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अजनबी की तरह (नज़्म) // आबिद अली मंसूरी!

जब चले थे कभी 

हम 
अनजान राहों पर..
एक दूसरे के साथ
हमसफ़र बनकर,
कितनी कशिश थी
मुहब्बत की..
उस
पहली मुलाकात में,
चलो..! फिर चलें हम
आज
उसी मुकाम पर
जहां मिले थे कभी..
हम
अजनबी की तरह!
===========
(मौलिक व अप्रकाशित)
___ आबिद अली  मंसूरी!

Views: 630

Comment

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Comment by Abid ali mansoori on November 11, 2016 at 4:57pm

हारदिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब!

Comment by Abid ali mansoori on November 11, 2016 at 4:56pm

हार्दिक आभाऋ आदरणीय गिरिराज जी!

Comment by Samar kabeer on November 10, 2016 at 8:48pm
जनाब आबिद अली मंसूरी साहिब आदाब,पहली बार आपकी रचना से रूबरू हुआ हूँ,अच्छी लगी आपकी नज़्म,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 3:04pm

बहुत सुन्दर , अच्छी लगी आपकी कविता , हार्दिक बधाइयाँ , आ. आबिद भाई ।

कृपया ध्यान दे...

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