For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

* स्व + अनुभूति = आत्मसाक्षात्कार *

मानव जीवन अस्तित्व के लिए संघर्ष और पुरुषार्थ सिद्धि हेतु यथावस्था लक्ष्य निर्धारण तथा उसकी प्राप्ति केलिए निरंतर प्रयासरत रहने का और श्रमफल से अतृप्त हो पुनः एक नए लक्ष्य का निर्धारण कर अग्रसर होते रहने का ही नाम है | यह निरंतरता ही जीवन क्रम है ,जिस क्षण आप अपनी प्राप्तियों से संतुष्ट हो गए ,समझीये जीवन वहीं विरामावस्था में चला गया और आप पशुवत् ही शेष जीवन जीयेंगे | अभिप्राय संघर्ष ही मनुष्यत्व है ,यही हमारा परिचय है और इससे ही सांस्कृतिक उत्थान का इतिहास विकसित हो रहा है और समृद्ध होता जा रहा है |

शरीर हमारे कार्य-कलापों का अगर अधिष्ठान क्षेत्र है तो मन इसका नियन्त्रक है, अगर यह काया गाड़ी है जैसा कि गीता भी कहती है तो मन इसका ड्राइवर है | मन न चाहे तो सौ से शून्य होते देर नहीं लगती ,यह सारी संभावनाओं पर क्षण में पानी फेर देता है ,सरल-सहज कार्य को भी असम्भव सा बना देता है ,आलस्य ,प्रमाद तथा अकर्मण्यता के अतल सागर में शरीर की क्षमताओं को डुबो देता है , रुई के ढेर को पहाड़ जैसा समझा देता है ,हमें विपन्न कर देता है| “ मन के हारे हार और मन के जीते जीत “ | इसके विपरीत मन निश्चय कर ले तो संभावनाओं के अम्बार लगा देता है ,उत्तेजनाएँ नस की शिराओं में फुफकार उठतीं हैं और किसी भी अतुलनीय जटिल कार्य को कर डालने की प्रतिभा और योग्यता हमें मिल जाती है | मन चँचल भी बहुत है ,एक क्षण मे हताश और दूसरे ही क्षण उत्साहित , “ क्षणे तुष्टा , क्षणे रुष्टा “ इसीकी प्रकृति है | स्वामीजी ने मन की चंचलता को समझाने केलिए एक सुंदर शब्द चित्र उकेरा है – एक बंदर वह भी पागल और उसके हाथ पीने को शराब लग जाए तो उसकी चंचलता का अंदाजा लगाइए ,मन उस बंदर से कई गुणा ज्यादा चँचल है|

मन की नकारात्मकता मेरे विषय का भाग नहीं ,इसे छोड़ता हूँ , हाँ ,इसके धनात्मक पक्ष में अपने विषय का विश्लेषण छुपा है , उसे लेकर बढ़ता हूँ|
देखिए , हमारी उपलब्धियाँ, सफलताएँ , ख्याति ,असामान्य परिचय ,समाजिक वैशिष्ठ , धन –वैभव आदि हमारे कठोर श्रम और जाग्रत मन का ही खेल है ,यही हमें सामान्य से असामान्य के निर्माण को प्रेरित करता है , सफलताओं के सोपान दर सोपान पार कराता है | कभी –कभी तो अपने कार्य शैली के कारण कार्यक्षेत्र में विख्यात कर देता है , सारी भौतिकताओं को पांव पर ला पटकता है| याद रखें ,यहीं से ‘ है , ... नहीं है [ अस्ति ... नास्ति ] ‘ का खेल प्रारम्भ होता है | भौतिकताएँ ताप हैं और तप भी हैं | मन अगर यह स्वीकार ले कि मेरा पौरुष मेरे अंदर के ईश्वरीय तत्वों के एकेंद्रित प्रयास से उभरा हुआ सामर्थ्य है , यह संचित प्रारब्ध है ,जिसने मुझे विवेक ,बुद्धि ,बल और विकास के सुअवसर दिए हैं तब तो आप संभल गए ,मन ने आत्मा की सत्ता को परमात्म रूप में स्वीकार लिया , गठजोड़ कायम हो गया , आप बच गए , स्वानुभूति ने आत्मानुभूति पा लिया ,यही है आत्मसाक्षात्कार | ईश्वर है के प्रबल भाव का जागरण हो गया समझिए, यह तप स्वरुप है | आपमें सभी सद्गुण आ जायेंगे | दान , दया , सेवा , सदाचरण , धर्माचरण आदि उच्च चारित्रिक बलों का निर्माण स्वानुभूत होने लगेगा | अध्यात्म की ओर आप प्रवृत होंगे ,सत्य का अनुसरण और उसी के अनुरूप आचरण करेंगे आप , नम्राचरण का अंकुरन होगा आपकी विनम्रता लोक चर्चा का विषय बन जायेगी | समाज परोक्ष में भी आपकी प्रशंसा करेगा ,दृष्टान्त रूप में आपको दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करेगा | यह आपको पथच्युत नहीं होने देगा और सदसंस्कारों की पराकाष्ठा तक ले जायेगा | आपका मन एक अलौकिक चिंतन में रम गया ,अब यह नहीं टूटेगा ,नहीं भटकेगा ,सभी कार्यों को गुणित परिणामों के साथ निष्काम करेगा | अब यह प्रवंचनाओं से मुक्त ,पूर्ण संतुष्ट है | बुद्धानंदजी ने यहाँ अत्यंत सुंदर मार्गदर्शन किया है कि मन को शिथिल कैसे करें ? इसके आवेग और आघात तो रसातल तक ले जाते हैं , इसे अनुशासित कर आत्मानुकुल करना कम जटिल नहीं | उन्होंने सुबह –शाम जप करने का परामर्श दिया है , प्रारम्भ में यह मुक्त घोड़े की तरह छटपटायेगा , यह आपके प्रयास को विखंडित करने का हर संभव चेष्टा करेगा ,यह आपको ध्यान में जाने नहीं देगा ,आत्मा को कुंठित करने की भरसक प्रयास करेगा | आप हारें नहीं , मन की तीव्रता के अनुपातिक जप की भी तीव्रता बढ़ाएँ , मन को घेरकर पुनः आत्माधिष्ठ करें | हम पाते हैं कि निरंतर अभ्यास अचेतन या सुसुप्त मन को भी सचेष्ट करता रहता है ,सजगता न भी हो ,चेतन मन चिंतन में हो तब भी आप ड्राइव करते समय यथास्थिति गाड़ी को नियंत्रित करते बढते रहते हैं . हाँ यहाँ यह अत्यंत महत्व का विषय है कि आप किसप्रकार के गुणों ,कार्यों और विचारों की साधना चेतन या जाग्रत मन से करते हैं , सुसुप्त मन उन्हीं पर सधता है या नियंत्रित होता है | अतः सद्गुणों को प्रश्रय दें तभी लाभ होगा |यह प्रक्रिया अपनी निरंतरता में मन को स्थिर और शांतचित्त कर देगा और मन एकबार सध गया तो इसकी उच्छृंखलताएं स्वेम समाप्त हो जायेंगी और सभी दुर्गुणों का अंत तुरंत होगा |” मन चंगा तो गगरी में गंगा “ [काठ के बर्तनों का तो जमाना रहा नहीं ] तात्पर्य कि शुचिता सर्वत्र व्याप्त है मन की दृष्टि शुद्ध होनी चाहिए |

अब उनपे नजर डालिए जो आस्तिक नहीं हैं ,नास्तिक हैं या यूँ कहें कि जो अपनी उपलब्धियों का श्रेय खुदको देते हैं , उसके पास धन मात्र भोग का उपस्कर बनकर रह जाता है , मन की गति मदोन्मत हो जाती है ,उसे संसार की सारी अलभ्य लभ्य प्राप्तियां स्वार्जित लगती है ,परिणाम स्वरुप वह अपने चतुर्दिक जहाँ दृष्टिपात करता है ,सभी तुच्छ दिखते हैं , वह कामी हो जाता है, अहंकारग्रसित जीवनचर्या हो जाता है और इसका चरम अंततः व्यक्ति का पतन है | ध्येयहीन धन –वैभव हममें नैराश्य को जन्म देता है ,हमें क्षुब्ध करता है ,हमसे अमानवीय आचरण करवाता है | यह हमें ही भस्म करने की तैयारी कर देता है | मन आत्मा से न जुड़ने के कारण लगातार शरीर को साधन की जगह साध्य बनाने लगता है और हम विघटित होने लगते हैं |भौतिक ताप की ज्वालाएं हमें जला डालतीं हैं | तभी तो कहते हैं – मोरा मन बड़ा पापी संवरिया हो |

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1684

Replies to This Discussion

आदरणीय विजय मिश्र जी नमस्कार।

विजय जी ये अच्छा किया जो अपने आलेख यहां पोस्ट किया।

आपके इस श्रमसाध्य आलेख पर अपने विचार प्रस्तुत करूं उससे पहले जानना चाहती हूँ कि 'आत्मसाक्षात्कार' गतिशील प्रक्रिया है या एक स्थिर अवस्था/स्थिति?

सादर

आदरणीया वन्दनाजी | यथोचित | यहाँ यह मन की चंचलता के निरुद्ध के लिए प्रयुक्त है और इसलिए स्थिर अवस्थास्थिति है |
मन पर लिखे , ईच्छा के प्रभाव पर बात करें और राजा भतृहरि का प्रसंग न आए तो बात अधूरी रह जाती है | राजा भतृहरि राजा ही थे ,मन में ठान लिया कि मैं अपनी सारी मन की इच्छाओं को तृप्त करेंगे , देखें कब मन तृप्त होता है | सारी जिंदगी इच्छाओं के पीछे भागते रहे और इच्छाएँ थीं कि अग्नि की ज्वाला की तरह आहार पाकर एक के बाद एक उठतीं और अधिक गति से पूरीत करने का आवेग उत्पन्न करतीं | इसप्रकार उनका सारा जीवन कामनाओं को तृप्त करने में व्यतीत हो गया किन्तु इसका बबंडर शांत होने के स्थान पर तीव्रतर आग्रह के साथ सामने उपस्थित होता रहा ,एक को शांत करते तबतक अनेक इच्छाएँ खड़ी हो जातीं | अंततः वे इससे हार गए और कुछ इस तरह से अपने अनुभव को व्यक्त किया – “ तृष्णा न जीर्णा ,वयमेव जीर्णा “ – यानि इच्छाएँ बूढी नहीं होतीं, इन्हें तृप्त करने के चक्कर में हम बूढ़े अवश्य हो जाते हैं | कहने का अभिप्राय कि इच्छाएँ असंख्य और अनंत हैं ,धधकती अग्नि की तरह हमारे अस्तित्व को भष्मिभूत करने की क्षमता हैं इनमें ,ये कभी तृप्त नहीं होतीं | कामनाओं को नियंत्रित कर संयमी जीवन जीना ही इसका निवारण है |इसी में मानव मात्र का कल्याण निहित है | लीप्सा की तृप्ति असंभव है और जो इसके पीछे गया उसने निरर्थक ही जीवन से हाथ धोया |कामनाएँ अनेक रूपों में हमें सतातीं हैं , कभी धन –बैभव ,कभी नाम - यश , कभी किर्ती –कृति तो कभी लौकिक –पारलौकिक इत्यादि ,अनेक प्रकार से अपने प्रभाव में बांधे रहती है ,मन कछामछाता रहता है किन्तु इन अभीप्साओं से मुक्त नहीं हो पाता | इसलिए “ संतोषम परमं सुखम | “ मन को आत्मा से जोड़ी जाए और वही हमें मुक्तिद्वार का मार्ग दिखाएगा |

विजय जी

क्या खूबसूरत लेख है  i यह आपके संवेदन गंभीर चरित्र का परिचायाक है i भाष शैली भी चुस्त दुरुस्त i कथ्य उभर कर सामने आता है i ऐसे लेख के लिए बधाई i बस एक बात कहना चाहूँगा - तोरा मन बड़ा पापी सांवरिया रे

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service