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“ अरे! बेटा..तैयार हो रहे हो. अगर बाहर तक  जा रहे हो तो अपने पिता कि दवाई ले आओ, कल कि ख़त्म हुई है”

“ अरे! यार मम्मी!!   मैं जब भी बाहर निकलता हूँ , आप टोंक देती हो. आपको  पता है न, हमारी पूरी एन.जी.ओ. की टीम पिछले हफ्ते से गरीब और असहाय लोगों कि सहायता के लिए गाँव-गाँव घूम रही है. शायद ! आप जानती  नही हो, अभी  मेरी  सबसे बढ़िया प्रोग्रेस  है पूरी टीम में ”

 

        

जितेन्द्र ‘गीत’

 (मौलिक व् अप्रकाशित)    

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 11:28am

आदरणीय शुभ्रांशु जी, आजकल इसे ही परोपकार कहा जाता है. अपने माता-पिता को माँ-बाप नही कहा जाता...हाँ..! दूसरों को अंकल-आंटी जरुर कहा जाता है..हा हा हा :)))

आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार ..सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on July 29, 2014 at 10:39am

आदरणीय जितेंद्र जी, 

परोपकारी. हा हा हा..

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 10:18am

आप सही कह रहें है आदरणीय डा.आशुतोष जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 10:16am

आपकी सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार ,आदरणीय श्याम नारायण जी

सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:58pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..सचमुच तरक्की ने इंसान को एक मशीन बना दिया ..कोई जज्वात नहीं कोई अपना नहीं ..दिशा हीन यात्रा ..गागर में सागर जैसे इस रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on July 28, 2014 at 1:06pm
बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,,
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 28, 2014 at 12:38pm

जी आदरणीय गिरिराज जी, आप सही कह रहे है. बहुत आतुरता सी है जल्द ही सब कुछ पाने की. आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ .

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 11:47am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आज के युवाओं की ये एक व्यवहारिक सच्चाई है , कम समय मे सब कुछ पा लेने  की महत्वाकांक्षा से  की उपज है ये ! सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:59pm

आपके आशीर्वाद से रचना धन्य हुई आदरणीय विजय जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:57pm

आपके विचारों से सहमत हूँ आदरणीय आदित्य जी, आपका हार्दिक आभार

सादर!

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