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अपेक्षा का दीप

अपेक्षा का दीप
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
बुझे दीप न तेज हवा से सुरक्षा बाढ़ लगाया।
लक्ष्य को छूने का दृढ़ संकल्प लिया मन में
त्याग और बलिदान से प्रेरित मंत्र अपनाया ।
छल,कपट,ईर्ष्या कभी टिके नहीं अंतस्थल में
नैतिक मूल्यों के संस्कार का आवृत्त बनाया ।
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
दया धर्म सद्भाव बढ़े आज सभी के जीवन में
अपेक्षा की आस लिए मैंने एक दीप जलाया।
स्नेह का तेल भरा ज्योति ज्ञान की जीवन में
मन में धीरज रखकर प्यार का हाथ बढ़ाया
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
जीवन साथी का साथ जीत दिलाया दुनिया में
अंधकार से राहत देगा ये आस जगी मन में
छोटी-छोटी आशाओं से मनको खूब सजाया
नाना खुशियों की अपेक्षा को पाल हृदय में
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
तन की पीड़ा हर लेगा जलते ही एक क्षण में
बहती हवा का झोका सहकर मैंने दीप बचाया
अंग अंग में चोटें आयीं कभी न मन घबराया
हंस कर सब कुछ बाँट लिया मैंने अगले पल में
मंजिल की सब बाधा तोड़ राह आसान बनाया
मैंने अपनी अपेक्षा का दीप जलाया घर में
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2015 at 9:37am

बहुत सुन्दर  प्रस्तुति . बधाई .

Comment by Ram Ashery on May 10, 2015 at 12:56pm

आपको सहृदय धन्यवाद मेरी रचना पढ़ने और प्रोत्साहन के लिए  अपने विचार रखने के लिए 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2015 at 12:39pm

अच्छी  प्रस्तुति . बधाई .

Comment by Samar kabeer on May 10, 2015 at 10:23am
जनाब राम आश्रय जी ,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें

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