For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अपनी धरती -अपना अंबर" - अर्पणा शर्मा /पर्यावरण दिवस पर विशेष

आओ बनाएँ निर्मल, अक्षय, सुंदर ,
यह प्रिय धरती अपनी-अपना अंबर

प्रकाश ध्वनि जलवायु में,
सर्वत्र प्रसारित प्रदूषण विषधर,
करें पर्यावरण विषैला नित ड़ंस-ड़ंस कर,
बढ़ गये हैं छिद्र ओजोन परत पर,
नानाविध रोग करते जीवन दूभर ,

कट रहे वर्षावन अंधाधुँध,
हर ओर फैल रहे विशाल बंजर,
वर्षा आह्वान में ये सक्षम क्यूँकर,
बंजर से कैसे निर्मित हों जलधर,
कई जीव-पाखी खोगये विलुप्त होकर,

कहीं रूठ जाते वर्षा के ये कहार,
कहीं बरस जाते टूट-टूटकर,
कहीं होता भीषण शीत का कहर,
कहीं ग्रीष्म हो जाती बहुत प्रखर,

अतिवृष्टि, भूकंप, सूखा, जल प्रलय,
नित ढ़हता आपदाओं का कहर,
कहीं सब कुछ बहा ले जाती ,
सुनामी की प्रचंड़, विशाल लहर,

वाहनों, कारखानों का सघन धुआँ,
दम घोंटे प्राणवायु दूषित कर,
विषैले कोहरे में जीव त्रस्त कसमसाकर,
वनस्पतियाँ भी नष्ट होरहीं मुरझाकर,
माटी कटती जाये खेतों-नदियों के तट पर,
बिना वृक्ष कौन रखे इसे बाँधकर,


समुद्रों में बह रहा तेल-गाद रिसकर,
जल-प्रदूषण से नष्ट होते जलचर,
चक्रवात-तूफान दूभर करते जीवन-बरस,
शहरों में नित बढ़ रहा प्लास्टिक जहर,
अतिक्रमण बाढ़ लाता जलनिकासी अवरूद्ध कर,

क्या पाएँगे हम पर्यावरण खोकर,
ये नेमतें फिर नहीं मिलतीं खोजाने पर,
स्वास्थ्य नहीं लौटता नष्ट होजाने पर,

धरणी करे याचना करबद्ध होकर,
सहेजें यह थाती सब मिलजुलकर,
ये हमारे पास नव-पीढ़ी की धरोहर,
त्यज झूठी आधुनिकता का आड़ंबर,
आओ बचाएँ प्रकृति, प्रदूषण नष्ट कर,

पर्यावरण बचाएँ वृक्षमित्र बनकर,
कटने ना दें कभी वृक्ष कहीं पर,
बिरवे रोपें, पोषित करें जल देकर,
सूखे की आपदा से रहें बचकर,
सब वर्षाजल धरती में सहेजकर,
निर्मल जल के सोते बहाएं निर्झर,
अपशिष्ट न फैले नदी-समुद्र तटों पर,
रखें स्वच्छ निर्मल घर और शहर,

प्रयुक्त पदार्थों का पुनर्चक्रण कर,
उपयोगिता इनकी बनाए रखकर,
अपशिष्टों का उचित प्रबंधन कर,
न करें वन-खनिज-जल संपदा व्यर्थ,

सर्वत्र लहलहाये हरितिमा विहँसकर,
शुद्ध वायु स्वास्थ्य दे नव-प्राण भरकर,
तटबंध बाँधे रखें वृक्ष प्रहरी बनकर,
जीवन नीर बरसायें सहर्ष जलधर,
कुम्हलाए वैश्विक तपन का असर,
उन्नत हो जलवायु समस्त जग पर,
फले-फूले जीवन यहाँ मन भरकर,

आओ बनाएँ निर्मल, अक्षय, सुंदर ,
यह प्रिय धरती अपनी-अपना अंबर!

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arpana Sharma on June 8, 2017 at 11:23pm
आदरणीया श्रीमान् मोहम्मद आरीफ जी , श्रीमान् महेन्द्र कुमार जी एवं श्रीमान् नरेन्द्र सिंह जी - आप सभी सह्रदय सराहना का हार्दिक धन्यवाद ।
Comment by narendrasinh chauhan on June 6, 2017 at 3:31pm

 संवेदना को दर्शाती खूब सुन्दर  रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Mahendra Kumar on June 6, 2017 at 9:20am

पर्यावरण के कई पहलुओं को समेटे अच्छी प्रस्तुति है आ. अर्पणा जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Mohammed Arif on June 6, 2017 at 7:59am
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी आदाब, पर्यावरणीय संचेतना को , संवेदना को दर्शाती बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
7 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service