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आपका हार्दिक स्वागत है !
आदरणीय अम्बरीश जी, इस रचना के भावों को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ, इससे भावसम्प्रेषण को संबल मिला है. हार्दिक आभार.
डॉ० प्राची जी, मन के भावों को उद्घाटित करती हुई इस भावपूर्ण रचना के लिए सम्पूर्ण हृदय से बधाई स्वीकार करें !
इन शब्द भावों को सराहने हेतु आपका आभार आ. सतीश अग्निहोत्री जी
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, शब्द विशेष को सिंगल कोट में रखने का अर्थ मुझे मालूम नहीं था, इससे अवगत कराने हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर.
डॉ. प्राची, कविताओं में इस तरह से किसी शब्द को प्रस्तुत करने का अर्थ उस शब्द के विशेष अर्थ की ओर इंगित करना होता है. चूँकि उस शब्द का ’वह’ अर्थ पाठकों की समझ से निकल सकता है अतः रचनाकार उसे सिंगल कोट में रखता है. अन्यथा सामान्य परिस्थितियों में ऐसा अमूमन नहीं किया जाता.
पुनः बधाइयाँ व हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
इस विशिष्ट रचना के लिये हार्दिक बधाई, डॉ. प्राची. जितना ही सुन्दर प्रयास उतना ही संतुष्टिदायी परिणाम. रचना में प्रतीत होती विवशता अत्यंत ही सुगढ़ तरीके से उभरी है.
शुभ-शुभ..
कृपया बताइयेगा कि हो निराश क्यों विस्मित मन, 'तक' आशा की यह डोर रहे में तक को विशेष रूप से सूचित क्यों किया गया है ?
आदरणीय गणेश बागी जी आपके सराहनात्मक शब्द हमेशा शाबाशी देते , हौसला बढ़ाते से महसूस होते हैं... इन अन्तः उद्गारों युक्त अभिव्यक्ति को सराहने हेतु हार्दिक आभार. सादर.
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