बरसाती बादल आ ही गए, ठंढक थोड़ी पहुंचा ही गए.
तपती धरती, झुलसाते पवन, ऊमस की थी घनघोर घुटन,
खाने पीने का होश नहीं, 'बिजली कट' और बढ़ाते चुभन
अब अम्बर को देख जरा, बिजली की चमक दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,
सरकारें आती जाती है, बिजली भी आती जाती है,
वादों और सपनों की झोली,जनता को ही दिखलाती है
पर एक नियंता ऐसा भी, बस चमत्कार दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,
अंकुरे अवनि से सस्य सुंड, खेतों में दिखते कृषक झुण्ड.
व्याकुल जो थे उस गर्मी में, पशुओं के देखो सजग झुण्ड,
चहुओर बजी अब शहनाई, कजरी के बोल सुना ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,
(मौलिक व अप्रकाशित)
१९.०६.२०१४
जवाहर लाल सिंह
Comment
आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया सरिता मिश्रा जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय जवाहर भाई , सामयिक रचना मे सुंदर भाव पिरोये हैं , बहुत बधाई ॥
सुन्दर रचना
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीया मीना पाठक जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री अमन कुमार जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री गोपाल नारायण साहब, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!
जी सही कहा बरसाती बादल आ ही गए .....समसामयिक रचना ...बधाई आपको
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई
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