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देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं
सोन चिड़िया की कथा भी स्मरण होती नहीं

हो रहे पत्थर मनुज सब आँख का पानी सुखा
जल रहे हैं आग में लेकिन जलन होती नहीं

मर चुका ईमान सबका बेदिली है आदमी
फिर रहीं बेजान लाशें जो दफ़न होती नहीं

कौन समझाए वतन की सरपरस्ती का सबब
हर तिरंगी चीज़ वीरों का कफ़न होती नहीं

बाद दंगों के यहाँ पसरा है सन्नाटा बहुत
शोर-गुल से मौन दहशत तो अमन होती नहीं

खार की क्या है हकीकत जानने गुलशन में जा
फूल की इक पंखुड़ी सारा चमन होती नहीं

ढो रहे हैं बोझ वो बस्ती में जाकर है खबर
है सही पर सूरते-बस्ती वतन होती नहीं 

दीप लिखना बह्र में मुश्किल बहुत होगा मगर
वो ग़ज़ल बेकार है जिसमे कहन होती नहीं


संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 11:51am

आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम

बहुत सुन्दर मार्ग प्रसस्त किया है आपने लेकिन फिर भी एक संदेह है
बहर- में १ २ और बह्र में भी १२ थोडा असमंजस में हूँ कृपया मार्दर्शन कीजिये सर जी
सादर आभार आपका इस सराहना हेतु


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2012 at 4:11pm

दीप लिखना बह्र (१२) में मुश्किल बहुत होगी मगर
वो ग़ज़ल बेकार है जिसमे कहन होती नहीं

खुबसूरत ग़ज़ल संदीप जी , शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 9:06am

आदरणीय वीनस जी सादर नमन
आपका इशारा मैं समझ गया
कोशिश हमेशा से यही होती है और आपका स्नेह यदि यूँ ही मिलता रहा
तो इक न इक दिन कुछ बेहतर करके दिखाऊंगा
इस प्रतिक्रिया से ह्रदय प्रसन्न हो उठा
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
अनुज पर नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 9:04am

आदरणीया रेखा जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल आपको पसंद आई और आपकी सराहना मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
अपना स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 9:02am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर नमन
आपसे मिली इस सराहना से लेखन को बल मिला है
अपने ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 9:01am

आदरणीय लक्ष्मण जी सादर
ग़ज़ल को सरहाने हेतु ह्रदय से शुक्रिया और सादर आभार आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by वीनस केसरी on September 1, 2012 at 2:55am

दीप लिखना बह्र में मुश्किल बहुत होगा मगर
वो ग़ज़ल बेकार है जिसमे कहन होती नहीं

:)))))))

kariye khud se aazmaaish aur ziyada .....

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2012 at 9:21pm

उम्दा गजल पर बधाई सदीप जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 7:11pm

सुन्दर ग़ज़ल लिखी है प्रिय संदीप सभी शेर बहुत अच्छे हैं बस पहले शेर में स्मरण सहन के साथ नहीं जम रहा 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 2:55pm

देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं किसी भी सह्रदय कवि/लेखक से देश की दारुण दशा सहन नहीं हो सकती बही संदीप कुमार पटेल जी, अच्छी भावपूर्ण रचना हेतु बधाई 

 

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