पानी को ललात कहीं, दिखी भीड़ बिललात।
लम्बी सी कतार लगी, पात्र रीते घूरते।।
सूख गए कूप सारे, सूने पड़े नल कूप।
सूखी नदियों के घाट, मन देख खीझते।।
जल की आपूर्ति घटी, टैंकरों पे आस टिकी।
महिने में एक बार, गांव जल बांटते।।
गागर छिहाये सिर, चली जात कोसों नार ।
सूखे से नयन जल, जीवन को हेरते।।
(स्वरचित व अप्रकाशित)
-सत्यनारायण सिंह
Comment
आदरणीया कुंती मुखर्जी सादर,
रचना के साथ अनुभव को साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय सौरभजी, आपके विचारों से मैं पूर्णत: सहमत हूँ. समय समय पर रचना पर आपकी समीक्षात्मक टिपण्णी व व्यक्त किये गए उदबोधनात्मक विचार लेखनी को उर्जा एवं बल प्रदान करने के साथ साथ दोष रहित सुन्दर रचना के सृजन का गुर भी सिखाते हैं. इस पुनीत कार्य के लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा. भविष्य में इसीप्रकार का स्नेह व् सहयोग बनाएं रखें. धन्यवाद.
आदरणीय सत्यनारायणजी, किसी शब्द की अक्षरियों के प्रति संवेदनशीलता लेखनकर्म के प्रति किसी लेखक की गंभीरता का द्योतक है, ऐसा मेरा मानना है. सार्थक शब्दों के सुन्दर संयोजन से ही भाव-संप्रेषण होता है. अतः शब्दों की अक्षरियों का यथासंभव सहज और सम्यक होना एक जागरुक पाठक के प्रति लेखक का आदर का भाव है. इसके बाद ही पद्य शिल्पादि पर विचारा जाना सार्थक हो सकता है.
सादर
सत्यनारायण जी ,भयंकर सूखा मैंने भी देखा है. सोचती हूँ तो रोंगटें खड़े हो जाते हैं.
आदरणीय संदीप जी सादर, उत्साहवर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीया डॉ प्राची जी सादर,
आपकी टिपण्णी निश्चित ही मेरे लेखनी को प्रोत्साहित करेंगी, उत्साहवर्धन के लिए मैं आपका आभारी हूँ. बहुत बहुत धन्यवाद.
परम आदरणीय सौरभ जी, सादर,
सर्वप्रथम मैं आप द्वारा दी अनमोल प्रतिक्रिया तथा रचना में अक्षरी दोष के प्रति सजग करने के लिए आपका ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ. भविष्य में रचना में अक्षर दोष न हो इस बात का मैं सदैव ध्यान रखूंगा. बहुत बहुत धन्यवाद,
बहुत सुन्दर घनाक्षरी रची है सर जी ................बधाई हो
सूखे की स्थिति को दर्शाती, हृदय को कचोटती, सुन्दर घनाक्षरी पर बधाई आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी
एक संयत हो सकती घनाक्षरी के लिए बहुत-बहुत बधाई.
अक्षरी दोष से बचना आवश्यक है. सुखा, सुना आदि को शुद्ध कर दिया गया है.
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