For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम

छुपा के होठों से गम को अपने

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |

बना लो गीतों को मेय का प्याला

छलकती बूंदों ही को कहो तुम |

 

ये गम की तड़पन से लिपट लो,

हवा दो आग को जितनी भी तुम |

सुख को हौले से फिर भी छू लो ,

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |

 

मंजिल पे जख्मों को तो न देखो,

मंजिल को छू लो नयनों से अपने |

बसा के आँखों में कल के सपने,

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |

 

आसान नहीं खुद को पहचान पाना,

कि रखे हैं घर में आईने इतने,

इन आइनों को तोड़ के हँस लो,

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |

Views: 414

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on June 9, 2013 at 4:56pm

आसान नहीं खुद को पहचान पाना,

कि रखे हैं घर में आईने इतने,

इन आइनों को तोड़ के हँस लो,

बहुत बढ़िया .....शुभकामनाये 

Comment by shalini kaushik on November 27, 2012 at 12:09am

आसान नहीं खुद को पहचान पाना,

कि रखे हैं घर में आईने इतने,

इन आइनों को तोड़ के हँस लो,

लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

आभार गुरु  पूर्णिमा  की   बधाई

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:21pm

डा. प्राची सिंह जी, बहुत धन्यवाद | प्रथम पद की द्वीतीय पंक्ति को सबमें जोड़ा था, कुछ अलग करने की उत्कंठा थी और शीर्षक के भाव मिलाने के लिए भी|

सम्प्रेषण में समानता के लिए आपका सुझाव सर आँखों पर है, इसे कार्यान्वन करता हूँ|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 26, 2012 at 7:16pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, सादर | आपका बहुत धन्यवाद| ऐसे आशीर्वादों के सहारे ही चल रहा हूँ |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 12:12pm

सुकोमल भाव , सुन्दर शब्द संयोजन  युक्त सुमधुर गीत चंद्रेश जी, हार्दिक बधाई 

प्रथम पद की अंतिम पंक्ति को बाकी पदों की अंतिम पंक्ति से अलग क्यों रखा गया है? यदि दुसरी पंक्ति को अंतिम की जगह रखें तो सम्प्रेषण में समानता बनी रहेगी. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 11:23am

आसान नहीं खुद को पहचान पाना,कि रखे हैं घर में आईने इतने,

इन आइनों को तोड़ के हँस लो,लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |   उम्दा 

 सुन्दर भाव अभियक्त  उम्दा रचना बधाई श्री चंद्रेश कुमार छात्लानीजी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
8 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service