For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनकहा रिश्ता (लघुकथा)

9 फ़रवरी 2019

प्रिय डायरी

आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल पड़ी। कितनी ही बार मैंने उसको कहा था,"अम्मा अब रहने दे, आराम किया कर, आपकी तनख्वाह मैं दे दिया करूँगा।" वह हमेशा मुझसे कहती रही," चिन्न बाबू! इस तगाड़ी को उठाकर ही मैं बड़ी हुई हूँ, बूढ़ी हुईं हूँ, पर मेरी तगाड़ी मुझे समझती है मैं उसके बिना नही जी पाऊँगी। अब देखो वह गिर गयी बात भी तो नही मानती , उसके आगे-पीछे भी तो कोई नहीं है ,उसको मैंने अस्पताल तो पहुँचा दिया है, इलाज तो मुझे ही करवाना होगा, ड्यूटी होउर्स में जो गिरी है... पर एक बात आज मुझे कचोट रही है, वह तो मुझे बेटा मानती है, बचपन में जब भी बाऊजी के सामने माँ की ज़िद्द करता था, वे आकाश की ओर देखने लगते और अक्साई मुझे डाँट देते तब इसी कनक अम्मा ने मुझे प्यार दिया और माँ की कमी कभी मेहसूस नही होने दी ... पर क्या मैं कभी उनको माँ मान सकूँगा। मालिक और मज़दूर के बीच की इस दीवार को क्या मैं कभी ...

तुम्हारा लेखक

विकास

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 18, 2019 at 9:25pm

आदरणीय शहजाद जी आपको रचना पसंद आई शुक्रगुज़ार हूँ|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 18, 2019 at 9:24pm
नमस्ते आदरणीय समर भाई,
आपको रचना अधूरी लगी, कथानक कमजोर लगा , मुझे और मेहनत करनी होगी इसके माने | प्रयास करुँगी| सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 18, 2019 at 8:35pm

आदाब। डायरी शैली में बहुत बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट 'रौनक' साहिबा।

Comment by Samar kabeer on February 17, 2019 at 2:05pm

बहना कल्पना भट्ट "रौनक़' जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

लेकिन रचना अभी अधूरी अधूरी सी लग रही है,डायरी की बड़ी बहन कौन थी?कथानक भी कमज़ोर है,इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है,कुछ टंकण त्रुटियां भी देखें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service