For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इसी तरह से ग़ज़ल हुई है -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

121-22---121-22---121-22---121-22

 

मेरी पुरानी जो वेदना थी वो आज थोड़ी सबल हुई है

ज़रा सी फिर आँख डबडबाई इसी तरह से ग़ज़ल हुई है

 

खुदा के अपने ये नेक बन्दे कभी किसी का बुरा न करते

बता खुशी भी क्यों जिंदगी से गरीब के बेदखल हुई हैं

 

लगी है कैसी अजीब आदत न वक़्त देखें न कोई मौका

किसी की पीड़ा जहाँ भी देखी ये आँख रह-रह सजल हुई है

 

किसी ने रोका, की मिन्नतें भी, बहुत बुलाया हमें किसी ने

हुआ पराजित ये गाँव फिर से नगर की कोशिश सफल हुई है

 

मिली अंधेरों में रौशनी फिर दिखी कहर में मुहब्बतें तो

जहाँ पे कीचड़ सना हुआ था वहीँ तमन्ना कँवल हुई है

 

ये ज़िन्दगी तो हज़ार मौकों से इस कदर यूं भरी हुई है

किसी ने मौका ज़रा भी समझा, ये जिंदगी फिर सरल हुई है

 

मुआवजें हो तमाम लेकिन वही खसारा, वही हकीकत

जमीं से फंदे उगे हज़ारों तबाह जब भी फसल हुई है   

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 852

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:38pm

आदरणीय रवि जी, आपका अनुमोदन सदैव आश्वस्त करता है.ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 4:37pm

आदरणीय राहुल भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. 

Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 3:03pm

अादरणीय मिथिलेश जी । नमस्‍कार कई दिनों बाद लौटे है । आपकी एक नई ग़ज़ल और नई बह्र पर देख कर और पढ़ कर खुशी हुई

शेर दर शेर दिली दाद कुबूल करिये ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 2:52pm
सुन्दर गजल आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 4:02am

आदरणीय समीर कबीर जी, मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार ........... आपके मार्गदर्शन अनुसार 'क़हर' करता हूँ....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 4:00am

आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. आपका अनुमोदन मेरे लिए बहुत मायने रखता है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 7, 2015 at 3:59am

आदरणीया तनूजा जी, ग़ज़ल के अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by Samar kabeer on September 6, 2015 at 10:24pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,'कहर' का जो अर्थ आपने बताया है वो उर्दू में "क़ह्र" है,लेकिन आप भी क्या करें,प्रचलन में यही है,ऐसे ही रहने दें लेकिन इस शब्द को जब भी लिखें 'क' के नीचे बिंदी लगा दें (क़) 'क' के नीचे बिंदी नहीं लगी थी इसलिये मैं इसका अर्थ 'कोहरा' समझा था ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:03pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , खूब सूरत मतला से शुरू सफर आखीर तक बहुत बढ़िया रहा । पूरी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Tanuja Upreti on September 6, 2015 at 4:20pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ,बधाई मिथिलेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service