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मत  कहो  आप  दौरे   गुरबत   है ।
चश्मेतर  हूँ  ये   वक्ते  फुरकत  है ।।

कुछ तो भेजी खुदा ने  आफ़त है ।
ये  तबस्सुम  है  या  क़यामत  है ।।

उसकी किस्मत को दाद  देता  हूँ ।
जिसको हासिल तुम्हारी कुर्बत है ।।

अलविदा  मत  कहें  हुजूर  अभी ।
बज़्म   को  आपकी  ज़रूरत  है ।।

इश्क़  में  क्या  बताऊँ  मैं  तुमको ।
थोड़ी  उल्फ़त है बाकी तुहमत है ।।

ख्वाहिशें सबकी अपनी अपनी हैं ।
हाशिये   पर  यहाँ   मुहब्बत   है ।।

कैसे आज़ाद  कह  दूं मैं  खुद को ।
दिल पे अब  तक  तेरी हुक़ूमत है ।।

 

फिक्र  मुझको  रक़ीब की तब तक ।
हुस्न  जब तक  तेरा  सलामत है ।।

कुछ  तो  इल्ज़ाम  मुझ पे आएगा ।
ये तो  दुनिया  है इसकी आदत है ।।

तब   मिली  है  शिकस्त  आंखों ।को । 
जब  भी अश्क़ों ने  की बगावत  है ।।

ख्वाहिशें  सबकी अपनी  अपनी हैं ।
हाशिये   पर    यहाँ    मुहब्बत   है ।।

           नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on December 24, 2019 at 2:19pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'कुछ तो भेजी खुदा ने  आफ़त है ।
ये  तबस्सुम  है  या  क़यामत  है'

इस मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

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