For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मकथन

जब जब बनाना चाहा
शब्दों को मिसरी
कुछ पूर्वाग्रह
घोल गये कड़ुवाहट
नहीं बना पाया मैं
खुद को मधुमक्खी
तब कैसे होते मधु
मेरे कहे गये शब्द
मैंने चाहा दिखना
बगुले सा धवल
तब कहां से आती
कोयल सी मधुरता
काक होकर भी
कहां निभा पाया
काक का धर्म
बस जमाये रखी
गिद्ध दृष्टि  
हर जीवित-मृत पर
समझ सकते हैं आप
कितना तुच्छ जीव
बनकर रह गया हूं मैं

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2014 at 7:24am

आदरणीय भाई सौरभ जी रचना पसंद आई . तगता है धीरे- धीरे सही रह पर आगे बढ़ रहा हूँ .उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 2:38am

बहुत खूब लक्ष्मण भाई.. .

एक सशक्त रचना के लिए बधाई..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 24, 2014 at 11:20am

आदरणीय शिज्जू भाई एवं प्राची बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 9:34pm

हर मनुष्य के उजले श्यामल पक्ष दोनों ही होते हैं 

अंतर के श्यामल पक्षों पर खुद को टटोलती, उन्हें स्वीकारती प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 23, 2014 at 7:56am

बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है आदरणीय लक्ष्मणजी बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:51am

आदरणीय अरुण भाई रचना पसंद आई .तगता है धिरे धीरे सही रह पर आगे बढ़ रहा हूँ .आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:49am

आदरणीय विजय भाई उत्साहवर्धन के लिए आभार .

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 11:19am

आदरणीय लक्ष्मण जी रचना अच्छी लगी बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on January 22, 2014 at 7:51am

आपकी रचना आपके अंतर्मन की गहन सोच को दर्शाती है। बधाई। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2014 at 6:33am

आदरणीय राहुल भाई, आत्मकतन की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service