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कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)


मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||


भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||


टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||


फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||


रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर ही भस्म|
बिन फेरों के शादियाँ ,कैसी है ये रस्म||


तन की पाती सब पढ़ें ,मन की पढ़ें न कोय|
जो मन की पाती पढ़ें ,तो दुःख काहे होय||


अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|
भीगे कागज पर लिखी ,नारी की तक़दीर||


कागज ही से धन मिले ,कागज ही से ज्ञान|
वृक्षों से कागज बने , कीमत तू पहचान||


पहले पत्तों पर लिखे ,फिर कागज पर ग्रन्थ|
अब कंप्यूटर पर दिखे ,लेखन के नव पंथ ||
*******************************************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 8:45pm

आदरणीय गुरु जी सलिल जी आपके मार्ग निर्देशन में दोहों को दुरुस्त किया है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 12:18pm

हार्दिक आभार प्रवीण मलिक जी आपको दोहे रुचिकर लगे 

Comment by Parveen Malik on February 18, 2013 at 11:52am

राजेश कुमारी जी सादर ,

बहुत ही अछे  दोहों से सजी रचना ... बधाई स्वीकारे जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:34am

तुषार राज रस्तोगी जी  हार्दिक आभार आपका  आपको दोहे पसंद आए 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:32am

विंध्येश्वरि प्रसाद जी  हार्दिक आभार आपका  आपको दोहे पसंद आए | मेरा लिखना सार्थक हुआ|  आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ मेरी तरह आप सभी महसूस कर रहे होंगे की साहित्यिक सागर बहुत गहरा है इसमे हमे बहुत गंभीरता से उतरना है थोड़ी थोड़ी गलतियाँ ही आगे जाकर बड़ी बन जाती हैं अतः अगर हमे अगली पीढ़ी को एक स्पष्ट व निर्विकार साहित्य देना है तो उसकी बारीकियां समझनी होंगी , आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना |  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:30am

 आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी हार्दिक आभार आपका  आपको दोहे पसंद आए | मेरा लिखना सार्थक हुआ|  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:29am

वेदिका  जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:28am

  राम शिरोमणि पाठक जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:26am

प्रिय संदीप  आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका| मेरा लिखना सार्थक हुआ  आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ मेरी तरह आप सभी महसूस कर रहे होंगे की साहित्यिक सागर बहुत गहरा है इसमे हमे बहुत गंभीरता से उतरना है थोड़ी थोड़ी गलतियाँ ही आगे जाकर बड़ी बन जाती हैं अतः अगर हमे अगली पीढ़ी को एक स्पष्ट व निर्विकार साहित्य देना है तो उसकी बारीकियां समझनी होंगी , आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना |  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2013 at 11:22am

आदरणीय विजय निकोर जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका| मेरा लिखना सार्थक हुआ  आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना   

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