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जेल की दीवारे चीख चीख कर कह रही थी कि बीती रात रहमत अली ने हाल ही में सजा काटने आये कैदी को मार डाला। लेकिन उसके माथे पर एक भी शिकन नही थी, वो तो अपनी बैरक में खामोश बैठा सोच रहा था।

"अब मिला मुझे सकूं, उसको उसके किये की सजा दे कर मैंने अपनी बीबी को ही इंसाफ नही दिया बल्कि अदालत के झुठे फैसले को भी सच कर दिया है।"
"रहमत अली। अपनी खामोशी तोड़ो और बताओ कल रात क्या हुआ?" थानेदार ने सवाल पूछते हुये उसे लगभग झिंझोड़ दिया।
"अब छोड़िये भी साहब! रात गयी बात गयी।" रहमत अली एक गहरी सांस लेते हुये मुस्करा दिया।

"बीबी के कत्ल में तो फांसी हो ही रही है, अब आपका कानून मुझे दो बार तो फांसी दे नही सकता।"

.
'विरेन्दर वीर मेहता'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 24, 2015 at 8:52pm

बहुत ही सुन्दर प्रभावी लघुकथा बधाई! आदरणीय वीरेंद्र वीर जी!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 24, 2015 at 5:25pm
आदरणीय डाः गोपाल नारायण जी और आदः krishan mishra bhai ji आप गुणीजन लोगो के कथा पर समय देने के लिये तहे दिल से आभार। हो सकता हे अपनी बात रखने मे कही हिदी फिल्मो का प्रभाव आ गया और शायद जो मैं कहना चाह रहा था वो भली प्रकार न कह पाया होऊं। भविष्य में आप लोगो की अपेक्षाओ पर खरा उतर सकूं इसक प्रयास अवश्य करूगां। बरहाल अनुज की ओर से एक बार फिर आभार स्वीकार करे। सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 3:03pm
आ.गोपाल सर की बात से सहमत हूँ..फिर भी कसी हुयी लघुकथा पर बधाई आ.बड़े भाई वीर मेहता जी।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:37pm

आपकी कथा अमिताभ बच्चन की एक मूवी  से अनुप्राणित लगती है

Comment by TEJ VEER SINGH on September 22, 2015 at 8:46pm

हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता  जी!बेहद सुन्दर और समयानुकूल लघुकथा!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 5:20pm
आदः शहजाद भाई कथा पर समय देने और सकारत्मक प्रतिक्रिया देने के लिये सादर आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 5:16pm
आदरणीय औमप्रकाश जी रचना पर आपकी प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिये दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 5:15pm
आदः मिथिलेश भाई जी कथा पर आपके आगमन पर दिल से आभार। लेकिन आप के द्वारा की जाने वाली समीक्षा के लिये अनुज प्रतीक्षा में। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 5:06pm

बढ़िया लघुकथा 

बधाई 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:08pm
झूठे आरोप, झूठे फैसले इन्सान को हैवान बनाने में देर नहीं करते।
बहुत सार्थक भाव पूर्ण रचना आदरणीय।

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