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 न्याय के मंदिर की मेरी पहली परिक्रमा थी i कोर्ट के आदेश के अनुसार मुझे एक कर्मचारी की सैलरी कोर्ट में जमा करनी थी I मैं ठीक दस बजे चेक लेकर कोर्ट पहुंच गया I कैशियर साहब ग्यारह बजे आये और बोले –‘इसे स्टैंडिंग काउंसल से वेरीफाई करा के लाओ I’

स्टैंडिंग काउंसल ने डांट लगाई –‘हाउ यू डेयर कम डायरेक्टली टू मी I कम थ्रू माय आफिस I’  मैं आफिस गया I संबंधित बाबू सीट पर नहीं थे I वह एक घंटे बाद आये और आकर मोबाईल पर बतियाने लगे I दस मिनट बाद खाली हुए तो झुंझलाकर बोले- ‘क्या है ?

‘सर! यह चेक साहब से वेरीफाई कराना है i’

‘ठीक है, आप एक घंटे बाद आइये I‘ 

मैं एक घंटे बाद पहुँचा, तो बाबू जी बोले –‘डोंट माईंड, ज़रा लंच कर लूं I’

लंच करने के बाद वे चाय पीने चले गये I चाय पीकर आये तो बोले- ‘आप थोड़ा रुकिये, साहब ने डिक्टेशन के लिए बुलाया है I’

एक घंटे बाद पुन: प्रकट हुए, बोले –‘दो मिनट रुकिये कुछ फाइलें कल की है उन पर साहब के साईन करवा लूं I वरना साहब चले जायेंगे I’

मेरे काटो तो खून नहीं I मैं घबराकर बोला –‘साहब चले जायेंगे, तो मेरा काम कैसे होगा ?

बाबू जी ने मुझे यूं घूर के देखा, मानो कोई अजूबा देख रहे हों, फिर कुढ़ कर बोले –‘कोर्ट में पहली बार आये हो ? प्रोसीजर तक मालूम नहीं ? मुंह उठाये चले आते है –I’-

बाबू जी फाईल लेकर चले गए I लौट कर आये तो पौने पांच बज चुके थे I आते ही बोले –‘आप अपना ड्राफ्ट मुझे दे दीजिये I मैं फाइल चला दूंगा I’

मैंने उन्हें ड्राफ्ट दे दिया –‘बाबू जी इसकी रिसीप्ट दे दीजिये i’

बाबू जी ने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा –‘अजीब अहमक आदमी हैं, आप I रिसीप्ट लेना है, तो डाक में दो I जब मुझे मार्क होकर मिलेगी तब मैं देखूंगा और हाँ इसके साथ अपने अधिकारी की ओर से एक एप्लीकेशन लगाइए कि इसका वेरिफिकेशन क्यों चाहिए?’

मैं मायूस हो गया I अब कल पहले दफ्तर जाना होगा I फिर --- I मैं लौटने वाला ही था कि  कि मेरी नजर एक परिचित पर पड़ी I वह मेरे विभाग में ही था और कोर्ट केस देखता था I मैंने उसे रोककर अपनी सारी परेशानी बताई I मेरी हालत देखकर वह धीरे से हँसा और बोला – ‘वह ड्राफ्ट कहाँ है ?’

मैंने उसे ड्राफ्ट दिखाया i उसने ड्राफ्ट ले लिया और बोला –‘क्या पचास रूपये टूटे होंगे ?’

मैंने उसे रूपये दिए I वह थोड़ी देर में आने का आश्वासन देकर चला गया I दस मिनट बाद वह फिर प्रकट हुआ I उसके चेहरे पर सफलता की मुस्कान थी -‘ले यार तेरा काम तो हो गया i नाहक परेशान था I ’

मैंने चकराकर पूछा– ‘मगर यह हुआ कैसे ?’

वह फिर मुस्कराया – ‘अभी बच्चा है तू I मैंने साहब के अर्दली को पचास रूपये पकडाये और उसने फ़ौरन वेरीफाई करा के दे दिया I बस I’

(मौलिक /अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on February 13, 2019 at 4:04pm

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on February 12, 2019 at 8:20pm

वाह आदरणीय गोपाल जी बहुत ही मार्के की लघु कथा का सृजन किया है आपने सर। एक यथार्थ को उजागर करती इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई। यही सब तो हो रहा है आजकल। घास दिखाते जाओ काम कराते जाओ। अति सुंदर।

Comment by Surkhab Bashar on February 12, 2019 at 7:57pm

आ. डॉ.  गोपाल  नारायन श्रीवास्तव जी 

बहुत सुंदर ढंग से लघू कथा लिखी है ऐसा हर   दफ्तर मे अमूमन होता ही है वाह वाह वाह वाह वाह 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 12, 2019 at 1:50pm
जी, ऐसा ही होता है। बिल्कुल सत्य कथा

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