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आदरणीय सीमा जी
मै इसे कुछ अलग सोच के साथ गुन् रहा हूँ i क्या हमारी शिक्षा प्रणाली बिलकुल निरर्थक है i नयी पीढी का उससे बिल्कुल ही भरोसा उठ गया है i तब यह तमाम स्कूल किसलिए i गरीबो के लिए व्यावसायिक सिक्षा क्यों नहीं ? बहुत से प्रश्न छेडती है यह कथा i सादर i
लागु कथा का विषय बचपन में जहां कौशल विकास के महत्त्व को दर्शा रहा है वही बेरोजगारी का सच भी उजागर कर रहा है |
किस तरह निर्धन वच्चे पढ़ाई से मुख मोड़ बाल श्रम करने को मजबूर है यह भी एक ओर सच उजागर हो रहा है | सुंदर लघु
कथा के लिए बधाई आदरणीया सीमा हरी शर्मा जी |
पुनश्च - फेसबुक से जानकारी हुई की नाबेल पुरस्कार से सम्मनित श्री कैलाश सत्यार्थी जी आपके देवर है, उनके श्रम पर भारत
को प्राप्त गौरव के लिए आपको भी बहुत बहुत बधाई
बहुत अच्छी कहानी , दूसरे पहलु को बखूबी दर्शाया आपने , बधाई स्वीकारें..
शिक्षा एवं बरोजगारी दोनों पे एक करारा कटाक्ष है |एक प्रश्न उठता है क्यों हमारी शिक्षा-व्यवस्था हर बच्चे को अपनी तरफ खिंच नहीं पा रही है ?
अच्छी कहानी के लिए लेखक को बधाई
लघु कथा जी विषय वस्तु नें प्रभावित किया
शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी के कड़वे सच पर प्रहार करते हुए कम उम्र से ही स्किल लर्निंग की विवषता/उपयोगिता दोनों पर ही सार्थक तरह से आपने प्रसंग सांझा किया है.
शिल्प में थोड़ी और कसावट की ज़रुरत लगी.
इस प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया सीमाहरि शर्मा जी
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