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यौवन रुत ...

चक्षु आवरण पर
प्रत्यूष का सुवासित स्पर्श
यौवन रुत की प्रथम अंगड़ाई का
प्रतीक था

आँखों की स्मृति वीचियों पर
अखंडित लालसाओं की तैरती नावें
बहुबंध में सिमटी
अमर्यादित अभिलाषाओं की
प्रतीक थी

मौन अनुबंधों के अंतर्नाद
निष्पंद देह में
उन्माद क्षणों के चरम अनुभूति के
प्रतीक थे

मयंक मुख पे
केश मेघों की अठखेलियाँ
कामनाओं की अनंत तृषा की
प्रतीक थीं

देहाकर्षण
नीली झील में तैरते
पूनम के चाँद के
अनकहे
मौन समर्पण का
प्रतीक था

शयन कक्ष के
पर्दों की स्थिरता
स्वीकृति की देहरी पर
शब्हीन स्तब्धतता के आवरण में
खंडित हदों में
तृप्त तृषा की
प्रतीक थी

अंजन की लकीरों से
कपोल घाटियों पर
विछोह के भित्ति चित्र
तिरोहित प्रेमासक्ति के
प्रतीक थे

बन गए आधार
अनंत प्रतीक्षा में
श्वासों का
जितने भी
स्मृति आवरण में
अंतर्घट में विचरण करते
स्नेहिल स्वप्नों के
प्रतीक थे

प्रत्यूष =सुबह का समय , तिरोहित =छिपा हुआ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:17pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:16pm

आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम। ... सृजन आपकी स्नेहाशीष का दिल से आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:16pm

आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:16pm

आदरणीय मोहित मिश्रा जी सृजन को मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:16pm

आदणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति पर आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 8:16pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का दिल से शुक्रिया।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2018 at 1:56pm

आदरनी सुशील जी इस गहन रचना पर हार्दिक बधाई ....सादर 

Comment by Ajay Kumar Sharma on May 14, 2018 at 11:44pm

मंत्रमुग्ध करती रचना पर बधाईस्वीकार करें....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2018 at 8:49pm

आ. भाई सुशील जी, सुंदर कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 14, 2018 at 7:44pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ही उम्दा कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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