२१२२ २१२२ २१२
चाँद को जो गुनगुनाना आ गया
चाँदनी को मुस्कुराना आ गया
दीप राहों में जले कुछ इस कदर
याद इक मंजर पुराना आ गया
देख कर अठखेलियाँ वो अब्र की
पंछियों को चहचहाना आ गया
मौतं से भी हो गई थी आशिकी
, जंग में जब जाँ लुटाना आ गया
पड़ गई कुछ जान उस मासूम में,
पेट में जब एक दाना आ गया
जिंदगी की देखकर जद्दोजहद ,
जोश हमको आजमाना आगया.
देख मौजों की अदा कश्ती कहे,
आज मौसम कातिलाना आ गया
बच के रहना देख अब सैय्याद तू,
तीर चिड़ियों को चलाना आ गया.
कल तलक कमजोर अपने पंख थे ,अब मुकद्दर आजमाना आ गया |
हाथ को देखे न दूजा हाथ अब
,'राज' ये कैसा ज़माना आ गया
-----------------राजेश कुमारी 'राज '
Comment
मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर बेहद खुश हूँ दिल से आभार आपका
आदरणीया राजेश दीदी बहुत ही बेहतरीन और शानदार फिल बदीह ग़ज़ल हुई है
शेर दर शेर दाद हाज़िर है
ये शेर बहुत उम्दा हुआ है-
पड़ गई कुछ जान उस मासूम में,
पेट में जब एक दाना आ गया
महर्षि त्रिपाठी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया |
आ० वीनस जी ,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना से अभिभूत हूँ आपने सही त्रुटी पकड़ी सैय्याद शब्द ठीक कर लूंगी दिल से बहुत बहुत आभार.
बच के रहना देख अब सैंयाद तू,
तीर चिड़ियों को चलाना आ गया.,,,वाह!! आ. rajesh kumari जी ,,,बहुत सुन्दर |
वाह कम समय में शानदार ग़ज़ल कही है
सैंयाद को सय्याद कर लें
कृष्ण मिश्र जी ,तहे दिल से आभार आपका.
केवल प्रसाद जी ,आपका तहे दिल से आभार.
नरेंद्र सिंह जी ,दिल से आपका बहुत बहुत आभार
आ० डॉ० गोपाल नारायण भाई जी,आपकी प्रतिक्रिया पारितोषिक के समान है दिल से बहुत- बहुत आभार.
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