For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर अध्‍याय
अधूरे किस्‍से
कातर हर संघर्ष
प्रणय, त्‍याग
सब औंधे लेटे
सिहराते स्‍पर्श

कमजोर गवाही
देता हर दिन
झुठलाती हर शाम
आस की बडि़यां
खूब भिंगोई
पर ना आई काम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम

फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्‍लड़ करते शोर

किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्‍मत भी
क्‍या खाकर मांगे
निष्‍ठुर दे ना दाम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम

कुल्‍हड़, पत्‍तल
प्‍याले, पानी
महरिन का संगीत
शीतलपाटी
गठरी बनकर
ठमकी सारी जीत

धीरज धारा
रोज खिसकती
डबडब सारा धाम
किसको बोधें
किसको बोसें
बता तू ही घनश्‍याम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम !

Views: 590

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on January 6, 2013 at 11:50pm

कुल्‍हड़, पत्‍तल
प्‍याले, पानी
महरिन का संगीत
शीतलपाटी
गठरी बनकर
ठमकी सारी जीत

धीरज धारा
रोज खिसकती
डबडब सारा धाम
किसको बोधें
किसको बोसें
बता तू ही घनश्‍याम

the rhythm & flow of the poem is so enchanting , that even after the meaning of some of words used therein is not understandable ,even the reason or the context thereof is not given ,,though single reading of this poem , i swear ,  will not suffice any soul ... bahut bahut badhaii///////////


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2013 at 10:25pm

राजेश भाईजी,  अद्भुत !!!

अभी-अभी आपकी एक रचना पर अपनी बात कहते हुए हमने पंक्तियों में अभिनव बिम्बों की अदम्य उपस्थिति की बात की थी. और आपकी प्रस्तुत रचना पर दृष्टि पड़ी है. मैं मुग्धावस्था में मूक हो गया. चैतन्य भावनाओं के गिर्द असहजपन को शब्द देती कथ्यात्मक प्रौढ़ता का मन भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा है.मैं आपकी इन पंक्तियों के होने पर मुग्ध भी हूँ और चकित भी हूँ -

फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्‍लड़ करते शोर

किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्‍मत भी
क्‍या खाकर मांगे
निष्‍ठुर दे ना दाम

इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम..

इस सशक्त और मनोहारी नवगीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, भाईजी.  कहना न होगा, आपका प्रस्तुत नवगीत ओबीओ के भाल पर दैदिप्यमान तिलक है.

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 3, 2013 at 10:19pm

हर अध्‍याय

अधूरे किस्‍से

कातर हर संघर्ष

प्रणय, त्‍याग

सब औंधे लेटे

सिहराते स्‍पर्श

यही सब तो दुखता है. सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय राजेश जी. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 1:34pm

सुंदर रचना मन को छूती हुयी,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 3, 2013 at 12:23pm

राजेश भाई बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई

Comment by vijay nikore on January 3, 2013 at 7:58am

आदरणीय राजेश कुमर जी,

सिहराते स्‍पर्श

कमजोर गवाही

देता हर दिन

झुठलाती हर शाम

आस की बडि़यां

खूब भिंगोई

पर ना आई काम

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by भावना तिवारी on January 2, 2013 at 7:09pm

कुल्‍हड़, पत्‍तल

प्‍याले, पानी

महरिन का संगीत

शीतलपाटी

गठरी बनकर

ठमकी सारी जीत

धीरज धारा

रोज खिसकती

डबडब सारा धाम

किसको बोधें

किसको बोसें

बता तू ही घनश्‍याम

 ..bahut sundar rachna ...RACHNAKAAR..ko hardik bdhai .....KALAM KO VANDAN ......PEER UTAR AAI .....CHAMKI ROSHNAI.....!!

Comment by Shyam Narain Verma on January 2, 2013 at 5:54pm

BAHOT KHOOB....................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
34 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
2 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service