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भ्रष्टाचार में भी प्रतिस्पर्धा,
करते आपस में दंगल है !
क्या करूँ कितना मिल जाय ,
बस लूट पाट को बेकल है !!

पैसे के लिए लार टपकाते ,
मार पीट को ये तत्पर है !
बोलबचन से कभी कभी तो,
कर देते सब गुड़-गोबर है !!

कायरता ,पशुता से संचित ,
बनाते नया-नया पैमाना !
चालाकी,मक्कारी ही इनका,
बन चुका धंधा पुराना !!

धन के वन में विचरण करते ,
जैसे इनका ही जंगल है !
जंगल राज़ चला रहे फिर भी ,
कहते है कि सब मंगल है !!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by upasna siag on January 24, 2013 at 3:48pm

बहुत बढ़िया व्यंग्य है राम शिरोमणि जी .......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 23, 2013 at 10:51pm

प्रयासरत रहें और अन्य रचनाकारों की रचनायें पढ कर उनपर अपने विचारों को साझा करें.

Comment by ram shiromani pathak on January 22, 2013 at 5:29pm

हार्दिक धन्यवाद् अपने उचित ही कहा संदीप कुमार जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 22, 2013 at 4:07pm
बहुत अच्छे भाव हैं पंक्तियों के
इसके लिए आपको बहुत  बधाई 
 किन्तु गेयता में अटकाव आ रहा है थोडा देखिएगा आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

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