For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भारतीयता रही न ध्यान है

छंद विधान - रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु

राष्ट्र स्वाभिमान की प्रतीक है ध्वजा त्रिवर्ण किन्तु अग्नि वर्ण केतु का रहा न मान है
द्रोह की प्रवृत्ति द्रोह को बता रही महान और दिव्य भारतीयता रही न ध्यान है
अन्धकार का प्रसार हो रहा अपार बन्धु मानवीय मूल्य का न लेश मात्र ज्ञान है
राष्ट्रवाद का झुका हुआ निरीह शीश देख राष्ट्रद्रोह का यहाँ तना हुआ वितान है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Views: 695

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 10, 2013 at 10:13am

abhaar ashok ji

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 8:55pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी साहब सादर, बहुत सुन्दर देश और तिरंगे की भावना के विपरीत कार्यों के प्रतिष्ठित होने पर रची सुन्दर घनाक्षरी. सादर बधाई स्वीकारें. किन्तु मुझे छंद विधान के नाम पर अधूरी जानकारी उचित नहीं लगी. आपके लिखे के आगे घनाक्षरी लिखा होना उचित होता.या इसे गनात्म्क आधारित घनाक्षरी कहना उचित होता.सादर,

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 7:04pm

पुनः पुनः आभार सौरभ जी यह विधान मै पूर्व की एक रचना में दे चूका हूँ इस कारण मुझे लगा लगभग सभी को ज्ञात हो गया होगा.....खैर आगे से आपके परामर्श को ध्यान रखूँगा.......एक बार मुझे इतना समय देने के लिए बहुत धन्यवाद
आगे भी इसी प्रकार के स्नेह की निरन्तर अपेक्षा है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 3:01pm

//'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु//

आदरणीय, मैं ही नहीं शायद ही कोई पाठक इस लिहाज से इस कवित्त को देख पाया होगा.

दूसरे, आपको विधान ही लिख देना था कि पदों में सामान्य सम और विषम शब्दों का व्यवस्थित संयोजन तथा १६,१५ की यति या कुल ३१ वर्ण के अलावे भी अंतर्निहित वर्ण व्यवस्था है.  इस आशय का ऐडमिन का सदा अनुरोध भी रहता है, कि व्यवहृत छंद की रचनाओं के साथ प्रयुक्त विधान को संक्षेप में दे दें या ग़ज़ल के मिसरों का वज़्न भी लिख दें.

प्रथम दृष्ट्या कोई पाठक इस रचना को मनहरण घनाक्षरी पर आधारित ही कहेगा. क्यों कि विधान स्पष्ट है और रचना उस विधान को संतुष्ट कर रही है. अब उसके अंदर रगण और जगण की आवृति भी है ताकि पद दण्डक के स्वरूप को अंगीकार करे तो यह इस छंद रचना की विशिष्टता हुई न.

वैसे ऐसे अभिनव प्रयोग होते हैं, होने भी चाहिये.यही साहित्य संप्रेषण का लालित्य है.

आपको मनहरण को विशिष्ट आयाम देने के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीय.

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 2:08pm

सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 2:00pm

ब्रजेश जी संजय जी बहुत बहुत आभार......और धन्यवाद

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 2, 2013 at 1:49pm

अद्भुत... इस शानदार प्रस्तुति पर सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय डा आशुतोष जी...

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 9:12am

बहुत ही सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 3:18pm

मानवीय मूल्यों में सतत हो रहा ह्रास किसी संवेदनशील मनस को न कुरेद दे हो ही नहीं सकता.

किंतु संवेदना वहीं कुंद हुई दिखती है जब व्यष्टि की महत्ता पर तो सारी वैचारिकता संकेन्द्रित होती दिखे, किन्तु समष्टि के प्रति अक्षम्य निर्लिप्तता व्यापी दिखे. आदरणीय आशुतोषजी, आपकी कलम इसी अन्यमन्स्कता पर सचेष्ट प्रहार करती दिखी है.

त्रिवर्ण की अवधारणा तक को अब हाशिये पर रखने का कुचक्र चल रहा है जिसकी प्रच्छाया मात्र में सैकड़ों-हज़ारों ने अपनी क़ुर्बानियाँ दी हैं और इसके मान को प्रतिस्थापित किया है.

आपकी ओजस्वी और ऊर्जस्वी पंक्तियों को सादर नमन.

शिल्प के लिहाज से मनहरण घनाक्षरी का सुन्दर नमूना प्रस्तुत हुआ है. यह अवश्य है कि परिपाटी के अनुरूप पदों में चरणानुसार यति ढूँढने वाले पाठक सशंकित होंगे. लेकिन इस उत्कृष्ट छंद के लिए आपको अतिशय बधाइयाँ.. .

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 1, 2013 at 2:07pm

कुन्ती जी डॉ नूतन जी लक्ष्मन प्रसाद जी और केवल जी आप को बहुत धन्यवाद और आभार.....सदा स्नेह का आकांक्षी हूँ......इसी प्रकार स्नेह वृष्ट करते रहिएगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
11 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service