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लड़की / अमरजीत कौंके

लड़की / अमरजीत कौंके

बचपन से यौवन का
पुल पार करती
कैसे गौरैया की तरह
चहकती है लड़की

घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
पिता की गरीबी से अन्जान
स्कूल में बच्चों के
नए नए नाम रखती
गौरैया लगती है लड़की
अभी उड़ने के लिए पर तौलती

और दो चार वर्षों में
लाल चुनरी में लिपटी
सखिओं के झुण्ड में छिपी
ससुराल में जाएगी लड़की

क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पायेगी क्या
वह अपनी सारी मासूमियत

कैसे बेखबर आने वाले वर्षों से
गोरैया की तरह
चहकती है लड़की.........

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Comment by asha pandey ojha on June 10, 2010 at 6:22pm
कैसे बेखबर आने वाले वर्षों से
गोरैया की तरह
चहकती है लड़की bahut khub ladkee ke dard ko hubhu abhivyakti dee aapne ..sundar
Comment by Babita Gupta on May 19, 2010 at 12:19pm
Jabardast, bahut hi khubsurat kavita hai, bilkul dil ko chhu leney wali rachna hai, many many thanks Mr Amarjeet kaunkey jee,
Comment by satish mapatpuri on May 17, 2010 at 12:07pm
क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पायेगी क्या
वह अपनी सारी मासूमियत
भाई अमरजीत जी ,सच है की औरत और धरती बहुत कुछ सह जाती है .एक लड़की से औरत बनने
के बीच उसकी कई भूमिका होती है और उसकी हर भूमिका मर्द जाति के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण है .चाहे वह
माता के रूप में हो,बहन के रूप में हो ,पत्नी या बेटी के रूप में. धन्यवाद
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 16, 2010 at 4:47pm
बचपन से यौवन का
पुल पार करती
कैसे गौरैया की तरह
चहकती है लड़की
bahut hi badhiya rachna hai amarjeet jee.....aapki ye rachna padh kar to main aapka deewana ho gaya hoon......
bahut badhiya likhte hain aap...aisehi likhte rahe
Comment by aleem azmi on May 16, 2010 at 4:33pm
bahut behtareen kavita likhi hai aapne kauke ji ...jitni bhi tareef karu alfaaz pad jaayenge bahut umdaaaaaaaa
Comment by Kanchan Pandey on May 16, 2010 at 2:23pm
क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पायेगी क्या
वह अपनी सारी मासूमियत,
Sir jee, heart touching poetry hai yey, dil ko chhu leti hai yey aapki kavita, Aurat teri yahi kahani, aanchal mey doodh aur aankh mey paani..........
Comment by Admin on May 16, 2010 at 11:25am
घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
पिता की गरीबी से अन्जान
स्कूल में बच्चों के
नए नए नाम रखती
गौरैया लगती है लड़की
अभी उड़ने के लिए पर तौलती,

बहुत ही संजीदा बिषय पर आप ये कविता लिखे है , पहले पोस्ट किये हुये आपकी कविता की तरह ये भी एक अच्छी रचना है, कोई कुछ भी कहे लेकिन बेटियों का जबाब नहीं, शायद सही ही किसी ने कहा है की "बचपन हर गम से बेगाना होता है" बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,

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