For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी का अखबार – ( लघुकथा ) -

 हिन्दी का अखबार – ( लघुकथा  ) -

"रणजीत , तुम्हारे घर के फ़ाटक में यह हिन्दी का अखबार लगा हुआ था, कौन पढता है तुम्हारे घर में "!

"पहले बाबूजी पढा करते थे पर अब  कोई नहीं पढता"!

"अंकल को गुजरे हुए  तो सात साल हो गये , फ़िर  क्यों मंगाते हो"!

" बाबूजी के स्वर्गवास के बाद, मम्मीजी  की  इच्छा थी कि यह अखबार उनके जीते जी आता रहे!मम्मीजी रोज़ सुबह  हिन्दी का अखबार, बाबूजी का चश्मा, बाबूजी की चाय उनके कमरे में रख आती थी!उन्हें इससे बडा सकून मिलता था"!

"पर अब तो आंटीजी  भी नहीं रही"!

"हॉ  दीपक, अब तो मम्मीजी  भी चली गयी"!

"फ़िर क्यों मंगा रहे हो यह हिन्दी का अखबार"!

"अब वह सब मैं करता हूं जो मम्मी करती थीं, बडा सकून मिलता है, ऐसा आभास होता है जैसे मॉ बाबूजी आसपास हों और मुझे आशीर्वाद दे रहे हों”!

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 821

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on September 25, 2015 at 7:18pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री सुनील जी, राजेश कुमारी जी, शशि बंसल जी, आपने लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया, प्रशंसा की,सार्थक टिप्पणी की!पुनः आभार!

Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 8:35pm
बहुत सुन्दर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2015 at 8:30pm

दिल छू लेने वाली लघु कथा बहुत ही सुन्दर हार्दिक बधाई आपको आ० तेजवीर सिंह जी 

Comment by shree suneel on September 16, 2015 at 7:33pm
जी हाँ... यादों को ऐसे हीं सहेज कर रखते हैं हम. मर्मस्पर्शी लघु-कथा हुई है. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय.
Comment by TEJ VEER SINGH on September 16, 2015 at 7:29pm

हार्दिक आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा "जान"गोरखपुरी जी!आपको लघुकथा अच्छी लगी!शुक्रिया!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 16, 2015 at 6:58pm
गज़ब लघुकथा...!!ह्रदय छू गई..अभिनन्दन!
Comment by TEJ VEER SINGH on September 16, 2015 at 1:18pm

 हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , मिथिलेश वामनकर जी!लघुकथा को समय देने, सराहने हेतु!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 11:58am

बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय तेजवीर जी ... हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:27am

बड़ी ही ऊहात्मक रचना है  क्या अभी सचमुच हमारे अन्दर इतनी संवेदना जीवित है  यदि है तो उसे प्रणाम .

Comment by TEJ VEER SINGH on September 16, 2015 at 9:28am

हार्दिक आभार आदरणीय  कांता रॉय जी!लघुकथा को समय दिया, सराहा,मेरा उत्साह वर्धन किया!शुक्रिया!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service