For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर्ज़ का मर्ज़ होता है कैसा

समझ कभी ना पाया था

जब तक कर्ज में नहीं था डूबा

ऋणकर्ता का मजाक बनाया था

समय बदलते देर ना लगती     

अपनी मूर्खताओ की वजह से

मैं भी जब बाल-बाल बंधवाया

तब समझ में आया था ||

 

माँ कहती थी कर्ज ना लेना

गरीबी में तुम रह लेना

मुँह छोटा ओर पेट बड़ा

कर्ज का होता है बेटा

आसानी से ये नहीं चुकता

अच्छे-अच्छे को ले डूबता

पर आसानी से नहीं चुकता

इतना समझ लेना बेटा ||

      

भाई-बन्धुओ ने मना किया

बहन का प्रस्ताव भी ठुकराया था

महत्वकांक्षा में अंधा हो मैं

लालच में डुबकी लगाया था

पानी की तरह पैसा बहा मैं

अपने, हर कर्म पर इतराया था

उल्टे सीधे खर्चे कर

कुछ समझ ना पाया था||

      

एक का भुगतान कर चुका

दूजा घर पर पाता था

ब्याज देता या मूल चुकाता

समझ ना कुछ भी आता था

दिन- प्रतिदिन ऋण बढ़ता जाता

सोच-सोच के मूर्खता पर अपनी

आत्मग्लानि से मैं भर जाता

समझ कुछ ना आता था ||

 

गिरवी रख दी वस्तुयें सारी

हर काग-जात पर लोन लिया

एक ओर ऋण को कम मैं करता  

दूसरी ओर बढ़ जाता था

क्या करूँ कैसे करूँ

छुटकारा पाने को अपने कर्ज से

हर हत कंडे अपनाता था

पर समझ ना कुछ भी आता था

 

सिर झुकाये बैठा हूँ मैं

कुछ भी ना मेरे पास रहा

बच्चे को कुछ दिला ना पाऊँ

पैसे-पैसे को मोहताज हुआ

अपनी मूर्खता पर आँसू बहाऊ

या हसी उड़ाऊ

समझ ना कुछ आ रहा

किसी चमत्कार की आस, कभी

किस्मत को अपनी कोस रहा||

 

दिल की धड़कने बढ्ने लग गई

ना खुद पर भी विश्वास रहा

पुजा-भक्ति में डूब के मैं  

आशा की किरण को ढूंढ रहा

अपनों का अब साथ भी छूटा     

ना ही अब अब कोई दोस्त रहा

कर्ज के दर्द को ब्यान कर मैं

कहानी “फूल” की सुना रहा ||

 

“मौलिक व अप्रकाशित” 

Views: 457

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on September 12, 2019 at 12:14pm

विजय भाई मेरी रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by vijay nikore on September 12, 2019 at 6:37am

सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय फूल सिंह जी

Comment by PHOOL SINGH on September 9, 2019 at 10:41am

कबीर साहब जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरी रचना के लिए थोड़ा सा समय निकाला आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 3:13pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
4 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service