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ऊब गया मैं ऊब गया रोज किताबों को पढ़कर !

ऊब गया मैं ऊब गया

रोज किताबों को पढ़कर !

भाषा की सरल किताबों में

जब व्याकरण की मार पड़ी

छंद विधानों में उलझा

तब जोड़ न पाया कोई लड़ी

 

समझ न पाया लय तुक को

वहां चली नहीं अपनी तिकड़ी

वहीँ बीजगणित के समीकरण से

छूट गयी अपनी छकड़ी

 

अंकगणित के जटिल प्रश्न

जब मेरी समझ से दूर रहे

व्यास परिधि के चक्कर में

भूमिति नें बुद्धि को जकड़ी

 

विज्ञान ज्ञान से दूर रहा

अज्ञान का था पलडा भारी

त्रिकोणमितीय के सूत्रों से

भूल गयी  सारी अकडी

 

 

तब से मैंने मन ठान लिया

अब नहीं किताबों को पढ़ना

नहीं सुहाता अब मुझको

बस रोज किताबों का पढ़ना

 

घर में अब जब रहता हूँ तो,

घरवालों को पढता हूँ

घर से  जब बाहर जाता हूँ तो,

मुसाफिरों को पढता हूँ

 

ऑफिस में अधिकारी पढ़कर

सत्य बात कहूं फाईल की

काश! सभी को आ जाये

अनमोल विधा यह पढ़ने की

 

मन पावन भावों को पढकर

कठिन कार्य सुलझाने की

कंकरी, संकरी लम्बी राहों पर

चल जीवन सफल बनाने की

 

मौलिक व अप्रकाशित

-सत्यनारायण सिंह

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Comment

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Comment by Satyanarayan Singh on July 14, 2013 at 4:05pm

आदरणीय नीरज  जी सादर,

      सराहना एवं प्रोत्साहन हेतु आपका बहुत बहुत  आभारी हूँ. धन्यवाद

Comment by Satyanarayan Singh on July 14, 2013 at 4:03pm

आदरणीय बृजेश जी सादर,

             मन में उठे भावों को जस का तस रचना में उतारने का प्रयास भर मैंने किया है. निश्चित ही रचनामें त्रुटियाँ विद्यमान हैं. किन्तु, त्रुटियों को नजरअंदाज कर आपने  मेरे सद्प्रयास को शुभ कामनाएँ प्रेषित कर लेखनी को बल दिया  है उसके लिए मैं  आपका बहुत बहुत आभारी हूँ. धन्यवाद

Comment by Neeraj Nishchal on July 14, 2013 at 3:58pm

wah wah bahut hi sundar ise hi to kahte hain

jahan naa pahunche ravi.........

wahan pahunche kavi.............

Comment by Satyanarayan Singh on July 14, 2013 at 3:48pm

आदरणीय सुमित नैथानी जी सादर,

      सराहना एवं प्रोत्साहन हेतु आपका आभारी हूँ. धन्यवाद

Comment by Satyanarayan Singh on July 14, 2013 at 3:47pm

आदरणीय राजेश कुमार जी सादर,

      प्रोत्साहन एवं शुभकामनाओं हेतु आपका आभारी हूँ.

Comment by बृजेश नीरज on July 13, 2013 at 10:16pm

इस प्रयास पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं!

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 4:27pm

घर में अब जब रहता हूँ तो,

घरवालों को पढता हूँ

घर से  जब बाहर जाता हूँ तो,

मुसाफिरों को पढता हूँ...bahut sunder likha hai aapne

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 3:02pm

साथ चलते रहें, हमारी ओर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं

कृपया ध्यान दे...

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