For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं शाम

ढलने का इंतज़ार करता हूँ

सूरज !!!

जिसकी तपिश से

घबराया सा

झुलसा सा

मुरझाया सा

खींच लेना चाहता हूँ

रात की विशाल

छायादार चादर

जिसमें जड़े हैं

चाँद तारे

और बिखरे से

सफ़ेद रुई के फोहों से

मखमली दूधिया बादल

थकान मिटाने

को होता है

सन्नाटों का गीत

.........................................

सन्नाटों का गीत

अद्भुत है अद्वितीय है

इसकी लय ताल

और शब्द तो ऐसे के बस

रोम रोम भेद दे

और भेदे भी न

ह्रदय

ह्रदय भेद जाते हैं

रात में  

कुछ जुगनू

जिन्हें जूनून है

दीप बनने का

रात को मिटा डालने का

जो

करते हैं तांडव

दीप्ति का आह्वान

मंत्रोचार

बार बार

पसरे सन्नाटे की

महफ़िल में

चमक उठती है

दामिनी

चीखती सी

बेबश

लाचार

इन जुगनुओं के

तंत्र जाल में

सिमटी हुई

.........................................

उसकी तड़प

डालती है खलल

ह्रदय भेदती चीखें

जुगनुओं को

देतीं हैं तसल्ली

और मुझे

दर्द

वेदना

थकान की जगह

बढ़ जाती है

चिंता

और चिंता

............................................

सूरज तुम

आते सुबह सुबह

मेरे दरवाजे पर

चिंदियों में लिपटे हुए

.............................................

और चीखते डिब्बे

बढाते हैं बेचैनी

...............................................

पिता होना

मजाक नहीं है ......................सूरज

लड़की का पिता होना मजाक नहीं है

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:30pm

आदरणीय सौरभ सर आप सब के आशीर्वाद से कुछ नया करने का प्रयास करता रहता हूँ

आपकी प्रतिक्रिया मिली मनोबल बढ़ा ....................कोशिश कभी तो रंग लाएगी इस आशा से

आपका बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 12:30am

रचना के लिए धन्यवाद.

लेकिन कैसे शब्दों से शब्द मिलाते बातें करते गये हैं ! .. .

शुभ-शुभ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2013 at 4:06pm

deri se aane aur sabko prathak prathak pratikriya n de paane ke liye kshma chahta hun ................aap sabhi mujh par ye sneh yun hi banaye rakhiye .........aap sabhi kaa hriday se dhanyvaad saadar aabhar


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2013 at 3:15pm

सन्नाटे की

महफ़िल में

चमक उठती है

दामिनी

चीखती सी

बेबश

लाचार

इन जुगनुओं के

तंत्र जाल में

सिमटी हुई...एक ह्रुदयस्पर्शी झंझोड़ता सा शब्द चित्र 

और अंत में..

..................सूरज

लड़की का पिता होना मजाक नहीं है.......मर्मस्पर्शी 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by savita agarwal on October 9, 2013 at 3:04pm
भावो से परिपूर्ण ...उम्दा लेखन हेतु बधाई स्वीकारे ...
Comment by vijay nikore on October 9, 2013 at 2:13pm

इस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 5:26am

अपने अंदर सुंदर भावों को समेटे इस अतुलनीय कृति के लिए बधाई हो संदीप भाई....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2013 at 9:43pm

आदरणीय भार्इ संदीप जी, वाह !  बातों ही बातों में जो बात निकल कर आती है................सच कहते हैं लोग यहां कन्या दान महा दान।  हार्दिक बधार्इ स्वीकारें ।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 8, 2013 at 9:39pm

वाह आदरणीय संदीप जी बेहतरीन और आखिरी मे आपने कहा
//पिता होना
मजाक नहीं है ......................सूरज
लड़की का पिता होना मजाक नहीं है// बहुत खूब कहा बधाई स्वीकार करें

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 8, 2013 at 9:02pm

पिता होना

मजाक नहीं है ......................सूरज

लड़की का पिता होना मजाक नहीं है

 बेहद ही संवेदनशील पंक्तियाँ!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
6 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service