For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल २१२२ २१२२ 
बात जो मन में तही है
कुछ कही कुछ अनकही है
भार ढोती है जगत का
तब धरा यह पुज रही है
याद वो, आये न आये
पर सताती रोज ही है
है कठिन यह जान पाना
क्या गलत है क्या सही है
इस कदर छाया है दिल पर
हर जगह दिखता वही है
सच कहो अब चुप न बैठो
क्यों जमा मुँह में दही है
राम के दरबार में सब
आपकी खाता बही है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 7, 2018 at 3:34pm

आदरणीया babitagupta जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by babitagupta on July 16, 2018 at 8:53pm

बेहतरीन गजल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय बसंत सरजी।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:41pm

आदरणीय विजय निकोरे जी दिल से शुक्रिया आपका , सह कहा आपने इस मंच पर आदरणीय समर कबीर जी का नेह बरसता ही है 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:40pm

आदरणीय अजय तिवारी जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:39pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:39pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by Samar kabeer on July 14, 2018 at 6:00pm

भाई विजय निकोर जी,आपकी महब्बत सर आँखों पर ।

Comment by vijay nikore on July 14, 2018 at 2:57pm

भाई समर जी, आप हमेशा इतनी अच्छी सहीह जानकारी देते हैँ कि पढ़ते ही और जानने को मन करता है। ...और मन यह भी करता है कि आपको बस सुनता रहूँ।

Comment by vijay nikore on July 14, 2018 at 2:54pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई

Comment by Ajay Tiwari on July 14, 2018 at 6:13am

आदरणीय बसंत जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
14 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
44 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक…"
50 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब।  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार…"
57 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service