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आदरणीया नीता जी प्रदत्त विषय अनुरूप आपने बहुत ही अच्छी लघुकथा कही है. स्वार्थ से उत्प्रेरित तिकड़मबाजी की वास्तविकता को बखूबी उजागर करने में सफल है लघुकथा. आपको इस बेहतरीन प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
वाह नीता जी , अच्छी प्रस्तुति भई. लोग शतरंजी चालों का शिकार अपने बच्चों को भी बना लेते हैं .
रचना पर विस्तार से बात बाद में करूँगा, एक टेक्नीकल बात बताएं आ० नीता कसार जी यदि ३६ में से ३२ गुण मिल जाएँ तो क्या किसी पूजा की आवश्यकता बाकी रह जाती है ? मुकंदी बाबू ने पंडित जी को रिश्वत क्यों दी ?
नीता जी कथा पर तो सबने कहा और खूब कहा... मगर मै आपको एक छोटी सी जानकारी दे दूँ... सर साँस भी छोड़ते हैं ना तो उसके पीछे गहरी सोच होती है...आप और हम सर की जितनी पकड़लघु कथा और साहित्य की अन्य विधाओं पर जानते और मानते हैं... उस से कहीं गहरी पैठ सर की ज्योतिष-विद्या में हैं... संभवतः आप मेरा आशय समझ गईं होंगी... सादर
//३६ में से ३२ गुण // और टेक्नीकल बात , :))))))) __/\__/\__/\__
हार्दिक बधाई आदरणीय नीता कसर जी!!बहुत सुंदर लघुकथा !लोग शादी व्याह के मामलों भी शतरंज़ खेलते हैं!बच्चों के जीवन से खिलवाड करते हैं!
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