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चुल्लू भर पानी ( लघु कथा )

 चुल्लू भर पानी

 

चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर बैठ गया । ठेकेदार उधर से चला आ रहा था उसे बैठे देख गरजा – “ अबे ओ! कामचोर कहीं के ! जरा सा काम किया नहीं कि बैठ गए मुंह लटका कर ।“ वह धीरे से बोला –“साहब दो घूंट पानी” फिर से वहीं ढेर हो गया । ठेकेदार ने जोर की लात उसके सिर पर मारी, वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे जा गिरा । उसके सिर व मुंह से खून निकल पड़ा था । ठेकेदार गुर्राया -“जा मर चुल्लू भर पानी मे , एक ढेला भी नहीं मिलेगा तुझे ।“ वह धीरे से बोला –“ साहब दो घूंट पीने को नहीं है , मरने को चुल्लू भर कहाँ से दोगे ?” सभी उसका मुंह ताकते रह गए । कितनी सटीक चोट मारी थी किशोर ने।

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Comment by annapurna bajpai on July 1, 2013 at 5:21pm

आदरणीय माथुर जी उत्साह वर्धन के लिए आभार ।

Comment by D P Mathur on June 27, 2013 at 8:12pm

इस कलयुग में जीवन की वास्तविकता यही है अच्छी लधुकथा !

Comment by annapurna bajpai on June 6, 2013 at 9:06am

आदरणीय आपके सुझाव का ध्यान रखूंगी । सादर ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2013 at 11:59pm

कथा का भाव पक्ष और संप्रेषण बेहतर है. शिल्प को थोड़ा और कसावट के साथ व्यवस्थित किया जा सकता था.

बहुत-बहुत स्वीकारें, आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 5:26pm

साहब दो घूंट पीने को नहीं है , मरने को चुल्लू भर कहाँ से दोगे ?

सच में करारा किन्तु सार्थक जबाब दिया बच्चे ने आज समाज में धन ने इतनी क्रूरता व्याप्त कर दी है लोगों में जो इंसान को इंसान नहीं समझते एक तो बाल श्रम क़ानून की धज्जिय उड़ाते हैं साथ ही साथ मानवता की भी धज्जियां उड़ाते हैं जो आपकी इस लघु कथा में साक्षात देखने को मिला हार्दिक बधाई अन्नपूर्णा जी 

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