For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल दिल जलाते है

1222   1222   1222  1222
कहाँ से अजनबी दिल के हमारे पास आते है/
हमारे दिल में बस कर वो हमारा दिल चुराते है

हमारी‍ जिन्‍दगी भी तो अमानत होे गई जिनकी
वही अब जिन्‍दगी में आग जाने क्‍यों लगाते है


जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम

न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है


हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन
न जाने क्‍यों सभी सपने हमारे  तोड़ जाते है



नहीं आते कभी वो पास अब जो रोज मिलते थे
लगा इल्‍जाम अखण्‍ड पर उसे क्‍यों वो भुलाते है


मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 4, 2014 at 1:08pm

जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम

न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है  ...जलते हुए दिल के साथ भी जीना ही है जीवन वाकई अनमोल है 

 समझते ले‍किन  ...आदरणीय यहाँ मुझे अपने समझ के अनुरूप थोडा संदेह हो रहा है   १२२२ के मामले में ..

लगा इल्‍जाम अखण्‍ड पर उसे क्‍यों वो भुलाते है ..इस लाइन को भी एक बार देख लें .मुझे गेयता बाधित लग रही है म अ खं ड.. सही जानकारी बिद्व्त्जनो से ही मिलेगी सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 9:50am

आदरणीय अखण्ड भाई , सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥ आ. वीनीस भाई ने जो कहा है , जरूर ध्यान दीजियेगा ॥

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:43am

सुंदर  गजल के लिए बधाई स्वीकारें , आ0 अखंड जी । 

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2014 at 4:34am

शानदार प्रस्तुति है

दो मिसरों पर अदा० राजेश कुमारी जी द्वारा बात प्रस्तुत की गई है आप निवारण करेंगे तो मेरी शंका का भी समाधान होगा
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2014 at 10:41am

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अखंड जी एक विनम्र सुझाव ---हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन--इस मिसरे की तक्तीअ दुबारा जांच लें शायद आपने समझते को ---२१२ में बाँधा है जब की समझते मेरे हिसाब से १२२ होना  चाहिए मकते की निचली पंक्ति को भी जांच लें ..आप थोड़े से शब्दों के फेर बदल से दुरुस्त कर लेंगे मुझे ऐसा विश्वास है बहरहाल हार्दिक बधाई ग़ज़ल पर. 

Comment by Akhand Gahmari on June 2, 2014 at 10:59am

उत्‍साहवर्धन एवं मागर्दशन के हम सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी यह आपके आर्शीवााद का फल है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2014 at 5:27pm

कोशिशे  ही कामयाब होती है दोस्त  i आपकी लगन अच्छी है i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service