For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ५९

2122 2122 2122 212

जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे
मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे

जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे
पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे

मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में
लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे

बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ
वो परिंदे मर गये जो घोंसलों के पास थे ।

आपने देखा नहीं मुझको सरापा क्या करूँ
नक़्श मेरी कोशिशों के आबलों के पास थे

आके जाना मर्क़ज़े तख़लीक़ की आगोश में
ख़ल्क़ के सब दायरे तो फ़ासलों के पास थे

होशवालों में कहाँ बेदारियों का ज़िक्र था
जज़्ब के हालात सारे ग़ाफ़िलों के पास थे

चाहता हूँ राज़ लिक्खूँ और गाऊँ बज़्म में
जो तराने जन्नतों की बुलबुलों के पास थे

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 5, 2018 at 10:26am

आपका ह्रदय से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2018 at 8:00pm

आ. भाई राज नवादवी जी, यह गजल भी उम्दा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 7:16pm

अब ठीक है ।

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:27pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत से हम हमेशा  की तरह मुफ़ीद हुए. आपकी हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. हाहाहा, कलाम का सिलसिला बस यूँ ही बना रहे, मेरी आमद पे दोस्तों की दुआ रहे. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:22pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी, आपकी ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का ह्रदय से आभार. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 4:21pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी दाद एवं हौसला अफज़ाई का ह्रदय से आभार. सुझाए गए बदलाव पे अमल करूँगा. 'जज़्ब के हालात तो सब ग़ाफ़िलों के पास थे' को बदल कर 'जज़्ब के हालात सारे ग़ाफ़िलों के पास थे' ऐसा कर दूंगा. 

सादर  

Comment by Mohammed Arif on July 2, 2018 at 2:04pm

आदरणीय राज़ नवादवी जी आदाब,

                          बहुत ही गांभीर्य भाव लिए बेहतरीन "एक अंजान शायर का क़लाम ।" पता नहीं और कितने कलाम होंगे । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 2, 2018 at 12:51pm

एक और बेहतरीन ग़ज़ल...बहुत ही शानदार आदरणीय

Comment by Samar kabeer on July 2, 2018 at 12:30pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ये ग़ज़ल भी उम्दा हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

हुस्न-ए-मतला में 'बुझदिलों' को "बुज़दिलों" कर लें ।

'मैं कहाँ पे चुक गया इस ज़िन्दगी की दौड़ में'

इस मिसरे में 'चुक' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "चूक'" इस मिसरे को यों कर सकते हैं:-

'मैं कहाँ चूका बता इस ज़िन्दगी की दौड़ में'

'आपने देखा नहीं मुझको सरापा क्या करें'

इस मिसरे के अंत में 'करें' को "करूँ" कर लें ।

सातवें शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें 'हालात तो' ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service