "।

"पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है । मम्मी को बेहोशी का फिट  आ गया । अब नाश्ता वहीं कर लूँगा ।"

"राहुल तुम जाओ बेटा, मैं तेरी माँ को देख लूँगा ।" पिता ने कहा ।

"राहुल, राहुल , नाश्ता किए बिना घर से मत जाना  ।अचानक माँ थोड़ा कराहते हुए अर्द्ध बेहोशी की हालत में  बोली ।

माँ चारपाई से अर्द्ध  बेहोशी की हालत में उठी ।जैसे- तैसे चाय नाश्ता बनाया और फिर बेहोश हो गई ।

राहुल ने माँ को देखा और दुखी मन से नाश्ता किया ।    फिर न चाहते हुए भी मजबूर मन से कोर्ट के लिए चल दिया ।

"राहुल राहुल,  अरे भाई कहाँ खोए हो ? कोर्ट का टाईम हो गया है । जल्दी करो । देर हो जाएगी ।" वकील ने राहुल को झिंझोड़ते हुए कहा ।

राहुल एकदम चौंक कर अपने बीते वक्त से वर्तमान में    लौट आया ।

आज, वर्षों बाद फिर वही हालात थे । पत्नी नौकरी पर जा चुकी थी । राहुल, माँ की तस्वीर के आगे बैठा
शायद फिर माँ के आने का इंतजार कर रहा था ।

सच है जिन्दगी में हालातों की उछल पटक में अगर कोई इन्सान का साथ देता है तो वो उसकी माँ होती है चाहे वो यहाँ हो  या हो  वहाँ ।

31-1-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम वाक्य लेखकीय अभिव्यक्ति है। इस वाक्य की आवश्यकता नहीं लगती। इसका भाव कथनोपकथन में ही पिरोया जा सकता है मेरे विचार से। मॉं का कोई विकल्प नहीं। मॉं को खोने का दर्द असीम होता है। यादों में मॉं की हर बात किसी न किसी पल अचानक यूं आ जाती है।

आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया । हार्दिक आभार आदरणीय जी ।

जेठांश
"क्या?"
"नहीं समझा?"
"नहीं तो।"
"तो सुन।तू छोटा है,मैं बड़ा।मेरा हिस्सा ज्यादा होगा।"
"ऐसा क्यों?"
"इसलिए कि मैने ज्यादा जिम्मेवारी निभाई।तू सब की देखभाल की।बापू तो कब के चले गए।"
"और तेरे बाल - बच्चों की परवरिश हो गई।शादी -ब्याह सब निपट गए।घर के पैसे से ही तो हुआ सब। मेरे बच्चे अभी छोटे हैं।उनकी शिक्षा वगैरह बाकी है।"
"तो क्या?"
"यही कि अब बाप - दादा की संपत्ति में छोटांश होगा,छोटांश।समझा? कि नहीं?"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे कथनोपकथन अक्सर होते और हो रहे हैं। बूढ़ी मॉं या पिता की देखभाल करने वाले के मुद्दे पर भी!

अंत में किसी तीसरे पात्र से कोई पंचनुमा संवाद कहलवा दिया जाये, तो कैसा रहेगा? इस बार विराम चिह्नों/स्पेसिंग की टंकण त्रुटियाॅं रह गई हैं। //तू सब की देखभाल//....//तुम सब की देखभाल...// शीर्षक ठीक है लेकिन बेहतर की गुंजाइश लगती है।

मेरी सहभागिता रचना पर आप सभी की कोई प्रतिक्रिया या सुझाव?

आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति अतिरेक होगी।धन्यवाद।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
10 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
24 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service