For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"यादें" (आईये लिखे कुछ ऐसी यादों को जो भूलता ही नहीं)

हमारे जीवन मे बहुत सारी ऐसी घटनाये हो जाती है जो भुलाये नहीं भूलती, और कभी सोच सोच कर आँखों मे आंशु तो कभी होंठो पर मुस्कान आ जाती है, ये यादें बचपन, जवानी या बुढ़ापा किसी भी समय की हो सकती है, बाल काल की नादानीया, युवा काल की गलतिया या कुछ अच्छाईया अथवा और भी ऐसी यादें जिसे बाटने का जी करे,


तो आइये ना , ऐसी ही कुछ यादों को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के बीच बाटें.........

Views: 2673

Reply to This

Replies to This Discussion

अब क्या बताऊ गणेश भैया जब आपने माज़ी के सफे पलटने को मजबूर कर ही दिया है तो एक किस्सा मैं भी अपनी जिंदगी का सुना देता हूँ/

बात उस समय की है जब मैं बमुश्किल 10 या 11 बरस का रहा होऊंगा. मेरे पड़ोस में एक अंकल जी रहते थे जिनके पास उस ज़माने की M80 हुआ करती थी. जब भी वो मेरे घर आते तो मैं उनसे गाड़ी स्टार्ट करने की जिद करता. एक दिन बातों ही बातों मैं उन्होंने कहा की रोज़ रोज़ केवल गाड़ी स्टार्ट करते हो चलो आज मैं तुम्हे चलाना सिखा देता हूँ. तब तक मैं साईकिल चलाने मैं पूर्णतया दक्ष हो गया था और आकांक्षाएं परिंदों की परवाज़ ले रही थी. तो मैंने भी उत्साहित होकर stearing सम्भाल ली. और शायद आप यकीन ना करें बमुश्किल आधे घंटे में मैं एक मंझे हुए ड्राईवर की तरह उस फटफटी को चलाने लगा.बात आयी गई हो गई. अब मैं खुद को एक सर्वज्ञता, एवं बड़ा ही माहिर चालक समझता था. बालमन यह नहीं समझता था कि जो कला बड़े बुजुर्ग बरसों में नहीं सीख पाते हैं उस कला में मैं मात्र आधे घंटे में कैसे पारंगत हो सकता हूँ. चलिए यह तो हुई उस समय की बात. अभी 6 महीने भी नहीं बीते रहे होंगे और मुझे आपने मामा के लड़के की शादी में ननिहाल जाने का मौका मिला. उस समय मेरे मामा जी प्रिया स्कूटर रखा करते थे. मेरे एक दूसरे मामा जी का बेटा जिसका नाम अमित था.....................(जो अब इस दुनिया मैं नहीं है)........ मेरा ही हम उम्र और शायद मेरे ही जितना बदमाश था.हमें किसी तरह मामा जी की स्कूटर की चाभी प्राप्त हो गई और चूँकि शादी का घर था तो सभी आपने कार्यों में व्यस्त थे. सो हम भी आपने कारस्तानी मैं व्यस्त हो चले. kick मारी और करने लगे हवा से बातें. मगर अचानक ना जाने क्या हुआ और वह स्कूटर घच घच करके बंद हो गई. स्कूटर की क्रिया प्रणाली से अज्ञात, दो छोटे छोटे बच्चों को किसी ने बताया के आपके स्कूटर का clutch wire अब नहीं रहा.................... अब एक यक्ष प्रश्न सामने खड़ा हो गया क़ि इसे सुधरवाया जाय या घर में चल के बताया जाये. तमाम परिस्थितियों पर विचार विमर्श करने के पश्चात कोर्ट ने फैसला सुनाया के घर जाने पर खैर नहीं, इसे तो सुधरवाना ही पड़ेगा. अब समस्या fund की आ गई थी मेकेनिक ने बोला कम से कम २० रुपये लगेंगे. और हमारी कुल जमा पूंजी जो उस वख्त बैठ रही थी १४ रुपये मात्र थी. फिर भी हम अपनी भोली सी सूरत के मोहपाश मैं बाँधकर मेकेनिक को मनाने मैं सक्षम रहे. इन सबके बीच काफी समय हो गया था और घर मैं दो गायब बच्चों की खोज प्रारंभ हो चुकी थी. बाद में जब यह भी पता चला के स्कूटर भी नहीं है तो घर वालों के होश फाख्ता हो गए. एक बात और बता दू मेरा ननिहाल सुल्तानपुर के कोथरा गाँव में पड़ता है जो की लखनऊ और वाराणसी haiway पर स्थित है. और ऐसा लोग कहते है क़ि वह भारत की व्यस्ततम सड़कों में से एक है.......... उस समय दोनों की माँ की हालात बयाँ कर पाना मुश्किल है............इधर घर से कई लोग हमे खोजने निकल पड़े. उधर हम आपने चेहरे पर विजयी मुसकान लिए घर की तरफ बढे.......... जो हमें खोजने निकले थे उनसे रस्ते मैं हमारी टक्कर हो गई................. मैं तो उसी समय समझ गया के बेटा आज तो गए काम से....... घर पहुँचने पर मां ने रोते रोते जो धुनाई की वो आज तक याद है.................................. और यह घटना इसलिए भी नहीं भुला सकता क्योंकि इससे मेरे भाई अमित की यादें भी जुडी है जो कानपूर मैं एक सड़क दुर्घटना मैं हमें अकेला छोड़ कर चला गया...........................................इस समय मेरी ऑंखें नम हैं.............
rana jee aap bhi bahut si baatein chupaye hue hain apne andar....jo dhire dhire hamare beech share kar rahe hain aap.....
sahi hai rana pratap jee....bachpan ki kuch yaadein aisi hoti hain jo kabhi bhulayi nahi jaa sakti...wo yaad rahti hi hai.....

waise aapka kissa to mere se bilkul hi different hai....
aur mujhe bahut afsos hai ki aapke bhai sri Amit jee ab nahi hain...
राणा भाई बचपन ऐसी ही होती है, उस समय हम लोग क्या क्या नादानिया और ग़लतिया कर देते है वो अब समझ मे आती है,आपके कहानी मे माँ का अपने बच्चे के लिये चिंता उसके बाद गुस्सा सब दिखता है, और आप के भाई का हम लोगो के बीच न होने का अफ़सोस,
राणा जी बालपन मे ऐसी नादानीया हो जाती है, आप के इस स्टोरी को पढ़ कर हमारे युवा साथी कुछ सबक लेंगे यही उम्मीद करते है, और ईस्वर आपके स्वर्गवासी भाई के आत्मा को शांति प्रदान करे,
प्रणाम सब भाई को.....

आज मैं आपलोगों के बीच एक घटना का जिक्र करना चाहता हूँ......ये अचानक से मुझे याद आ गयी थोड़ी देर पहले मेरे एक पुराने दोस्त में मुझे फ़ोन किया....ये दोस्त मेरे सबसे पुराना और हर दिल अजीज दोस्त है....दोस्त का नाम नीरज है और अभी वो MBA की तैयारी कर रहा है .,......
अब आइये घटना पर......

ये उन दिनों की बात है जब मैं दसवी क्लास में था........४ महीने बाद मेट्रिक का परीक्षा थी.....उस समय पापा एक नयी मोटर साइकिल ख़रीदे थे....ROYAL ENFIELD BULLET थी.....उस समय मैं नया नया चलाना सीखा था.....पापा किसी काम से शहर से बाहर चले गए थे...अब मेरे दिमाग में न जाने क्या आया अचानक से..उम्र भी कम थी इसलिए नादानी तो थी ही...मैं मोटर साइकिल लेकर निकल परा सैर करने...तभी मेरे मन में आया कि अकेले कहाँ जाऊंगा इसलिए मैंने नीरज को भी साथ में ले लिया....मेरे घर बीरपुर से जो कि सुपौल जिला में है वहां से ६ किमी कि दुरी पर कोसी बराज थी....हमलोगों ने तय किया कि वही चला जाये शाम तक कुछ शौपिंग कर के वापस आ जायेंगे..वहां का बाज़ार बहुत ही सस्ता और बढ़िया है.....हमलोग निकल पड़े....अभी लगभग हमलोग ३ किमी के आसपास गए होंगे कि अचानक से मेरे आँख में कुछ गड गया मैं एक हाथ छोड़ कर आँख रगड़ने लगा....तभी गाडी असंतुलित हो गयी और फिर जैसा कि होता है हमलोग नीचे और गाडी हमलोगों के ऊपर.....हमलोग दोनों दोस्त कि दाहिने पैर कि हड्डी टूट गयी और सर में चोट लगने के कारण मैं बेहोश हो गया.......लेकिन नीरज अभी तक होश में था....
फिर आगे कि कहानी नीरज ने जो मुझे बताई.......कुछ देर बाद दूसरी तरफ से एक गाडी आई जो आकर हमलोगों के पास रुकी....उसमे एक आदमी थे जो कि मेरे पापा और नीरज के पापा के भी दोस्त थे.....उनलोगों ने हमारे घर फ़ोन करके खबर किया...और वो अपनी गाडी से ही हमलोगों को हॉस्पिटल लेकर गए वापस बीरपुर....करीब ६ महीने बाद हमलोग चलने लायक हुए....और तब तक हमलोगों का मेट्रिक का परीक्षा भी बीत चूका था....खैर परीक्षा तो हमलोगों ने अगले साल दी और अच्छे नंबर भी आये..मुझे ९०% और नीरज को ९२%.....और हमलोगों ने कसम खायी कि आज के बाद कभी गाडी बिना हेल्मट के नहीं चलाएंगे और कभी भी हाथ नहीं छोरेंगे हंदले से....बचपना था इसलिए कसम तो आम बात थी.....

ये आज मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्युकी आज नीरज का बर्थडे है और वो अभी अहमदाबाद में है.......आज उसने मुझे फ़ोन किया इसलिए याद आ गया तो मैंने सोचा कि लिख दूं....
मैं यही कहना चाहूँगा कि बचपन के दोस्त सीने में बसे दिल कि तरह होते हैं जो निकले या भुलाये नहीं जा सकते....

दोस्ती इंसान कि जरुरत है,
दिलों पे दोस्ती कि हुकूमत है,
आप जैसे दोस्तों कि वजह से जिंदा हैं,
वर्ना खुदा को भी बहुत जल्दी है हमे अपने पास बुलाने कि....

अभी कुछ और मेरे अजीज दोस्त हैं जिनसे कि मैं बस एक बार ह मिला हूँ लेकिन लगता है कि ज़माने कि दोस्ती है उनसे....बहुत बहुत धन्यबाद गणेश भैया मेरे दोस्त बनने के लिए......


आप सब का अपना,
प्रीतम कुमार तिवारी
रांची
9504655823
प्रीतम भाई बहुत गड़बड़ कहानी है जिस कहानी मे मेरे दोस्त का पैर टूट जाये वो कहानी अच्छी कैसे हो सकती है, पर लिखने की शैली अच्छी है, बहुत बहुत धन्यबाद आपको जो मुझे इतना मान देते है, नही तो .....
मैं तो बहुत ही आम था जिसे आपने खाश बना दिया,
मैं तो छोटा सा इक छतरी था जिसे आपने आकाश बना दिया
प्रीतम जी जीवन की बहुत सी घटनाये होती है जो भूल नहीं पाते हम लोग , बचपन की नादानिया,बेवकुफिया, बदमासिया, सरारत, अल्हड़पन और बहुत कुछ, बहुत कुछ माने ..... बहुत कुछ
आप ने भी जो बाते लिखी वो सब भी उसी का नमूना है, नहीं तो मैट्रिक का छात्र, १४-१६ वर्ष उम्र जिसमे infield जैसी गाडिया स्टैंड भी न हो सके , और आप ने हिम्मत कर के चलाते चले गये, बहुत ही खूब,
बात उस समय की हैं जब मैं १०वा में पढ़ रहा था , उस समय अक्सर मैं अपने भाईया के ससुराल जाता था , उनके परोस में एक लड़की थी जो मुझे देखते ही वहा चली आती थी और मुझ से बहुत बाते करती थी , एक दिन ओ मुझे एक मुठी रहर की डेरी दी और चली गई , उसके बाद मैं एक एक कर के मैं डेरी छोरा कर खाने लगा , तब मुझे उसमे एक अंगूठी मिला मैं ओ अंगूठी उ लड़की को देखर कहा आपकी अंगूठी लगता हैं गलती से हमारे पास आ गया हैं , ओ मुझे घूरते हुए देखि और बोली अभी आप पैदा क्यों हुए आपको सतजुग में होना था एक दम निपट गावर , उस समय तो समझ में नहीं आया मगर बाद में मुझे लगा की ओ मुझसे प्यार करती थी मगर मैं जब समझा तब तक उसकी सादी हो गई थी , आज देखता हु तो सोचता हूँ की आज के बच्चे बहुत अडवांस हो गए हैं हम लोगो के अपेक्छा ,
गुरु जी धीरे धीरे अब राज खुलना शुरू हो गया है, क्या स्टोरी थी पर एक बात और आप जो कह रहे है की आज कल के बच्चे एडवांस हो गये है, कुछ तो सच्चाई है पर आपको जो अंगूठी दी थी वो आजकल की नहीं थी वो भी आप के समय की ही थी और हिसाब लगाया जाय तो यदि आप १० वी मे थे तो हो सकता है वो भी १० वी या ८ वी मे ही हो , पर वो तो काफी तेज छुरी निकली गुरु जी , तो ......................

अब मान भी जाई की उ लईकिया ठीके कहले रहे ........ निपट गवार हा हा हा हा हा हा हा
jai ho guru jee.......thoda jaldi samajhna chahiye tha naa......
ab pachtaat kya hoga jab chiriya chug gayi khet.....

chali kauno baat naa aage se aisan mat karab...
hahaha....waise kahani bahut rbadhiya laagal......
जब मैं क्लास दस में पढ़ रहा था. उस समय हिंदी के मास्टर थे दुबे जी उन्हें देख कर बच्चे भाग खरे होते थे . कारन ओ हिंदी में क्लास लेना सुरु कर देते थे . और हिंदी ही एक ऐसी भासा हैं जिसमे बहुत कम लोग १००% मार्क्स ला पाते हैं . एक दिन की बात हैं हम चार पांच दोस्त एक साईकिल दुकान पर साईकिल बनवा रहे थे . तभी अपना साईकिल घसीटते हुए दुबे जी वहा आये उनके वहा आते ही हम सतर्क हो गए . वे आते ही साईकिल दुकानदार से बोले " वो दुई चक्र अभियंता मेरी दू चक्रिका की अगली चक्र बक्र हो गई हैं इसे सुचक्र करने का कितने मूल्य चुकाने पड़ेंगे ". उनकी बात सुन कर दुकानदार ने कहा बाबा हिन्दी में बोलिये ना और हम सब हँसने लगे ,
किसी ने सही कहा है कि बुधि बड़ी या भैस , एक बार फिर भैसा के ऊपर बुधि कर गई , बहुत बढ़िया मनोज भैया , शिक्षाप्रद संस्मरण हैं ,

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
22 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
45 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
1 hour ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service