For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई इस तरह न तोड़े सपने (ग़ज़ल)

2122 1122 22

उम्र-भर चुभते हैं बिखरे सपने
कोई इस तरह न तोड़े सपने

टूट जाती है तभी नींद मेरी
जब कभी आते हैं अच्छे सपने

पूरे होने की कोई शर्त नहीं?
पूरे होते नहीं ऐसे सपने

हम हकीकत में यकीं रखते है
हों मुबारक़ तुझे तेरे सपने

वस्ल का वक़्त है नज़दीक बहुत
सुब्ह आते है अब उसके सपने

नींद अब मुझसे ख़फ़ा है, यानी
उसको रास आ गए मेरे सपने

अपनी क़िस्मत में फ़क़त प्यास ही थी
पर थे आँखों में नदी के सपने

देख! है कितना पशेमां, जिसने
नींद की चाह में बेचे सपने

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:04pm

आदरनीय जयनित भाई , अच्छी गज़ल हुई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2017 at 3:23pm
आदरणीय भाई जयनित जी मुझे अपने प्रश्न का जवाब मिला मच की यही अंदाज तो सबको इसका दीवाना बना देता है गुत्थी को सुलझाने के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:16pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी, इस प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया पाना मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है। और आप नाहक ही मेरा आभार प्रकट कर रहे हैं, यह तो इस मंच की विशेषता है जो यह हर किसी के लिए सीखने का माध्यम बनता है।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:13pm
आदरणीय मो० आरिफ़ जी, इस प्रस्तुति पर आपका आशीर्वाद पा कर अभिभूत हूँ। सादर धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:12pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:11pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, आपकी विस्तृत टिप्पणी ने इस मंच को पुनः सार्थकता प्रदान करती हुई प्रतीत हो रही है। अंधे को क्या चाहिए?...दो आँखें! आपलोग हम नए जिज्ञासुओं के लिए ऐसी ही आँखों के समान हैं। इस हेतु आपको कोटि कोटि नमन आदरणीय।
आपके उपर्युक्त सभी सलाह से सहमत हूँ मैं। जैसा कि आपने एक शेर पर स्पष्टीकरण माँगा है, तो उस शेर के सन्दर्भ में मैं अपनी सोच आपके समक्ष रख रहा हूँ।
"नींद अब मुझसे ख़फ़ा है, यानी
उसको रास आ गए मेरे सपने"
इस शेर की उत्पत्ति का केंद्र हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व० एपीजे अब्दुल क़लाम साहब का वह विचार है जिसमें उन्होंने कहा था- सपने वो नहीं होते जो हम नींद में देखते हैं, बल्कि असली सपने तो वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:03pm
मेरी रचनाओं पर निरंतर मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवादी हूँ आदरणीय समर कबीर जी।
Comment by Ravi Shukla on February 15, 2017 at 2:16pm

आदरणीय जयनित जी बहुत बहुत बधाई । गजलों को पढ़ने के साथ उस पर साथियों की चर्चा पढ़ना हमें इसीलिये अच्‍छा लगता है कि उससे चर्चा को नये आयाम मिलते है सीखने और जानने को कई बाते मिलती है इसलिये आपका और आदरणीय आशुतोष जी का इस गजल के हवाले से पुन: धन्‍यवाद 

Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:33pm
आदरणुय जयनित कुमार जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारक़बाद ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:27pm
आद0 जयनित मेहता जी सादर अभिवादन, उम्दा ग़ज़ल पँर दिल खोल कर बधाई निवेदित है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service